बड़ी ही जानलेवा सी असर रखतीं तेरी आँखें
सुकूँ को छीन कर दिल पर सितम ढातीं तेरी आँखें
किसी नायाब हीरे सी हिफ़ाज़त जिसकी मैंने की
चुरा लेती थी उस दिल को फ़रेबी थीं तेरी आँखें
भरी रहती है सजदे से दुआ के अश्क में भीगी
किसी मंदिर में दीपक सी मुझे लगतीं तेरी आँखें
मुसीबत कितनी भी आए मैं उससे जीत जाऊँगी
लगा काजल का इक टीका बला हरतीं तेरी आँखें
गुज़ारी ज़िंदगी सब धूप की बैठक में जल जल कर
भरी गर्मी में शीतल छाँव सी रहतीं तेरी आँखें
ज़बाँ जो कह नहीं पाती कई पोशीदा अफ़साने
वो तेरा हाल-ए-दिल बे ख़ौफ़ हो कहतीं तेरी आँखें
अरे लहरें ख़ुमारी में गगन के पार जाती हैं
समंदर का भी प्याला जाम से भरतीं तेरी आँखें
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