अब ज़ेहन में और उसको गहरा कर लिया
उस चाँद को जब मैंने चेहरा कर लिया
महताब जैसे छुप गया हो अब्र में
ज़ुल्फों ने जब रुख़ पे यूँ पहरा कर लिया
दरकार थी इक साथ की फिर जब मुझे
हर यार ने ख़ुद को ही बहरा कर लिया
इक शख़्स के आगे वो बेपर्दा हुआ
ज़ालिम ने मेरा इश्क़ तिहरा कर लिया
ऐसी भी 'चेतन' तुम पे क्या गुज़री है जो
इक इश्क़ में ही दिल को सहरा कर लिया
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Chetan Dadhich
our suggestion based on Chetan Dadhich
As you were reading Zulf Shayari