Haidar Qureshi

Haidar Qureshi

@haidar-qureshi

Haidar Qureshi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Haidar Qureshi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
दिलों में दुश्मनों के इस तरह डर बोल उठते हैं
गवाही को छुपाते हैं तो मंज़र बोल उठते हैं

मिरी सच्चाई मेरी बे-गुनाही सब पे ज़ाहिर है
कि अब जंगल कुएँ सहरा समुंदर बोल उठते हैं

वो पत्थर-दिल सही लेकिन हमारा भी ये दा'वा है
हमारे लब जिन्हें छू लें वो पत्थर बोल उठते हैं

बदल जाते हैं इक लम्हे में ही तारीख़ के धारे
कभी जो मौज में आ कर क़लंदर बोल उठते हैं

ये क्या जादू है वो जब भी मिरे मिलने को आता है
ख़ुशी से घर के सब दीवार और दर बोल उठते हैं

ज़बान-ए-हक़ किसी के जब्र से भी रुक नहीं सकती
कि नेज़े की अनी पर भी टँगे सर बोल उठते हैं

लबों की क़ैद से क्या फ़र्क़ आया दिल की बातों में
कि सारे लफ़्ज़ आँखों से उभर कर बोल उठते हैं

अजब अहल-ए-सितम अहल-ए-वफ़ा में ठन गई 'हैदर'
सितम करते हैं वो और ये मुकर्रर बोल उठते हैं
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Haidar Qureshi
लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं
सारे मंज़र आइनों से ख़ुद मिटा कर आए हैं

जल चुके सारी महकती ख़्वाहिशों के जब गुलाब
मौसमों के दुख निगाहों में जला कर आए हैं

एक लम्हे में कई सदियों के नाते तोड़ कर
सोचते हैं अपने हाथों से ये क्या कर आए हैं

रास्ते तो खो चुके थे अपनी हर पहचान तक
हम जनाज़े मंज़िलों के ख़ुद उठा कर आए है

सारे रिश्ते झूट हैं सारे तअ'ल्लुक़ पर फ़रेब
फिर भी सब क़ाएम रहें ये बद-दुआ' कर आए हैं

हर छलकते अश्क में तस्वीर झलकेगी तिरी
नक़्श पानी पर तिरा अनमिट बना कर आए हैं

मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
ज़िंदगी जो क़र्ज़ तेरा था अदा कर आए हैं

सारे शिकवे भूल कर आओ मिलें 'हैदर' उन्हें
वो गए लम्हों को फिर वापस बुला कर आए हैं
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Haidar Qureshi
उस दरबार में लाज़िम था अपने सर को ख़म करते
वर्ना कम-अज़-कम अपनी आवाज़ ही मद्धम करते

इस की अना तस्कीन नहीं पाती ख़ाली लफ़्ज़ों से
शायद कुछ हो जाता असर तुम गिर्या-ए-पैहम करते

सीख लिया है आख़िर हम ने इश्क़ में ख़ुश ख़ुश रहना
दर्द को अपनी दवा बनाते ज़ख़्म को मरहम करते

काम हमारे हिस्से के सब कर गया था दिवाना
कौन सा ऐसा काम था बाक़ी जिस को अब हम करते

हर जाने वाले को देख के रख लिया दिल पर पत्थर
किस किस को रोते आख़िर किस किस का मातम करते

दिल तो हमारा जिसे पत्थर से भी सख़्त हुआ था
पत्थर पानी हो गया सूखी आँखों को नम करते

बन जाता तिरयाक़ उसी का ज़हर अगर तुम 'हैदर'
कोई आयत प्यार की पढ़ते और उस पर दम करते
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Haidar Qureshi
फ़स्ल-ए-ग़म की जब नौ-ख़ेज़ी हो जाती है
दर्द की मौजों में भी तेज़ी हो जाती है

पानी में भी चाँद सितारे उग आते हैं
आँख से दिल तक वो ज़रख़ेज़ी हो जाती है

अंदर के जंगल से आ जाती हैं यादें
और फ़ज़ा में संदल-बेज़ी हो जाती है

ख़ुशियाँ ग़म में बिल्कुल घुल-मिल सी जाती हैं
और नशात में ग़म-अंगेज़ी हो जाती है

शीरीं से लहजे में भर जाती है तल्ख़ी
हीला-जूई जब परवेज़ी हो जाती है

बे-हद पॉवर जिस को भी मिल जाए उस की
तर्ज़ यज़ीदी या चंगेज़ी हो जाती है

ग़ज़लों में वैसे तो सच कहता हूँ लेकिन
कुछ न कुछ तो रंग-आमेज़ी हो जाती है

हुस्न तुम्हारा तो है सच और ख़ैर सरापा
हम से ही बस शर-अंगेज़ी हो जाती है

ज़ाहिर का पर्दा हटने वाली मंज़िल पर
सालिक से भी बद-परहेज़ी हो जाती है

'रूमी' को 'हैदर' जब भी पढ़ने लगता हूँ
बातिन की दुनिया तबरेज़ी हो जाती है
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Haidar Qureshi
जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है
तिरी चाहत में मर जाना ज़रूरी हो गया है

हमें तो अब किसी अगली मोहब्बत के सफ़र पर
नहीं जाना था पर जाना ज़रूरी हो गया है

सितारा जब मिरा गर्दिश से बाहर आ रहा है
तो फिर दिल का ठहर जाना ज़रूरी हो गया है

दरख़्तों पर परिंदे लौट आना चाहते हैं
ख़िज़ाँ-रुत का गुज़र जाना ज़रूरी हो गया है

अंधेरा इस क़दर गहरा गया है दिल के अंदर
कोई सूरज उभर जाना ज़रूरी हो गया है

बहुत मुश्किल हुआ अंदर के रेज़ों को छुपाना
सो अब अपना बिखर जाना ज़रूरी हो गया है

तुझे मैं अपने हर दुख से बचाना चाहता हूँ
तिरे दिल से उतर जाना ज़रूरी हो गया है

नए ज़ख़्मों का हक़ बनता है अब इस दिल पे 'हैदर'
पुराने ज़ख़्म भर जाना ज़रूरी हो गया है
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