Ghaus Mohammad Ghausi

Ghaus Mohammad Ghausi

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Ghaus Mohammad Ghausi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ghaus Mohammad Ghausi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
जो मिस्ल-ए-तीर चला था कमान सा ख़म है
निगाह-ए-दोस्त में तासीर-ए-इस्म-ए-आज़म है

ख़ुशा कि वो हैं मिरे रू-ब-रू ब-नफ़्स-ए-नफ़ीस
ज़हे कि आज मिरी आरज़ू मुजस्सम है

मुहीत-ए-हुस्न-ए-कराँ-ता-कराँ नहीं न सही
बिसात-ए-शीशा-ए-दिल जिस क़दर है ताहम है

अना-पसंद अना के नशे में भूल गए
ये शहद वो है कि जिस के ख़मीर में सम है

हवा से करता है बातें तिरी महक पा कर
तिरे ग़ज़ाल-ए-जुनूँ में बला का दम-ख़म है

ये रंग-ओ-नूर ये ख़ुश्बू ये कैफ़-सामानी
हरीम-ए-नाज़ है या आलिमों का आलम है

न जा तबस्सुम-ए-लब-हा-ए-ख़ुश्क पर ऐ दोस्त
हँसी नहीं ये तरक़्क़ी पसंद मातम है

तो क्या चराग़-ए-तमन्ना का मैं मुहाफ़िज़ हूँ
जब उन को फ़िक्र नहीं है यहीं किसे ग़म है

मिरा मिज़ाज है यारों पे वार दूँ ख़ुद को
मिरा वजूद भी अंगुश्तरी का नीलम है

धुआँ धुआँ नज़र आती है बज़्म-ए-फ़न 'ग़ौसी'
यहाँ चराग़ ज़ियादा हैं रौशनी कम है
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Ghaus Mohammad Ghausi
तुम्हारा दिल तो हमारे सुभाव जैसा है
हटा के चेहरे से चेहरा दिखाओ जैसा है

वो चूकता ही नहीं जिस पे दाव जैसा है
हमें ख़बर है वहाँ रख-रखाव जैसा है

मुझे धकेल कर उस का ज़मीर जाग उठा
अब उस का हाल भी तूफ़ाँ में नाव जैसा है

तो क्या वो दस्त-ए-मशिय्यत का शाहकार नहीं
पुराना यार है यारो निभाओ जैसा है

सुनहरे ख़्वाब दिखाए न आप ही देखे
हमारा यार हमारे सुभाव जैसा है

उभर रही हैं नए ख़ून में नई क़द्रें
ख़ुलूस में भी घुमाओ फिराव जैसा है

ये और बात कि दम दे रहा हो सोज़-ए-दरूँ
बुझा हुआ वो ब-ज़ाहिर अलाव जैसा है

खुलेगा ख़ुद वो किसी रोज़ मिस्ल-ए-बंद-ए-क़बा
न छुप सकेगा लहू में रचाव जैसा है

वो उस का हाल-ए-ज़बूँ उस पे ख़ंदा-ए-बे-बाक
हसीं समाज के चेहरे पे घाव जैसा है

है अपनी पीठ का हर ज़ख़्म आइना 'ग़ौसी'
मिरे रफ़ीक़ों को मुझ से लगाव जैसा है
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Ghaus Mohammad Ghausi
न होते शाद आईन-ए-गुलिस्ताँ देखने वाले
फ़साना भी अगर पढ़ लेते उनवाँ देखने वाले

हलाकत-ख़ेज़ ईजादों पे दुनिया फ़ख़्र करती है
कहाँ हैं इर्तिक़ा-ए-नौ-ए-इंसाँ देखने वाले

जो मुमकिन हो तुम अपने हाथ की रेखा खुरच डालो
कि हम हैं तो सही ख़्वाब-ए-परेशाँ देखने वाले

ये रख़्ने हैं ये दर हैं ये तिरे अज्दाद के सर हैं
इधर आ कतबा-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ देखने वाले

तुलू-ए-आफ़्ताब-ए-आगही क्या ख़ाक देखेंगे
हिक़ारत से मिरा चाक-ए-गरेबाँ देखने वाले

तो फिर कैसी नज़र-बंदी तिलसिमात-ए-तदब्बुर क्या
जो ख़ुद को देख लें जश्न-ए-चराग़ाँ देखने वाले

शिकस्त-ए-ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा मुक़द्दर ही सही 'ग़ौसी'
उन्हें देखेंगे फिर भी ता-ब-इम्काँ देखने वाले
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Ghaus Mohammad Ghausi
वो यक़ीं पैकर है किस का नूर-ए-दीदा कौन है
ज़ुल्मत-ए-शब में चराग़-ए-आसा दमीदा कौन है

गर्द-ए-जादा कौन है मंज़िल रसीदा कौन है
वक़्त क्या कहता है सुनिए बरगुज़ीदा कौन है

ज़हर-ए-ग़म पी जुज़-ओ-जाँ कर फिर भी मौत आए तो क्या
यूँ भी अमृत का यहाँ लज़्ज़त-चशीदा कौन है

फ़र्श से ता-अर्श यकसाँ है सदा-ए-मर्हबा
देखना ये सर-ब-कफ़ ये सर-बुरीदा कौन है

बात करते हैं तो मुँह से दूध की आती है बू
उन में अपनी महफ़िलों का रंग-दीदा कौन है

ख़ाक से पा कर मफ़र किस को न ख़ुश आया सफ़र
दिल गिरफ़्ता कौन है ख़ातिर-कबीदा कौन है

अपने साए पर ही जब मरकूज़ थे ज़ेहन-ओ-नज़र
कोई क्यों कर देखता क़ामत-कशीदा कौन है

जब दुर-ए-किरदार पर आँच आ गई क्या रह गया
अब ये सर्फ़-ए-मातम-ए-रंग-ए-परीदा कौन है

किस क़दर शाइस्तगी से कह गया वो अपना ग़म
दोस्तों की ख़ैर हो दुश्मन-गज़ीदा कौन है

ग़म न कर 'ग़ौसी' अगर मुर्दा नहीं तेरा ज़मीर
तुझ से बढ़ कर ख़ुद तिरा दीदा-शुनीदा कौन है
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हिसार-ए-कासा-ए-सर तोड़ कर निकल आए
तलब हुई थी तो सज्दों के पर निकल आए

हर इक ज़मीर से पर्दा उठा गए पत्थर
किसी के ऐब किसी के हुनर निकल आए

सँवर सँवर के मशिय्यत सँवारती है जिन्हें
इधर तो कोई नहीं हम किधर निकल आए

मिरा ख़रोश-ए-जुनूँ जब भी रंग-पाश हुआ
मिरी तरफ़ निगराँ कितने दर निकल आए

कहाँ है होली जो देखे ब-यक-करिश्मा दो-कार
घिरे थे आग में हम भी मगर निकल आए

ब-ईं-नज़ाकत-ए-तख़्लीक़ ठोकरें खाने
ये पत्थरों में कहाँ शीशागर निकल आए

फ़राज़-ए-मंज़िल-ए-रफ-रफ सवारगी सौगंद
ख़ला में और बसीरत के पर निकल आए

लब-ए-फ़ुरात अजब शान-ए-सरफ़राज़ी थी
गुमाँ था दश्त में नेज़ों के सर निकल आए

है आगही भी अगर जाँ-गुसिल तो हो 'ग़ौसी'
हरीम-ए-बे-ख़बरी से मगर निकल आए
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Ghaus Mohammad Ghausi
मुंतशिर शहज़ाद-गान-ए-दिल का शीराज़ा न हो
काश यारों की हँसी फ़ित्नों का ग़म्माज़ा न हो

अब वो सोने का सही लेकिन मिरे किस काम का
जिस मकाँ में कोई खिड़की कोई कोई दरवाज़ा न हो

वो जवाँ ख़ून और उस पर नश्शा-ए-दीदा-वरी
क्या करें वो भी जो मेरे ग़म का अंदाज़ा न हो

याद है कुछ तुम ने कल ख़ाका उड़ाया था मिरा
फूल सी आँखों में शबनम कल का ख़म्याज़ा न हो

फिर जुनूँ क्यूँ-कर सजे दुनिया को कैसे रंग दे
बाइ'स-ए-तहरीक अगर यारों का आवाज़ा न हो

काश मेरे ग़म का साया भी रहे अपनों से दूर
काश अब यकजा मिरी यादों का शीराज़ा न हो

आ गले मिलने से पहले क्यूँ न मिल कर देख लें
दिल के तह-ख़ाने में कोई चोर दरवाज़ा न हो

वो तो मुर्दा हैं उन्हें एहसास की ख़ुशबू से क्या
अपने अंदाज़-ए-नज़र का जिन को अंदाज़ा न हो

काश ऐ 'ग़ौसी' ज़माने भर का बचपन लौट आए
सब के चेहरों पर हक़ीक़ी नूर हो ग़ाज़ा न हो
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Ghaus Mohammad Ghausi
हर चंद अभी ख़ुद पर ज़ाहिर में और मिरे अहबाब नहीं
यारों पे फ़िदा होने वाले कम-याब सही नायाब नहीं

दुनिया का भरम क़ाएम रखना औरों के लिए जीना मरना
इस दौर की वो तहज़ीब नहीं इस दौर के वो आदाब नहीं

कश्ती पे थपेड़ों का है असर तीखे सही मौजों के तेवर
फिर भी पस-ए-मंज़र में यारो साज़िश है कोई गिर्दाब नहीं

महबूब-अदा हैरत-अफ़्ज़ा ख़ुश्बू-सीरत जल्वा-सूरत
ये ख़्वाब हमारे अपने हैं ये ख़्वाब पराए ख़्वाब नहीं

हर मौज-ए-रवाँ बे-फ़ैज़ रही बे-साया शजर जैसी उभरी
दरिया भी सराब-आसा निकला इक लब-तिश्ना सैराब नहीं

बाज़ार-ए-वफ़ा और बे-रौनक़ ये तो अलमिय्या है 'ग़ौसी'
हीरे हैं मगर ख़ुश-ताब नहीं मोती हैं मगर पुर-आब नहीं
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