Ghazanfar

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Ghazanfar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ghazanfar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
  • Nazm
तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे
जिस दिन तुम आँखें खोलोगे दुनिया को जब देखोगे

धीरे धीरे हर जानिब सन्नाटा सा छा जाएगा
सो जाएँगी रफ़्ता रफ़्ता आवाज़ें सब देखोगे

खम्बे सारे टूट चुके हैं छप्पर गिरने वाला है
बुनियादों पर जीने वालो ऊपर तुम कब देखोगे

शायद तुम भी मेरे जैसे हो जाओगे आँखों से
सहमे चेहरे गुंग ज़बानें ज़र्द बदन जब देखोगे

वो तो बाज़ीगर हैं उन का मक़्सद खेल दिखाना है
तुम तो फ़रज़ाने हो साहिब कब तक कर्तब देखोगे

पहले तो सरसब्ज़ रहोगे फिर पीले पड़ जाओगे
जिस दिन तुम भी रंग-नगर में सुर्ख़ कोई लब देखोगे

बैठे बैठे घर में यूँ ही पल पल घुट घुट मरना है
या निकलोगे घर आँगन से जीने का ढब देखोगे

कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
आड़ी-तिरछी सुर्ख़ लकीरें उन पर भी अब देखोगे

खम्बे तो ये गाड़ चुके हैं रस्सी भी अब तानेंगे
ये भी खेल ही खुलेंगे इन के भी कर्तब देखोगे
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यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है
जो इस धुएँ में मिरी साँस भी सलामत है

नज़र भी हाल मिरे दिल का कह नहीं पाती
ज़बाँ की तरह मिरी आँख में भी लुक्नत है

जो हो रहा है उसे देखते रहो चुप चाप
यही सुकून से जीने की एक सूरत है

मैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
कि उस के झूट में भी ज़िंदगी की क़ुव्वत है

ये किस की आँख टिकी है उदास मंज़र पर
ये कौन है कि जिसे देखने की फ़ुर्सत है

कोई बईद नहीं ये भी इश्तिहार छपे
हमारे शहर में जल्लाद की ज़रूरत है

सिपर तमाम बदन के हवास डाल चुके
बस एक आँख है जिस में अभी बग़ावत है

दिल-ओ-दिमाग़ में रिश्ता नहीं जहाँ कोई
इक ऐसे जिस्म में जीना हमारी क़िस्मत है

कहीं भी जाएँ सज़ाएँ हमें ही मिलनी हैं
अदालतों की हमारी अजीब हिकमत है

हमारे बीच ये उक़्दा न खुल सका अब तक
किसे विसाल किसे हिज्र की ज़रूरत है

उसी को सौंप दिया हम ने मुंसिफ़ी की ज़माम
कि जिस के ख़्वाब में भी अक्स-ए-ग़ासबिय्यत है
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किसी के नर्म तख़ातुब पे यूँ लगा मुझ को
कि जैसे सारे मसाइल का हल मिला मुझ को

किसी मक़ाम पे वो भी बिछड़ गई मुझ से
निगाह-ए-शौक़ जो देती थी हौसला मुझ को

कि हम-सफ़र को समझने लगा ख़िज़र अपना
ज़रूरतों ने कुछ ऐसा सफ़र दिया मुझ को

तमाम लोग ही दुश्मन दिखाई देते हैं
कोई बताए कि आख़िर ये क्या हुआ मुझ को

मैं तेरी कार का उखड़ा हुआ कोई पुर्ज़ा
सुकूँ तलब है तो मेरी जगह पे ला मुझ को

मिरा वजूद भी क़क़नुस से कम नहीं है मियाँ
यक़ीं न आए तो पूरी तरह जला मुझ को

मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
ज़रूर लम्स कोई उस का छू गया मुझ को

मैं चाह कर भी तुझे क़त्ल कर न पाऊँगा
ये किस का दे दिया तू ने भी वास्ता मुझ को
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