Anees Ansari

Anees Ansari

@anees-ansari

Anees Ansari shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Anees Ansari's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
इस शहर के लोग अजीब से हैं अब सब ही तुम्हारे असीर हुए
जब जाँ पे बरसते थे पत्थर उस वक़्त हमीं दिल-गीर हुए

कुछ लोग तुम्हारी आँखों से करते हैं तलब हीरे मोती
हम सहरा सहरा डूब गए इक आन में जोगी फ़क़ीर हुए

तुम दर्द की लज़्ज़त क्या जानो कब तुम ने चखे हैं ज़हर-ए-सुबू
हम अपने वजूद के शाहिद हैं संगसार हुए शमशीर हुए

ये पहरों पहरों सोच-नगर रातों रातों बे-ख़्वाब लहर
फिर कैसे कटेगा धूप-सफ़र जब पीर लुटी जागीर हुए

इक उम्र गुज़ारी है यूँ ही सायों के तआ'क़ुब में हम ने
टुक बैठ गए फिर चल निकले हँस बोल लिए दिल-गीर हुए

कुछ शहर तुम्हारा तंग भी था कुछ तुम भी थे कमज़ोर ज़रा
पत्थर की निगाहों के डर से तुम अपने ही घर में असीर हुए
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Anees Ansari
पथरीली सी शाम में तुम ने ऐसे याद किया जानम
सारी रात तुम्हारी ख़ातिर मैं ने ज़हर पिया जानम

सूरज की मानिंद बना हूँ रेज़ा रेज़ा बिखरा हूँ
अब जीवन का सर-चश्मा हूँ वैसे ख़ूब जिला जानम

तुम ने मुझ में जो कुछ खोया उस की क़ीमत तुम जानो
मैं ने तुम से जो कुछ पाया है वो बेश-बहा जानम

तुम को भी पहचान नहीं है शायद मेरी उलझन की
लेकिन हम मिलते रहते तो अच्छा ही रहता जानम

ये साहब जिन से मिल कर सब का जी ख़ुश हो जाता है
रात गए तक उन के कमरे में जलता है क्या जानम

रख पाओ तो रोक लो हम को गहराई के बासी हैं
बहते पानी के क़तरों में होता है दरिया जानम

दर्द-ए-जुदाई में लिक्खे हैं शे'र तुम्हारे नाम बहुत
तुम मेरे घर में रहतीं तो क्या ऐसा होता जानम
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Anees Ansari
बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो अगरचे मेहरबाँ है वो
अगरचे मेहरबाँ है वो बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो

मिसाल-ए-आसमाँ है वो मुझे ज़रख़ेज़ करता है
मुझे ज़रख़ेज़ करता है मिसाल-ए-आसमाँ है वो

करीम-ओ-साएबाँ है वो मुझे महफ़ूज़ रखता है
मुझे महफ़ूज़ रखता है करीम-ओ-साएबाँ है वो

अगरचे बे-मकाँ है वो पनाहें मुझ को देता है
पनाहें मुझ को देता है अगरचे बे-मकाँ है वो

बड़ा आराम-ए-जाँ है वो लिए फिरता है सीने में
लिए फिरता है सीने में बड़ा आराम-ए-जाँ है वो

अगरचे बे-ज़बाँ है वो नज़र से बात करता है
नज़र से बात करता है अगरचे बे-ज़बाँ है वो

इक ऐसा ज़हर-ए-जाँ है वो मैं जिस को पी के ज़िंदा हूँ
मैं जिस को पी के ज़िंदा हूँ इक ऐसा ज़हर-ए-जाँ है वो

कि बहर-ए-बे-कराँ है वो तभी साहिल नहीं मिलता
तभी साहिल नहीं मिलता कि बहर-ए-बे-कराँ है वो

मिज़ाज-ए-दुश्मनाँ है वो पराया भी है अपना भी
पराया भी है अपना भी मिज़ाज-ए-दुश्मनाँ है वो

कमाल-ए-दोस्ताँ है वो वही अव्वल वही आख़िर
वही अव्वल वही आख़िर कमाल-ए-दोस्ताँ है वो

अमीर-ए-कारवाँ है वो मैं उस की राह चलता हूँ
मैं उस की राह चलता हूँ अमीर-ए-कारवाँ है वो

बड़ा गौहर-फ़िशाँ है वो मुझे भी कुछ गुहर देगा
मुझे भी कुछ गुहर देगा बड़ा गौहर-फ़िशाँ है वो

सुनहरी कहकशाँ है वो दहकते हैं कई सूरज
दहकते हैं कई सूरज सुनहरी कहकशाँ है वो

सुना है मेहरबाँ है वो 'अनीस' इतराते फिरते हैं
'अनीस' इतराते फिरते हैं सुना है मेहरबाँ है वो
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Anees Ansari
दिल पर यूँही चोट लगी तो कुछ दिन ख़ूब मलाल किया
पुख़्ता उम्र को बच्चों जैसे रो रो कर बेहाल किया

हिज्र के छोटे गाँव से हम ने शहर-ए-वस्ल को हिजरत की
शहर-ए-वस्ल ने नींद उड़ा कर ख़्वाबों को पामाल किया

उथले कुएँ भी कल तक पानी की दौलत से जल-थल थे
अब के बादल ऐसे सूखे नद्दी को कंगाल किया

सूरज जब तक ढाल रहा था सोना चाँदी आँखों में
भीड़ में सिक्के ख़ूब उछाले सब को माला-माल किया

लेकिन जब से सूरज डूबा ऐसा घोर अंधेरा है
साए सब मादूम हुए और आँखों को कंगाल किया

सख़्त ज़मीं में फूल उगाते तो कहते कुछ बात हुई
हिज्र में तुम ने आँसू बो कर ऐसा कौन कमाल किया

आख़िर में 'अंसारी'-साहब अपने रंग में डूब गए
उस को दुआ दी उस को छेड़ा शहर अबीर गुलाल किया
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Anees Ansari
नाम तेरा भी रहेगा न सितमगर बाक़ी
जब है फ़िरऔन न चंगेज़ का लश्कर बाक़ी

अपने चेहरों को सियाही में छुपाने वालो
नोक-ए-नेज़ा पे है सूरज सा कोई सर बाक़ी

तेरे विर्से पे हैं ग़ासिब की उक़ाबी नज़रें
ग़फ़लतों से नहीं रहते ये जवाहर बाक़ी

इक सदफ़ सत्ह-ए-समंदर पे बहा जाता है
और साहिल पे नहीं एक शनावर बाक़ी

एक सफ़ हों तो बनें सीसा पिलाई दीवार
हों अदू के लिए राहें न कहीं दर बाक़ी

क़द्र कम होती है तक़्सीम जो होता है अदू
हासिल-ए-जम्अ में बरकत है बराबर बाक़ी

जाल फिर लाया है सय्याद फँसाने के लिए
मिल के उड़ जाएँ परिंदे न रहे डर बाक़ी

ज़ुल्म से सर को न टकराएँ तो फिर सज्दा करें
हाँ पता है कि दर होगा न कहीं सर बाक़ी

हम शहीदों को कभी मुर्दा नहीं कहते 'अनीस'
रिज़्क़ जन्नत में मिले शान यहाँ पर बाक़ी
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Anees Ansari
मुझ पे हर ज़ुल्म रवा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ
मुझ को अपने से जुदा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

मैं कि मस्लूब हूँ दे मुझ को भी ज़ालिम का ख़िताब
सुन्नत-ए-ईसा जिला रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

मेरे घर में है जो ग़ासिब तो निकालूँ कि नहीं
मुझ पे इल्ज़ाम-ए-जफ़ा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

तेरे मक़्तूल पे सरगर्म हैं सारे मुंसिफ़
मेरी लाशों को उठा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

गर्म आहों पे है इल्ज़ाम कि हूँ शो'ला-नफ़स
मुझ को फूँकों से बुझा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

क्यूँ सहीफ़ों में लिखा है कि मिलेगा इंसाफ़
लफ़्ज़-ओ-मानी न जुदा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

तेरी ज़म्बील में हर चाल पुरानी है रक़ीब
मुझ को अपनों से लड़ा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

अपने विर्से से तिरा क़ब्ज़ा हटाना है हरीस
नाम दहशत कि बला रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

मैं ने आँखों में जला रखा है आज़ादी का तेल
मत अंधेरों से डरा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

गर मिरा हक़ न मिलेगा तो बिगड़ जाएगी बात
अपने पहलू से लगा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

कर्बला रख के हथेली पे चला हूँ घर से
बैअ'त-ए-ज़ुल्म हटा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

जब ज़मीनों में जड़ें हैं तो किधर जाऊँगा
मेरी शाख़ें न कटा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

अद्ल की मिट्टी में उगते नहीं दहशत के बबूल
अपनी मिट्टी को सफ़ा रख कि मैं जो हूँ सो हूँ

बंद आँखों से सियह-रू नज़र आएगा 'अनीस'
चश्म-ए-बीना को खुला रख कि मैं जो हूँ सो हूँ
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Anees Ansari
जहाँ दर था वहाँ दीवार क्यूँ है
अलग नक़्शे से ये मे'मार क्यूँ है

ख़ुदा आज़ाद था हाकिम की हद से
ख़ुदा के शहर में सरकार क्यूँ है

बहुत आसान है मिल-जुल के बहना
नदी और धार में पैकार क्यूँ है

हज़ारों रंग के फूलों से खिंच कर
बना है शहद तो बेकार क्यूँ है

किसी भी सम्त से आ कर परिंदे
सजाएँ झील तो आज़ार क्यूँ है

तिरी महफ़िल में सब बैठे हैं आ कर
हमारा बैठना दुश्वार क्यूँ है

बना कर रख तू घर अच्छा रहेगा
तू मालिक बन किराए-दार क्यूँ है

तुम्हारे साथ हम आगे बढ़े थे
हमारी पीठ पर तलवार क्यूँ है

ख़ुदा से क्या रक़ाबत है सनम की
रह-ए-मस्जिद नज़र में ख़ार क्यूँ है

इबारत में न कर तहरीफ़ बेजा
हमारे नाम से बेज़ार क्यूँ है

परिंदे को जो मौक़ा दो दिखा दे
बंधे पर का सफ़र लाचार क्यूँ है

पड़ोसी हो तो फल या फूल लाते
तुम्हारे हाथ में हथियार क्यूँ है

ज़मीं फैली हुई है आसमाँ तक
बस इक टुकड़े पे यूँ तकरार क्यूँ है
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Anees Ansari
भर नहीं पाया अभी तक ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए
दिल को थामे हैं लहू फिर भी है जारी हाए हाए

दर्द का एहसास घट जाता अगर चाहे कोई
हो रही है और उल्टे दिल-फ़िगारी हाए हाए

जिस्म तो पहले ही ज़ख़्मी था मगर बाक़ी था दिल
अब अदू के हाथ में ख़ंजर है भारी हाए हाए

हिज्र में वैसे भी आती है मुसीबत जान पर
पर रक़ीबों की अलग है ख़ंदा-कारी हाए हाए

रेज़ा रेज़ा कर दिया ज़ालिम ने सारे जिस्म को
उड़ रही है ख़ाक पैरों पर हमारी हाए हाए

दिल गिरफ़्ता हो के चुप बैठे हैं शायद इस तरह
रहम आए देख कर सूरत हमारी हाए हाए

दस्त-ए-क़ातिल सैद बनने से नहीं रुकता कभी
है अबस बेचारगी-ओ-आह-ओ-ज़ारी हाए हाए

जो परिंदे उड़ नहीं सकते अब उन की ख़ैर हो
आने वाला है इसी जानिब शिकारी हाए हाए

राह से पत्थर उठा कर सू-ए-ज़ालिम फेंक दे
गर नहीं तीरों की तुझ में ज़र्ब-कारी हाए हाए

एक क़िबला इक अज़ाँ और एक मज्लिस इक इमाम
काश आ जाए समझ में ये तुम्हारी हाए हाए
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Anees Ansari
जिस को समझे थे तवंगर वो गदागर निकला
ज़र्फ़ में कासा--दरवेश समुंदर निकला

कभी दरवेश के तकिया में भी आ कर देखो
तंग-दस्ती में भी आराम मयस्सर निकला

मुश्किलें आती हैं आने दो गुज़र जाएँगी
लोग ये देखें कि कमज़ोर दिलावर निकला

जब गिरफ़्तों से भी आगे हो पहुँच मुट्ठी की
तब लगेगा कि समुंदर में शनावर निकला

कोई मौहूम सा चेहरा जो बुलाता है हमें
बादलों की तरह शक्लें वो बदल कर निकला

दिल अजब चीज़ है किस मिट्टी में जा कर बोएँ
जड़ यूँ पकड़े कि लगे पेड़ तनावर निकला

लाश क़ातिल ने खुली फेंक दी चौराहे पर
देखने वाला कोई घर से न बाहर निकला

देखने में तो धनक चंद ही लम्हे थी 'अनीस'
सात रंगों का मगर दीदनी मंज़र निकला
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Anees Ansari