बुझे एहसास का पहलू उभारेगी
वो जब आवाज़ से मुझको पुकारेगी
खुली जुल्फ़ें, झुकी पलकें, क़यामत चाल
न जाने ये अदा अब किसको मारेगी
मेरे होठों पे रखके अपने होठों को
मेरी हर साँस में खुशबू उतारेगी
फ़लक के कुल मकीं उसको ही देखेंगे
अभी वो बाम पर जुल्फ़ें सँवारेगी
ख़ुदा उस शख़्स की आँखें बुझा डाले
वो जिसके सामने कपड़े उतारेगी
भले जितना ही कुछ कर लो मगर ये दिल
इक ऐसी शय है जो हर वक़्त हारेगी
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