हमारे ख़्वाब तन्हा हैं हमारे ग़म अकेले हैं
घिरे हैं कितने हंगामों में फिर भी हम अकेले हैं
तुम्हारे पास भी सूखे हुए कुछ फूल हैं तन्हा
हमारे साथ भी खोए हुए मौसम अकेले हैं
चले आओ कि दिल की धड़कनों में नग़्मगी भर दें
तुम्हारा साज़ तन्हा है मिरे सरगम अकेले हैं
भरी महफ़िल में ये एहसास-ए-तन्हाई हमें क्यों है
न जाने क्यों तिरी दुनिया में या-रब हम अकेले हैं
ख़ुशी ने जिन को ठुकराया वो मंज़िल तक नहीं पहुँचे
सुना है आज तक आवारगान-ए-ग़म अकेले हैं
न जाने लोग पीछे रह गए या दूर जा पहुँचे
जहाँ तक देखते हैं रास्ते में हम अकेले हैं
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Aisha Masroor
our suggestion based on Aisha Masroor
As you were reading Miscellaneous Shayari