Dilshad Naseem

Dilshad Naseem

@dilshad-naseem

Dilshad Naseem shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Dilshad Naseem's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

18

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
मेरी ख़िज़ाँ तो सब्ज़ हुई इस ख़ुमार में
आने का उस ने वा'दा किया है बहार में

रक्खी हुई है लाज मिरी मेरे इश्क़ ने
वर्ना तो क्या रखा हुआ है इंतिज़ार में

घर भी मुझे तो दश्त सा लगता है तेरे बिन
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

अब जो सुलूक तू करे ये ज़र्फ़ है तिरा
मैं आ गई हूँ आज तिरे इख़्तियार में

रौशन न हो सकी कभी ये शाम-ए-ग़म मिरी
मैं ने जलाए दीप कई ए'तिबार में

मेरी वफ़ा के ज़िक्र पे उस की वो ख़ामुशी
सारे जवाब मिल गए इस इख़्तिसार में

देखी तो होगी राह मिरी उस ने भी कभी
आया भी होगा अश्क मिरे चश्म-ए-यार में

देखा है मैं ने मो'जिज़ा 'दिलशाद' ऐसा भी
हँसने से उस के गुल खिले हैं कुंज-ए-ख़ार में
Read Full
Dilshad Naseem
हम आयत-ए-क़ुरआनी उस वक़्त ही पढ़ते हैं
हो जान हथेली पर तूफ़ाँ से गुज़रते हैं

कब ताब-ए-नज़ारा है बस दीद की हसरत है
मिल जाओ किसी दिन तुम दिन रात तड़पते हैं

रहता है मोहब्बत को हर वक़्त ही धड़का सा
मौसम की तरह कहते हैं दोस्त बदलते हैं

ये रात की रानी तो अब मेरी सहेली है
हम हँसते हैं दोनों ही दोनों ही महकते हैं

देते हैं मुझे हर दिन तारीख़ वो आने की
वा'दों से मुकरते हैं कब इश्क़ वो करते हैं

सोचा है तुम्हें इतना पर याद नहीं कितना
शब यूँ ही गुज़रती है हम आहें ही भरते हैं

इन रेशमी यादों ने उलझा के रखा मुझ को
दिन मेरे तो अक्सर अब रातों से उलझते हैं

जिन प्यार के लम्हों से दिल शाद सा रहता था
'दिलशाद' वही लम्हे रंजूर सा करते हैं
Read Full
Dilshad Naseem
मैं अपने ख़्वाब में कुछ ख़ाक में मिलाती हूँ
न जाने ख़ाक से ऐसा मैं क्या उठाती हूँ

सितारे भर के मैं दामन में जब भी लाती हूँ
तुम्हारी राह में फिर शौक़ से बिछाती हूँ

कि प्यास देख रहे हैं ये तिश्ना-लब मेरे
मैं अश्क पीती हूँ और तिश्नगी मिटाती हूँ

ज़माने भर से वो मुझ को हसीन लगता है
ज़माने भर से यही बात मैं छुपाती हूँ

कभी कभी तो मुझे याद तक नहीं रहता
कि चाँद जलता है शब में या दिल जलाती हूँ

मैं लिख रही हूँ मोहब्बत पे एक नज़्म मगर
कभी मैं लिखती हूँ उस को कभी मिटाती हूँ

करो ये वा'दा कि मुझ से ख़फ़ा नहीं होना
मैं मानती हूँ कि मैं बात को बढ़ाती हूँ

फ़साने लिखती हूँ मैं ग़म-ज़दा मोहब्बत के
मैं दर्द लिखती हूँ और दर्द ही कमाती हूँ
Read Full
Dilshad Naseem