Ghubar Kiratpuri

Ghubar Kiratpuri

@ghubar-kiratpuri

Ghubar Kiratpuri shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ghubar Kiratpuri's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
वो इंसाँ जो शिकार-ए-गर्दिश-ए-अय्याम होता है
भला करता है दुनिया का मगर बदनाम होता है

जो देखो ग़ौर से हर शे'र इक इल्हाम होता है
सभी अशआ'र से ज़ाहिर कोई पैग़ाम होता है

दहल जाते हैं दिल कलियों के गुलशन थरथराता है
चमन में जब कोई ताइर असीर-ए-दाम होता है

ख़िरद हाइल हुआ करती है जब भी राह-ए-उल्फ़त में
जुनून-ए-इश्क़-ए-सादिक़ मुफ़्त में बदनाम होता है

जब आ जाता है ग़ालिब ज़ोर-ए-बातिल हक़-परस्तों पर
निज़ाम-ए-जब्र से हर-सू बपा कोहराम होता है

ये दुनिया है अजब इस में भला क्या क्या नहीं होता
यहाँ मासूम इंसाँ मोरिद-ए-इल्ज़ाम होता है

है मय-ख़ाना 'ग़ुबार' इस में किसी को हक़ नहीं मिलता
ज़बरदस्ती उठा ले जो उसी का जाम होता है
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Ghubar Kiratpuri
ग़म-ए-आशिक़ी से बढ़ कर ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं है
मैं तिरे करम के क़ुर्बां मुझे कुछ कमी नहीं है

मिरे जान-ओ-दिल के मालिक मुझे बे-नियाज़-ए-ग़म कर
किसी और दर पे हरगिज़ ये जबीं झुकी नहीं है

मिरे शहर-ए-जान-ओ-दिल में वो ज़िया बिखेरते हैं
मिरा क़ल्ब है मुजल्ला यहाँ तीरगी नहीं है

ऐ अमीर-ए-शहर-ए-शादाँ मुझे अपने पास रखना
तिरे दर से दूर रह कर कोई ज़िंदगी नहीं है

वही चारा-ए-वफ़ा है जहाँ दिल हो कार-फ़रमा
जहाँ अक़्ल हुक्मराँ हो रह-ए-आशिक़ी नहीं है

ये है राज़-ए-इश्क़-ओ-उल्फ़त न समझ सकेगा वाइज़
जहाँ तीरगी नहीं है वहाँ रौशनी नहीं है

सुनी दुख-भरी कहानी मुझे बारयाब कर के
मिरे दिल में अब तमन्ना कोई दूसरी नहीं है
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किसी के नक़्श-ए-पा पर रख दिया है जब से सर अपना
न दिल अपना न जाँ अपनी न घर अपना न दर अपना

न कोई कारवाँ अपना न मीर-ए-कारवाँ कोई
ख़याल-ए-यार रहता है हमेशा राहबर अपना

कहाँ बाक़ी है अब अक़्ल-ओ-ख़िरद से वास्ता ऐ दिल
मिरा ज़ौक़-ए-नज़र ख़ुद बन गया है राहबर अपना

नसीहत करने वालों का भला हो क्या वो समझेंगे
न क़ाबू इश्क़ पर है और न है दिल पर असर अपना

ख़ुदा जब नाख़ुदा ख़ुद बन गया है मेरी कश्ती का
सफ़ीना मंज़िलें तय कर रहा है बे-ख़तर अपना

मुक़द्दर से कभी होता नहीं मायूस मैं हमदम
मुझे किस बात का ग़म हो क़वी है चारागर अपना

'ग़ुबार' अपनी हक़ीक़त कुछ नहीं है बज़्म-ए-हस्ती में
हूँ ख़ुश-क़िस्मत हबीब-ए-रब हुआ है चारागर अपना
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जिस में न हो सुकूँ नसीब ऐसे जहाँ को क्या करूँ
राहत-ए-दिल न हो जहाँ ऐसे मकाँ को क्या करूँ

सुब्ह नसीम की जगह बाद-ए-सुमूम तुंद-ओ-तेज़
गुल के बजाए ख़ार हैं बाग़-ए-जहाँ को क्या करूँ

वा'दे हज़ार-हा किए रहबर-ए-क़ौम ने मगर
वा'दा कोई वफ़ा नहीं ऐसी ज़बाँ को क्या करूँ

तूती-ए-गुल-अदा नहीं बुलबुल-ए-ख़ुश-नवा नहीं
कर्गस-ओ-ज़ाग़ हों जहाँ ऐसे जहाँ को क्या करूँ

वा'दा पे जी रहा हूँ मैं नाक में आ गया है दम
ज़ाहिरी ग़म को क्या करूँ सोज़-ए-निहाँ को क्या करूँ

जितने भी ख़ास-ओ-आम हैं ज़र के सभी ग़ुलाम हैं
क्या कहूँ मीर-ए-वक़्त को पीर-ए-मुग़ाँ को क्या करूँ

बर-सर-ए-मंज़िल-ए-मुराद धोके दिए हैं क़ौम को
ये तो बताओ फ़ितरत-ए-राहबराँ को क्या करूँ
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