कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

  - Mirza Ghalib

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया
दिल कहाँ कि गुम कीजे हम ने मुद्दआ' पाया

इश्क़ से तबीअ'त ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया

दोस्त-दार-ए-दुश्मन है ए'तिमाद-ए-दिल मा'लूम
आह बे-असर देखी नाला ना-रसा पाया

सादगी ओ पुरकारी बे-ख़ुदी ओ हुश्यारी
हुस्न को तग़ाफ़ुल में जुरअत-आज़मा पाया

ग़ुंचा फिर लगा खिलने आज हम ने अपना दिल
ख़ूँ किया हुआ देखा गुम किया हुआ पाया

हाल-ए-दिल नहीं मा'लूम लेकिन इस क़दर या'नी
हम ने बार-हा ढूँडा तुम ने बार-हा पाया

शोर-ए-पंद-ए-नासेह ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का
आप से कोई पूछे तुम ने क्या मज़ा पाया

है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
हम ने दश्त-ए-इम्काँ को एक नक़्श-ए-पा पाया

बे-दिमाग़-ए-ख़जलत हूँ रश्क-ए-इम्तिहाँ ता-कै
एक बेकसी तुझ को आलम-आश्ना पाया

ख़ाक-बाज़ी-ए-उम्मीद कार-ख़ाना-ए-तिफ़्ली
यास को दो-आलम से लब-ब-ख़ंदा वा पाया

क्यूँ न वहशत-ए-ग़ालिब बाज-ख़्वाह-ए-तस्कीं हो
कुश्ता-ए-तग़ाफ़ुल को ख़स्म-ए-ख़ूँ-बहा पाया

फ़िक्र-ए-नाला में गोया हल्क़ा हूँ ज़े-सर-ता-पा
उज़्व उज़्व जूँ ज़ंजीर यक-दिल-ए-सदा पाया

शब नज़ारा-परवर था ख़्वाब में ख़याल उस का
सुब्ह मौजा-ए-गुल को नक़्श-ए-बोरिया पाया

जिस क़दर जिगर ख़ूँ हो कूचा दादन-ए-गुल है
ज़ख्म-ए-तेग़-ए-क़ातिल को तुर्फ़ा दिल-कुशा पाया

है मकीं की पा-दारी नाम-ए-साहिब-ए-ख़ाना
हम से तेरे कूचे ने नक़्श-ए-मुद्दआ पाया

ने 'असद' जफ़ा-साइल ने सितम जुनूँ-माइल
तुझ को जिस क़दर ढूँडा उल्फ़त-आज़मा पाया

  - Mirza Ghalib

Ulfat Shayari

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