पढ़ो इबारत-ए-तख़्लीक़-ए-दर्द चेहरे पर
लिखी है कर्ब की रूदाद ज़र्द चेहरे पर
छुपा रही है ख़द-ओ-ख़ाल झुर्रियाँ बन कर
जमी हुई थी सफ़र में जो गर्द चेहरे पर
कमाल-ए-ज़ब्त तो ये है कि रंग-ए-मायूसी
दम-ए-शिकस्त भी झलके न मर्द-चेहरे पर
पिघलती क्यूँ न भला बर्फ़ अज्नबिय्यत की
नज़र की धूप जो ठहरी थी सर्द चेहरे पर
मैं धूल अहल-ए-चमन मेरी क़द्र क्या जानें
मुझे सजाते हैं सहरा-नवर्द चेहरे पर
हर एक जिस्म बरहना लगे वहाँ 'आज़िम'
जहाँ नक़ाब रखे फ़र्द फ़र्द चेहरे पर
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