जो लिखा वो लिख दिया जान-ए-जाँ करूँ आज इस का मलाल क्या
तिरा ज़िक्र हो तिरी बात हो तो करूँ मैं जग का ख़याल क्या
मिली दम-ब-दम हसीं रौशनी कि हयात मेरी निखर गई
तिरे क़ुर्ब से तिरे प्यार से हो क़रार-ए-जाँ तो कमाल क्या
अभी साथ था अभी खो गया अभी तीरगी में डुबो गया
अभी उस की आस न प्यास है तो ख़याल-ए-क़ुर्ब-ओ-विसाल क्या
रह-ए-ज़िंदगी है धुआँ धुआँ नहीं इक किरन का कहीं निशाँ
मैं हूँ बे-यक़ीनी की छाँव में तो नुमूद-ए-रंग-ओ-जमाल क्या
रह-ए-आशिक़ाँ जो हुआ सितम कभी ज़िक्र होगा न उस का कम
यूँही होगा तन जो लहू लहू तो करूँ मैं जंग-ओ-क़िताल क्या
तिरी चाह थी तिरा प्यार था तिरा क़ुर्ब था तिरी दोस्ती
तू नहीं तो फिर ये हिकायतें ये शिकायतें ये मलाल क्या
तुझे तुझ से मैं ने तलब किया तुझे लुत्फ़-ए-जाँ का सबब किया
ये सितम है तू ने ग़ज़ब किया तो करूँ मैं तुझ से सवाल क्या
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Ahmad Raees
our suggestion based on Ahmad Raees
As you were reading Miscellaneous Shayari