ख़ंजर वही है ख़ूॅं का तलबगार नया है
सब ज़ुल्म पुराने हैं बस अख़बार नया है
इस बात पे इस बार तुझे माफ़ी मिली है
तू दोस्त पुराना है गुनहगार नया है
हर रोज़ नया रंग दिखाता है वो अपना
वो शख़्स मेरे साथ लगातार नया है
तालाब में कुछ रोज़ से लाशें नहीं आईं
लगता है कि गाँव का ज़मींदार नया है
हम लोग मुहाज़िर हैं जिन्हें कोई न जाने
हर दूसरी बरसात में घर-बार नया है
तुमको अभी हर बात मेरी अच्छी लगेगी
कुछ रोज़ गुज़रने दो अभी प्यार नया है
मालूम है ये शख़्स भी मेरा नहीं होगा
नाटक तो पुराना है कलाकार नया है
Read Full