0

ये तर्ज़-ए-तकल्लुम है तिरा हम-नफ़साँ से  - Ahmad Aqeel

ये तर्ज़-ए-तकल्लुम है तिरा हम-नफ़साँ से
तू देख रहा है नज़र-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से

तहक़ीर मिरी इस से सिवा बज़्म में क्या हो
मैं तुझ से मुख़ातिब तू फुलाँ-इब्न-ए-फुलाँ से

क्या मा'रका-ए-तूर बपा होने लगा है
इक शो'ला लपकता है मिरे क़ल्ब-ए-तपाँ से

मय-ख़ाना-ए-अजमेर से वो रंग है मफ़क़ूद
अब शिकवा मुझे कुछ भी नहीं पीर-ए-मुग़ाँ से

फ़रहाद की मसनद पे अगर बैठना चाहे
फिर सोच की बुनियाद उठा कोह-ए-गिराँ से

हँसते हुए करना है रफ़ू ज़ख़्म-ए-जिगर का
कुछ काम नहीं बनता यहाँ आह-ओ-फ़ुग़ाँ से

शाइ'र हूँ मरूँगा तो किसी ढब से मरूँगा
ऐ दोस्त कोई रेल गुज़रती है यहाँ से

- Ahmad Aqeel

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Ahmad Aqeel

As you were reading Shayari by Ahmad Aqeel

Similar Writers

our suggestion based on Ahmad Aqeel

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari