0

तू ही इंसाफ़ से कह जिस का ख़फ़ा यार रहे  - Aish Dehlvi

तू ही इंसाफ़ से कह जिस का ख़फ़ा यार रहे
अपने जीने से न किस तरह वो बे-ज़ार रहे

ज़ख़्म-ए-दिल छीले कभी और कभी ज़ख़्म-ए-जिगर
नाख़ुन-ए-दस्त-ए-जुनूँ कब मिरे बे-कार रहे

इन जफ़ाओं का मज़ा तुम को चखा देवेंगे
हाँ अगर ज़िंदा हम ऐ चर्ख़-ए-जफ़ाकार रहे

मय-कदे में है बड़ी ये ही मुग़ाँ की पीरी
कि बस उस चश्म-ए-सियह-मस्त से हुश्यार रहे

जलते भुनते रहे हम बज़्म-ए-बुताँ में लेकिन
शम्अ साँ उस पे भी सर देने को तय्यार रहे

यूँ तो क्या ख़्वाब में भी यार का मिलना मालूम
अपने गर आह यही ताला-ए-बेदार रहे

एक जा सीने में उन दोनों का रहना है मुहाल
या ये दिल ही रहे या आह-ए-शरर-बार रहे

उस से दिल ख़ाक हो उम्मीद-ए-हुसूल-ए-मतलब
जिस से इक बोसे पे सौ तरह की तकरार रहे

ले के पैकाँ से तिरे तीर बता तो क़ातिल
ख़ून में डूबे नहीं कब ता लब-ए-सोफ़ार रहे

जिंस-ए-दिल आतिश-ए-उल्फ़त में जले जो चाहे
पर किसी तरह तिरी गर्मी-ए-बाज़ार रहे

बाज़ी-ए-इश्क़ में चिपके रहो क्या ख़ाक कहें
एक दिल रखते थे पास अपने सो बार रहे

ऐसा दम नाक में आया है कि हम राज़ी हैं
'ऐश' गर सीने में इस दिल के एवज़ ख़ार रहे

- Aish Dehlvi

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Aish Dehlvi

As you were reading Shayari by Aish Dehlvi

Similar Writers

our suggestion based on Aish Dehlvi

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari