Raabia Sultana Nashad

Raabia Sultana Nashad

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Raabia Sultana Nashad shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Raabia Sultana Nashad's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Nazm
मिरी तस्वीर ले कर क्या करोगे
मिरी तस्वीर इक ख़्वाब-ए-परेशाँ
छुपे हैं इस में लाखों ग़म के तूफ़ाँ
मिरी तस्वीर ले कर क्या करोगे
मिरी तस्वीर है मायूस-ओ-मुज़्तर
मेरी तस्वीर रंज-ओ-ग़म का पैकर
ये इक दिन बार हो जाएगी तुम पर
मिरी तस्वीर ले कर क्या करोगे
मिरी तस्वीर में कब ज़िंदगी है
सरापा ग़म सरापा बेकसी है
जबीं रौशन न होंटों पर हँसी है
मिरी तस्वीर ले कर क्या करोगे
मिरी तस्वीर है कुछ धुँदली धुँदली
मिरी तस्वीर है अश्कों से भीगी
मिरी तस्वीर है खोई हुई सी
मिरी तस्वीर ले कर क्या करोगे
न फिर हाथों में यूँ लोगे तुम उस को
न अपने पास रक्खोगे तुम उस को
उठा कर फेंक ही दोगे तुम उस को
मिरी तस्वीर ले कर क्या करोगे
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दिल-ए-मायूस बता ऐ दिल-ए-नाकाम बता
मुब्तला-ए-सितम-ए-गर्दिश-ए-अय्याम बता
जी के मैं क्या करूँ दुनिया में मिरा काम है क्या
ख़ून उम्मीद का होता है सर-ए-बज़्म-ए-तरब
बन गया हौसला ग़म ही मुसीबत का सबब
जी के मैं क्या करूँ दुनिया में मिरा काम है क्या
दर्द बढ़ जाए अगर चारागरी कौन करे
है कठिन राह-ए-वफ़ा राहबरी कौन करे
जी के मैं क्या करूँ दुनिया में मिरा काम है क्या
गुलशन-ए-शौक़ में काँटों के सिवा कुछ न मिला
हाए दुनिया में वफ़ाओं का सिला कुछ न मिला
जी के मैं क्या करूँ दुनिया में मिरा काम है क्या
जुस्तुजू किस की है 'नाशाद' कोई क्या जाने
क्यों दिल-ए-ज़ार है बर्बाद कोई क्या जाने
जी के मैं क्या करूँ दुनिया में मिरा काम है क्या
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दिल है रंजूर यहाँ
है ये दस्तूर यहाँ
रहरव आते हैं यहाँ
लौटे जाते हैं यहाँ
न कोई पास-ए-वफ़ा
और न एहसास-ए-वफ़ा
करते हैं जौर-ओ-जफ़ा
ज़ुल्म है इन को रवा
कुछ भरोसा ही नहीं
कोई अपना ही नहीं
अजनबी बन के रहें
हर जफ़ा दिल पे सहें
रोज़ बेदाद नई
रोज़ उफ़्ताद नई
क्या करें हाल बयाँ
बेकसी का है समाँ
हाल-ए-दिल कुछ न कहें
रोज़ बेदाद सहें
हर तरफ़ आह-ओ-बुका
इक क़यामत है बपा
तंग है तेरी ज़मीं
कोई किस जा हो मकीं
तू सहारा है ख़ुदा
बस भरोसा है तिरा
हाल है उन का बुरा
सुन यतीमों की सदा
बेवा माओं की क़सम
सख़्त जानों की क़सम
ये शहीदान-ए-वफ़ा
जिन का घर-बार जला
कभी मुख़्तार ये थे
आज मजबूर हुए
पाए अब जा के कहाँ
दिल-ए-'नाशाद' अमाँ
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मैं तलाश कर रही थी ग़म-ए-दिल का कुछ बहाना
मिरी राह में ये नाहक़ कहाँ आ गया ज़माना
मिरे हाल पर करम कर कभी दोस्त ग़ाएबाना
वो सुकून बख़्श दिल को कि तड़प उठे ज़माना
है तवाफ़ अब भी जारी तिरे आस्ताँ का लेकिन
नहीं मिल सका जबीं को तिरा संग-ए-आस्ताना
तिरी बारगाह तक हो मिरी किस तरह रसाई
मुझे दी गई गदाई तुझे तख़्त-ए-ख़ुसरवाना
मैं तड़प तड़प के ग़म में रही बे-क़रार-ओ-मुज़्तर
मिरे दिल की धड़कनों को नहीं सुन सका ज़माना
मिरा शौक़-ए-सज्दा-रेज़ी है हनूज़ ना-मुकम्मल
मुझे कोई ये बता दे है कहाँ वो आस्ताना
मिरे ग़म की ज़िंदगी पर मिरे हाल-ए-बेकसी पर
कभी रहम उन को आए कभी रो पड़े ज़माना
कई बार आ के बिजली गिरी सेहन-ए-गुलसिताँ पर
ये रही हमारी क़िस्मत कि जला न आशियाना
मुझे होश ही नहीं कुछ कि मैं शाद हूँ कि 'नाशाद'
है सुरूर-ए-मय से बढ़ कर मिरा ज़ौक़-ए-शाइ'राना
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फ़ुटपाथ पे इक बेकस इंसाँ
तकलीफ़ में तड़पा करता है
दुनिया में कोई ग़म-ख़्वार नहीं
मजबूर है आहें भरता है
बरसात हो या जाड़ा गर्मी
हर मौसम एक गुज़रता है
एहसास न कपड़ों का तन पर
बस भूक के मारे मरता है
अम्बार पे कूड़े के जा कर
वो पेट का दोज़ख़ भरता है
फिर भी तुझ पे जाँ देता है
फिर भी तेरा दम भरता है
है वक़्फ़-ए-सितम दुनिया में जो
जाँ तुझ पे निछावर करता है
कुछ बोल मिरे महबूब ख़ुदा
क्यों उस पे जफ़ाएँ करता है
क्या तेरे ख़ज़ाने ख़ाली हैं
या तू भी किसी से डरता है
जब तेरा कोई क़ानून नहीं
करने दे जो इंसाँ करता है
जिस वक़्त से देखा है यारब
उस वक़्त से ये दिल डरता है
जो तुझ पे मरे जो तुझ से डरे
तू ज़ुल्म उसी पर करता है
आ अर्श से तू भी देख ज़रा
क्यूँकर तिरा बंदा मरता है
'नाशाद' की आँखों से अक्सर
तूफ़ाँ अश्कों का बहता है
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क्यों टीस सी दिल में उठती है क्यों दर्द से जी घबराता है
पहले तो न था ऐसा आलम अब दिल क्यों डूबा जाता है
चाहत से किसी की सीखा था ग़म सहना और आँसू पीना
लेकिन अब तो हर अश्क-ए-अलम आँखों से टपक ही जाता है
आदाब-ए-मोहब्बत की ख़ातिर राहत ग़म को समझे हैं तो फिर
क्यों दिल से आह निकलती है क्यों चक्कर सा आ जाता है
दुनिया हम से आ कर सीखे पाबंदी-ए-रस्म-ओ-राह-ए-वफ़ा
रूदाद-ए-ख़िज़ाँ दोहराते हैं जब ज़िक्र-ए-बहार आ जाता है
ऐ शर्म-ए-मोहब्बत जाग कि अब कुछ देर नहीं रुस्वाई में
पिन्हाँ था जो दिल के पर्दे में वो दर्द ज़बाँ तक आता है
ऐ काश कोई उस से जा कर ये हाल दिल-ए-बर्बाद कहे
बीमार-ए-ग़म-ए-उल्फ़त तेरा है नज़्अ' में दम घबराता है
इस तरह तड़पने लगता है रह रह के दिल 'नाशाद' अक्सर
जैसे कि बगूला उठता है जैसे कोई तूफ़ाँ आता है
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गोशा-ए-दिल में तेरा दर्द छुपाया मैं ने
चश्म-ए-तर को भी न ये राज़ बताया मैं ने
कौन वो शब है जो बे-अश्क बहाए गुज़री
कौन वो ग़म है जो दिल पर न उठाया मैं ने
की ज़माने से कभी कोई शिकायत न गिला
अपने रिसते हुए ज़ख़्मों को छुपाया मैं ने
अब तो दम ज़ब्त की शिद्दत से घटा जाता है
इस क़दर दर्द को सीने में दबाया मैं ने
हैफ़ बर हाल दिल-ए-ज़ार कि आईना हुआ
लाख पर्दे में हर इक राज़ छुपाया मैं ने
ज़िंदगी गुज़री है बे-कैफ़ सी यारब फिर भी
गरचे हँस हँस के हर इक ग़म को मिटाया मैं ने
किस ने ये कश्मकश-ए-शाम-ए-अलम देखी है
जब कोई दर्द उठा दिल में दबाया मैं ने
कब तक इस तौर से 'नाशाद' गुज़ारूँगी हयात
जब ख़ुशी कोई मिली अश्क बहाया में ने
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