Aish Dehlvi

Aish Dehlvi

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Aish Dehlvi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Aish Dehlvi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
दोस्त जब दिल सा आश्ना ही नहीं
अब हमें ग़ैर का गिला ही नहीं

जिस का दिल दर्द-आश्ना ही नहीं
उस के जीने का कुछ मज़ा ही नहीं

एक दम हम से वो जुदा ही नहीं
गर जुदा हो तो वो ख़ुदा ही नहीं

आश्नाई पे उस की मत जाना
ले के दिल फिर वो आश्ना ही नहीं

ख़ाक छानी जहान की लेकिन
दिल-ए-गुम-गश्ता का पता ही नहीं

लाख माशूक़ हैं जहाँ में मगर
आह वो नाज़ वो अदा ही नहीं

सई-ए-बे-फ़ाएदा है चारागरो
मरज़-ए-इश्क़ की दवा ही नहीं

दर्द-ए-दिल उन से हम कहा ही किए
पर उन्हों ने कभी सुना ही नहीं

सर फिराता है क्यूँ अबस नासेह
मेरा कहने में दिल रहा ही नहीं

अब वो आए तो आएँ क्या हासिल
ताक़त-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ ही नहीं

मैं तो क्या गोश-ए-चर्ख़ ने भी 'ऐश'
ऐसा बेदाद-गर सुना ही नहीं
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Aish Dehlvi
कुछ कम नहीं हैं शम्अ से दिल की लगन में हम
फ़ानूस में वो जलती है याँ पैरहन में हम

हैं तुफ़्ता-जाँ मुफ़ारक़त-ए-गुल-बदन में हम
ऐसा न हो कि आग लगा दें चमन में हम

गुम होंगे बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन में हम
क़ब्ज़ा करेंगे चीन को ले कर ख़ुतन में हम

गर ये ही छेड़ दस्त-ए-जुनूँ की रही तो बस
मर कर भी सीना चाक करेंगे कफ़न में हम

महव-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ उम्र भर रहे
मशहूर क्यूँ न हों कहो दीवाना-पन में हम

होंगे अज़ीज़ ख़ल्क़ की नज़रों में देखना
गिर कर भी अपने यार के चाह-ए-ज़क़न में हम

छक्के ही छूट जाएँगे ग़ैरों के देखना
आ निकले हाँ कभी जो तिरी अंजुमन में हम

ऐ अंदलीब दावा-ए-बेहूदा पर कहीं
एक आध गुल का मुँह न मसल दें चमन में हम

आशिक़ हुए हैं पर्दा-नशीं पर बस इस लिए
रखते हैं सोज़-ए-इश्क़ निहाँ जान ओ तन में हम

ज़ालिम की सच मसल है कि रस्सी दराज़ है
मिसदाक़ उस का पाते हैं चर्ख़-ए-कुहन में हम

अन्क़ा का 'ऐश' नाम तो है गो निशाँ नहीं
याँ वो भी खो चुके हैं तलाश-ए-दहन में हम
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Aish Dehlvi
फिरा किसी का इलाही किसी से यार न हो
कोई जहान में बरगश्ता-ए-रोज़गार न हो

हम उस की चश्म-ए-सियह-मस्त के हैं मस्ताने
ये वो नशे हैं कि जिस का कभी उतार न हो

जहान में कोई कहता नहीं ख़ुदा-लगती
वो क्या करे जिसे दिल पर भी इख़्तियार न हो

न फाड़े दामन-ए-सहरा को क्यूँ कि दस्त-ए-जुनूँ
रहा जब अपने गरेबाँ में एक तार न हो

न खेल जान पर अपनी तू ऐ दिल-ए-नादाँ
ख़ुदा को याद कर इतना तू बे-क़रार न हो

न भूल ज़ोहद पे लज़्ज़त से बख़्शिश-ए-हक़ की
वो बे-नसीब है जब तक गुनाहगार न हो

तुम्हारे सर की क़सम खा के दर्द दिल का कहूँ
जो मेरे लिखने का यूँ तुम को ए'तिबार न हो

जनाब-ए-शैख़ जी साहिब मैं एक अर्ज़ करूँ
अगर मिज़ाज-ए-मुक़द्दस पे नागवार न हो

जनाब रिंदों से मिलते तो हैं पे डर है मुझे
कि दुश्मनों का किसी दिन वहाँ अचार न हो

बहुत है ख़ेमा-ए-गर्दूं के फूँकने को तो 'ऐश'
इस आह-ए-तुफ़्ता जिगर में असर हज़ार न हो
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Aish Dehlvi
बातें न किस ने हम को कहीं तेरे वास्ते
और हम ने भी न किस की सहीं तेरे वास्ते

हैरान दर-ब-दर पड़े फिरते हैं रात दिन
ख़ुर्शीद ओ माह ज़ोहरा-जबीं तेरे वास्ते

सीमाब ओ बर्क़ ओ शोला-ए-जव्वाला और ये दिल
बेताब उन में कौन नहीं तेरे वास्ते

हम ने तिरी तलाश में ऐ बर्क़-वश किया
याँ एक आसमान ओ ज़मीं तेरे वास्ते

शब सोज़-ए-ग़म से शम्अ-सिफ़त बे-क़रारियाँ
क्या क्या न मेरे दिल को रहीं तेरे वास्ते

तू ज़ेब-ए-बज़्म-ए-ग़ैर रहा और मैं यहाँ
भटका फिरा कहीं का कहीं तेरे वास्ते

ये नाले वो हैं याद रहे तू न गर मिला
पहुँचेंगे ता-ब अर्श-ए-बरीं तेरे वास्ते

कुछ और इख़्तिलाफ़ का बाइस नहीं फ़क़त
आलम में है चुनाँ-ओ-चुनीं तेरे वास्ते

फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से याद रहे 'ऐश' नेमतें
मौजूद होंगी देख यहीं तेरे वास्ते
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Aish Dehlvi
किसी की नेक हो या बद जहाँ में ख़ू नहीं छुपती
छुपाए लाख ख़ुशबू या कोई बदबू नहीं छुपती

ज़बाँ पर जब तलक आती नहीं अलबत्ता छुपती है
ज़बाँ पर जब कि आई बात ऐ गुल-रू नहीं छुपती

यहाँ तो तुझ को सौ पर्दे लगे हैं अहल-ए-तक़्वा से
भला रिंदों से क्यूँ ऐ दुख़्तर-ए-रज़ तू नहीं छुपती

सलीक़ा क्या करे इस में कोई बेताबी-ए-जाँ को
छुपाओ सौ तरह जब दिल हो बे-क़ाबू नहीं छुपती

हिजाब उस में कहाँ है बे-हिजाबी जिस की आदत हो
छुपा कर लाख पीवे गर कोई दारू नहीं छुपती

रुख़-ए-रौशन को तुम क्यूँ छोड़ कर ज़ुल्फ़ें छुपाते हो
चमक रुख़ की छुपाए से तह-ए-गेसू नहीं छुपती

ये रीश ओ जुब्बा ओ दस्तार ज़ाहिद की बनावट है
तबीअत बे-तकल्लुफ़ जिस की हो यकसू नहीं छुपती

कलाम अपना अबस तू अहल-ए-दानिश से छुपाता है
जहाँ में 'ऐश' तर्ज़-ए-शाइर-ए-ख़ुश-गो नहीं छुपती
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Aish Dehlvi
जो होता आह तिरी आह-ए-बे-असर में असर
तो कुछ तो होता दिल-ए-शोख़-ए-फ़ित्नागर में असर

बस इक निगाह में माशूक़ छीन लें हैं दिल
ख़ुदा ने उन की दिया है अजब नज़र में असर

न छोड़ी ग़म ने मिरे इक जिगर में ख़ून की बूँद
कहाँ से अश्क का हो कहिए चश्म-ए-तर में असर

हो उस के साथ ये बे-इल्तिफ़ाती-ए-गुल क्यूँ
जो अंदलीब के हो नाला-ए-सहर में असर

किसी का क़ौल है सच संग को करे है मोम
रक्खा है ख़ास ख़ुदा ने ये सीम-ओ-ज़र में असर

जो आह ने फ़लक-ए-पीर को हिला डाला
तो आप ही कहिए कि हैगा ये किस असर में असर

जो देख ले तो जहन्नम की फेरे बंध जाए
है मेरी आह के वो एक इक शरर में असर

बिगाड़ें चर्ख़ से हम 'ऐश' किस भरोसे पर
न आह में है न सोज़-ए-दिल-ओ-जिगर में असर
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Aish Dehlvi
तू ही इंसाफ़ से कह जिस का ख़फ़ा यार रहे
अपने जीने से न किस तरह वो बे-ज़ार रहे

ज़ख़्म-ए-दिल छीले कभी और कभी ज़ख़्म-ए-जिगर
नाख़ुन-ए-दस्त-ए-जुनूँ कब मिरे बे-कार रहे

इन जफ़ाओं का मज़ा तुम को चखा देवेंगे
हाँ अगर ज़िंदा हम ऐ चर्ख़-ए-जफ़ाकार रहे

मय-कदे में है बड़ी ये ही मुग़ाँ की पीरी
कि बस उस चश्म-ए-सियह-मस्त से हुश्यार रहे

जलते भुनते रहे हम बज़्म-ए-बुताँ में लेकिन
शम्अ साँ उस पे भी सर देने को तय्यार रहे

यूँ तो क्या ख़्वाब में भी यार का मिलना मालूम
अपने गर आह यही ताला-ए-बेदार रहे

एक जा सीने में उन दोनों का रहना है मुहाल
या ये दिल ही रहे या आह-ए-शरर-बार रहे

उस से दिल ख़ाक हो उम्मीद-ए-हुसूल-ए-मतलब
जिस से इक बोसे पे सौ तरह की तकरार रहे

ले के पैकाँ से तिरे तीर बता तो क़ातिल
ख़ून में डूबे नहीं कब ता लब-ए-सोफ़ार रहे

जिंस-ए-दिल आतिश-ए-उल्फ़त में जले जो चाहे
पर किसी तरह तिरी गर्मी-ए-बाज़ार रहे

बाज़ी-ए-इश्क़ में चिपके रहो क्या ख़ाक कहें
एक दिल रखते थे पास अपने सो बार रहे

ऐसा दम नाक में आया है कि हम राज़ी हैं
'ऐश' गर सीने में इस दिल के एवज़ ख़ार रहे
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Aish Dehlvi
मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं
उस पे भी सब्र हम ऐ अरबदा-जू करते हैं

मश्क़-ए-बेदाद-ओ-सितम करते हैं गर वो तो यहाँ
हम भी बेदाद ओ सितम सहने की ख़ू करते हैं

जाँ हुई है निगह-ए-नाम पे उन की आशिक़
चाक दिल तार-ए-नज़र से जो रफ़ू करते हैं

बे-सबाती चमन-ए-दहर की है जिन पे खुली
हवस-ए-रंग न वो ख़्वाहिश-ए-बू करते हैं

आज शमशीर ब-कफ़ निकले हैं वो देखिए तर
आब-ए-शमशीर से किस किस के गुलू करते हैं

है रची जिन के दिमाग़ों में तिरी ज़ुल्फ़ की बू
अम्बर ओ मुश्क की कब बू को वो बू करते हैं

मुश्क ओ अम्बर का उन्हें नाम भी लेना है नंग
यार की ज़ुल्फ़-ए-मोअम्बर को जो बू करते हैं

चाक करते हैं गरेबाँ को वहशत में कभी
चाक-ए-दिल में कभू नाख़ुन को फ़रू करते हैं

देख सौदा-जादा-ए-उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ ऐ 'ऐश'
वादी-ए-इश्क़ में क्या क्या तग-ओ-पू करते हैं
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Aish Dehlvi
जिस दिल में तिरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं होता
वो दिल नहीं होता नहीं होता नहीं होता

आशिक़ जिसे कहते हैं वो पैदा नहीं होता
और होए भी बिल-फ़र्ज़ तो मुझ सा नहीं होता

जो कुश्ता-ए-तेग़-ए-निगह-ए-यार हैं उन पर
कुछ कारगर एजाज़-ए-मसीहा नहीं होता

माना कि सितम करते हैं मा'शूक़ मगर आप
जो मुझ पे रवा रखते हैं ऐसा नहीं होता

जो मस्त है साक़ी निगह-ए-मस्त का वो तू
मिन्नत-कश-ए-जाम-ओ-मय-ओ-मीना नहीं होता

कहता है कोई शोला-ए-जव्वाला कोई बर्क़
इस दिल पे गुमाँ लोगों को क्या क्या नहीं होता

ज़ाहिद हो दो-चार-ए-निगाह-ए-मस्त तो देखें
आलूदा बा-मय क्यूँकि मुसल्ला नहीं होता

हाँ कुछ तो बयान-ए-हवस-ए-दिल में है लज़्ज़त
जो लब से जुदा हर्फ़-ए-तमन्ना नहीं होता

तस्कीन-ए-दिल-ए-सोख़्ता-ए-शम्अ' की ख़ातिर
किस शब पर-ए-परवाना से पंखा नहीं होता

दिल इश्क़ ने इतना भी न छोड़ा कि जो कहवें
तक़्सीम जुज़-ए-ला-यतजज्ज़ा नहीं होता

दे बैठे हो दिल 'ऐश' तुम उन लोगों को जिन की
बेदाद का वाँ भी कोई शुन्वा नहीं होता
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Aish Dehlvi