Ahmad Shahryar

Ahmad Shahryar

@ahmad-shahryar

Ahmad Shahryar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahmad Shahryar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
कुन-फ़यकूं का हासिल यानी मिट्टी आग हवा और पानी
पल में बक़ा का पल में फ़ानी मिट्टी आग हवा और पानी

नगरी नगरी फिरती हैं ये दीवारें भी साथ ही मेरे
करते हैं मेरी निगरानी मिट्टी आग हवा और पानी

ख़ाक-बसर हूँ शोला-ब-जाँ हूँ आह-कुनाँ हूँ अश्क-फ़िशाँ हूँ
देख तू अपनी कारिस्तानी मिट्टी आग हवा और पानी

मेरा क्या है मर जाऊँगा चारों ओर बिखर जाऊँगा
आप कहाँ जाएँगे जानी मिट्टी आग हवा और पानी

मैं कभी शोला हूँ कभी शबनम गाहे ज़ख़्म तो गाहे मरहम
करते हैं मुझ में खींचा-तानी मिट्टी आग हवा और पानी

मैं आईना देख रहा हूँ लेकिन ये क्या देख रहा है
मेरा अक्स पस-ए-हैरानी मिट्टी आग हवा और पानी

इश्क़ की निस्बत से हैं ज़िंदा सहरा सूरज बादल दरिया
इश्क़ नहीं तो सब बे-मअ'नी मिट्टी आग हवा और पानी
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Ahmad Shahryar
इनइकास-ए-तिश्नगी सहरा भी है दरिया भी है
तर-ब-तर ये रौशनी सहरा भी है दरिया भी है

आग पर मेरा तसर्रुफ़ आब पर मेरी गिरफ़्त
मेरी मुट्ठी में अभी सहरा भी है दरिया भी है

झील में ठहरा हुआ है उस का अक्स-ए-आतिशीं
आइने में इस घड़ी सहरा भी है दरिया भी है

जल उठें यादों की क़ंदीलें, सदाएँ डूब जाएँ
दर-हक़ीक़त ख़ामुशी सहरा भी है दरिया भी है

ज़िंदा लौट आया हूँ जंगल से तो क्या जा-ए-मलाल
मेरे रस्ते में अभी सहरा भी है दरिया भी है

कोई ख़ेमे राख कर दे कोई बाज़ू छीन ले
एक सी ग़ारत-गरी सहरा भी है दरिया भी है

रेत पर रख्खूँ तुझे या बहते पानी में बहाऊँ
देख ऐ तिश्ना-लबी सहरा भी है दरिया भी है

तू बगूला है कि है गिर्दाब ऐ रक़्स-दवाम
फ़ैसला कर ले अभी सहरा भी है दरिया भी है

दश्त भी उस की रिवायत में है मौज-ए-आब भी
मेरी आँखों की नमी सहरा भी है दरिया भी है

तू सँभालेगा भला कैसे ये सारी सल्तनत
'शहरयार'-शायरी सहरा भी है दरिया भी है
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ख़ुश नहीं आए बयाबाँ मिरी वीरानी को
घर बड़ा चाहिए इस बे-सर-ओ-सामानी को

ढाल दूँ चश्मा-ए-पुर-हर्फ़ को आईने में
अपनी आवाज़ में रख दूँ तिरी हैरानी को

जादा-ए-नूर को ठोकर पे सजाता हुआ मैं
देखता रहता हूँ रंगों की पुर-अफ़्शानी को

सर-ए-सहरा मिरी आँखों का तलातुम जागा
मौजा-ए-रेग ने सरशार किया पानी को

सज्दा-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-निगाराँ ही तो है
जिस ने ताबिंदा रखा है मिरी पेशानी को

तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की
तू भी मुट्ठी में कहाँ भेंच सका पानी को

सर्द मौसम ने ठिठुरते हुए सूरज से कहा
चादर-ए-अब्र तो है ढाँप ले उर्यानी को

'शहरयार' अपने ख़राबे पे हुकूमत है मिरी
कोई मुझ सा हो तो समझे मिरी सुल्तानी को
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Ahmad Shahryar
अश्क भेजें मौज उभारें अब्र जारी कीजिए
मेहरबाँ सैल-ए-बला की आबयारी कीजिए

ऐ चराग़-ए-ताक़-ए-जानाँ ऐ हवा-ए-कू-ए-दोस्त
अपनी कैफ़िय्यत ज़रा हम पर भी तारी कीजिए

शाम-ए-हिज्राँ में सितारों को न ठहराएँ शरीक
आईना-ख़ाने में आ कर ख़ुद-शुमारी कीजिए

अश्क-बारी सीना-चाकी दिल-ख़राशी हो चुकी
लीजे साहिब इश्क़ का फ़रमान जारी कीजिए

होंट कहते हैं बहा दीजे लहू अशआर में
ज़ुल्फ़ कहती है मियाँ तरकीब भारी कीजिए

देखिए माह ओ सितारा घूमिए अर्ज़ ओ समा
चलिए बाहर बाद-ए-ख़ुद-सर की सवारी कीजिए

इश्क़ का अगला पड़ाव मैं हूँ मैं दुनिया-परस्त
अल-मदद ऐ क़ैस ऐ फ़रहाद यारी कीजिए

यूँ तो मलने से रही ये सल्तनत सो शहरयार
पाँव पड़ कर रोइए मिन्नत-गुज़ारी कीजिए
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नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी
मिरी समाअत गुज़िश्ता अदवार में पड़ी थी

उधर दिए का बदन हवा से था पारा पारा
इधर अंधेरे की आँख में इक किरन गड़ी थी

फ़लक पे था आतिशीं दरख़्तों का एक जंगल
और उन दरख़्तों के बीच तारीक झोंपड़ी थी

समाई किस तरह मेरी आँखों की पुतलियों में
वो एक हैरत जो आईने से बहुत बड़ी थी

जिसे पिरोया था अपने हाथों से तेरे ग़म ने
सदा-ए-गिर्या में हिचकियों की अजब लड़ी थी

हमारी पलकों पे रक़्स करते हुए शरारे
और आसमाँ में कहीं सितारों की फुलजड़ी थी

तुलूअ सुब्ह-ए-हज़ार ख़ुर्शीद की दुआ पर
बुझे चराग़ों की राख दामन पे आ पड़ी थी

सभी ग़मीं थे मिरे पियाले में ज़हर पा कर
मैं मुतमइन था कि मेरी तकमील की घड़ी थी

सवाल-ए-रुख़ गुलिस्ताँ में आया तो फूल ठहरा
लबों की हसरत सुख़न में पहुँची तो पंखुड़ी थी

ये लोग तो उन दिनों भी ना-ख़ुश थे 'शहरयारा'
कि जिन दिनों मेरे पास जादू की इक छड़ी थी
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Ahmad Shahryar