Faheem Gorakhpuri

Faheem Gorakhpuri

@faheem-gorakhpuri

Faheem Gorakhpuri shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Faheem Gorakhpuri's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
आप को ग़ैर से उल्फ़त हो गई
हाँ जभी तो मुझ से नफ़रत हो गई

इन बुतों से तर्क-ए-उल्फ़त हो गई
मुझ पे ख़ालिक़ की इनायत हो गई

हिज्र में उस के ये वहशत हो गई
अपने साए से भी नफ़रत हो गई

ख़्वाब में उन की ज़ियारत हो गई
आज पूरी दिल की हसरत हो गई

चलिए झगड़ों से फ़राग़त हो गई
जान अपनी नज़्र-ए-फ़ुर्क़त हो गई

हिज्र में मुझ पे जो कुछ गुज़री न पूछ
हो गई जो मेरी हालत हो गई

हद तिरी जौर-ओ-जफ़ा-ओ-ज़ुल्म की
हो गई ओ बे-मुरव्वत हो गई

अब तो वो सूरत भी दिखलाते नहीं
चार दिन साहब-सलामत हो गई

मुझ को इक दिन है बजाए एक साल
आप की दूरी क़यामत हो गई

जान दी नाहक़ को मैं ने हिज्र में
मुफ़्त उस बुत से नदामत हो गई

दी ये साक़ी ने मुझे कैसी शराब
बद-मज़ा मेरी तबीअ'त हो गई

ग़ौर से सुनते हैं इक इक हर्फ़ वो
दास्तान-ए-ग़म हिकायत हो गई

सच कहा ऐ दिल बुतों के ज़ुल्म से
जान आजिज़ फ़िल-हक़ीक़त हो गई

उस के कूचे की गदाई ऐ 'फहीम'
मेरे हक़ में बादशाहत हो गई
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Faheem Gorakhpuri
इक़रार ही के साथ ये इंकार अभी से
दिल तोड़ते हो क्यों मिरा पैमाँ-शिकनी से

हर इक को है अब उन्स उसी बुत की गली से
वीरान हुईं मस्जिदें सूने हैं कलीसे

बोसा ही मुझे दो जो नहीं वस्ल पे राज़ी
अच्छा है वही काम जो हो जाए ख़ुशी से

वाइ'ज़ जो पता ख़ुल्द का पूछे तो बता दूँ
जन्नत की तरफ़ जाते हैं उस बुत की गली से

बाज़ आओ बुतो अपनी जफ़ाओं से ख़ुदा-रा
तोड़ो न मिरा शीशा-ए-दिल तंग-दिली से

तुम आज ज़रूर आओगे लेकिन ये बता दो
सच्चा कोई इक़रार किया भी है किसी से

पूरा करे अल्लाह मिरे दिल का इरादा
मर कर भी न उठ्ठूँ बुत-ए-काफ़िर की गली से

वाइ'ज़ ये बरसते हुए बादल ये घटाएँ
मैं बच नहीं सकता कभी तौबा-शिकनी से

मैं किस से 'फहीम' और कहूँ हाल-ए-ग़म अपना
अल्लाह है आगाह मिरे दर्द-ए-दिली से
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Faheem Gorakhpuri
क्यों कहूँ मैं कि सितम का मैं सज़ा-वार न था
दिल दिया था तुझे किस तरह गुनहगार न था

उम्र भर मुझ से थी हर एक को बे-वज्ह ख़लिश
क्यूँकि मैं गुलशन-ए-आलम में कोई ख़ार न था

क्या न कुछ हो गया इक ग़ैरत-ए-यूसुफ़ के लिए
कब मोहब्बत में मैं रुस्वा सर-ए-बाज़ार न था

क्या ये करता मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर-ओ-दिल का इलाज
चर्ख़-ए-बे-रहम कोई मरहम-ए-ज़ंगार न था

फ़र्द निकला फ़न-ए-दुज़दी में ख़याल-ए-दिलबर
उस का आना था कि पहलू में दिल-ए-ज़ार न था

क्या बहलता गुल-ओ-सुम्बुल से चमन में मिरा दिल
वो तिरी ज़ुल्फ़ न था ये तिरा रुख़्सार न था

अपनी क़िस्मत ही का शाकी मैं मोहब्बत में रहा
शिकवा-ए-चर्ख़ न था कुछ गिला-ए-यार न था

हश्र के रोज़ मिरे हुस्न-ए-गुनह का यारब
तेरी रहमत के सिवा कोई ख़रीदार न था

तेरी आँखों की मोहब्बत का फ़क़त था उसे रोग
वर्ना कुछ नर्गिस-ए-बीमार को आज़ार न था

तुम ने महफ़िल में जगह दी उसे हसरत है मुझे
ग़ैर इस आव-भगत का तो सज़ा-वार न था

नर्गिस उस आँख की बीमार-ए-गुल उस रुख़ पे निसार
बाग़-ए-आलम में किसे इश्क़ का आज़ार न था

हो गई रस्म-ए-मुलाक़ात चलो बहस है क्या
तुम ख़ता पर न थे और मैं भी वफ़ादार न था

दो प्यालों में है साक़ी के अजब कैफ़ 'फहीम'
आँखें मिलते ही वो था कौन जो सरशार न था
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Faheem Gorakhpuri
अश्क आँखों में जिगर में दर्द सोज़िश दिल में है
इक मोहब्बत की बदौलत घर का घर मुश्किल में है

जब न ये दुनिया थी क़ाएम तू हमारे दिल में था
जब से ये दुनिया है क़ाएम तू हमारे दिल में है

इज़्तिराब-ए-तेग़-ए-मक़्तल में कोई देखे ज़रा
साफ़ होता है गुमाँ बिजली कफ़-ए-क़ातिल में है

आज उन के जौर के शिकवे हैं क्या क्या हश्र में
आज कैसी उन की रुस्वाई भरी महफ़िल में है

नज़्अ' में ऐ ना-मुरादी उस की तू रहना गवाह
जो मिरे दिल की तमन्ना थी वो मेरे दिल में है

क़त्ल हो कर भी रहा क़ातिल से क़ाएम वास्ता
रूह मेरी बन के जौहर ख़ंजर-ए-क़ातिल में है

होशियार ऐ रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत होशियार
हर क़दम पर जान का खटका तिरी मंज़िल में है

ऐ ख़याल-ए-तर्क-ए-उल्फ़त क़हर है मिट जाएगी
ये जो इक दुनिया-ए-ग़म आबाद मेरे दिल में है

नक़्स से ख़ाली नहीं होते हसीं भी ऐ 'फहीम'
देख तू सू-ए-फ़लक धब्बा मह-ए-कामिल में है
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Faheem Gorakhpuri
ऐ शैख़ मुझ को ख़्वाहिश-ए-बाग़-ए-इरम नहीं
कूचा बुतों का मेरे लिए उस से कम नहीं

पहली सी उस में आदत-ए-जौर-ओ-सितम नहीं
अफ़्सोस अब यही है कि इस वक़्त हम नहीं

हाँ कू-ए-ग़ैर में तिरे नक़्श-ए-क़दम नहीं
तुझ पर मिरा गुमान ख़ुदा की क़सम नहीं

मुझ नीम-जाँ के क़त्ल में ताख़ीर इस क़दर
मा'लूम हो गया तिरे ख़ंजर में दम नहीं

नालो तुम्हारे हाथ है फ़ुर्क़त में अपनी शर्म
देखें तो आज चर्ख़ नहीं है कि हम नहीं

आब-ए-बक़ा हो मुझ को पिलाओ जो आब-ए-तेग़
तुम ज़हर भी जो दो तो वो अमृत से कम नहीं

करता है मुझ से अहद-ए-वफ़ा तो वो बुत मगर
मुझ को कुछ ए'तिबार ख़ुदा की क़सम नहीं

मुमकिन नहीं कहीं हो ठिकाना 'फहीम' का
तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ अगर ऐ सनम नहीं
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Faheem Gorakhpuri
उम्मीद-ए-वस्ल उस से ख़ुदा की क़सम नहीं
कहते हैं अर्ज़-ए-बोसा पे वो दम-ब-दम नहीं

उस का तवाफ़ करते हैं उश्शाक़-ए-रोज़-ओ-शब
कू-ए-सनम भी रुत्बे में का'बे से कम नहीं

मेरे सवाल-ए-वस्ल को लिल्लाह रद न कर
देख ऐ सनम ये शेवा-ए-अहल-ए-करम नहीं

हूरों का तुझ में हुस्न है परियों की शोख़ियाँ
ऐ बुत क़सम ख़ुदा की किसी से तू कम नहीं

याँ दर्द-ए-दिल से मुझ को नहीं चैन अब घड़ी
उन को क़रार शोख़ियों से एक दम नहीं

नाज़ाँ हों अपने बख़्त-ए-सियह पर न किस तरह
ये तीरगी में यार की ज़ुल्फ़ों से कम नहीं

आँखें जो रोने में तो तड़पने में दिल है फ़र्द
वो अब्र से तो ये किसी बिजली से कम नहीं

अपने लिए मैं उन से रखूँ अब उमीद क्या
सुनता हूँ मर्ग-ए-ग़ैर का कुछ उन को ग़म नहीं

तुम इम्तिहान-ए-ग़ैर कभी करके देख लो
राह-ए-वफ़ा में वो कभी साबित-क़दम नहीं

जो काम उन के लब से वो तेरे क़दम से हो
ठोकर भी तेरी कुछ क़ुम-ए-ईसा से कम नहीं

किस दम नहीं है यार की तेग़-ए-निगह की याद
किस वक़्त मेरे क़त्ल का सामाँ बहम नहीं

हम बेवफ़ाइयाँ न करेंगे अदू की तरह
तुम को वही ख़याल अबस है वो हम नहीं

अपनी वफ़ा का ज़िक्र हसीनों में रह गया
दुनिया में नाम आज हमारा है हम नहीं

आँखें जो रोईं हिज्र में इक हश्र हो बपा
ये दो हबाब नूह के तूफ़ाँ से कम नहीं

मम्नून हूँ ख़ुदा की इनायत का ऐ 'फहीम'
राहत का मेरे कौन सा सामाँ बहम नहीं
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Faheem Gorakhpuri
बुतो कुछ हद भी है जौर-ओ-जफ़ा की
है आख़िर इंतिहा हर इब्तिदा की

जगह क्या हो इन आँखों में हया की
भरी हो जिन में शोख़ी इंतिहा की

शब-ए-ग़म आने में करती है ग़म्ज़े
अदा भाती नहीं मुझ को क़ज़ा की

मिरा दिल ले के अब मुझ पर ये ज़ुल्म आह
दग़ा की तू ने ओ ज़ालिम दग़ा की

मज़ा है मय-कशी का अब्र में आज
फ़लक परछाई है रहमत ख़ुदा की

बुतों की मेहरबानी क्या करम क्या
इनायत चाहिए मुझ पर ख़ुदा की

तुझे ओ बेवफ़ा चाहा हुई चूक
तुझे दिल ने दिया मैं ने ख़ता की

ये क्यों उड़ता है चेहरे का मिरे रंग
हुई किस शोख़ को हाजत हिना की

वो लेंगे जान भी वाँ ले के इक दिन
ख़बर थी इब्तिदा में इंतिहा की

चला दिल कूचा-ए-गेसू को जिस दम
दुआ की पढ़ के दम रद्द-ए-बला की

गए थे वो जहाँ हम ढूँढ लेते
मदद मिलती जो उन के नक़्श-ए-पा की

दिल-ए-मुज़्तर की कुछ हालत न पूछो
तड़प बिजली में है आज इंतिहा की

जब आते हैं चढ़ा जाते हैं दो फूल
वो तुर्बत पर 'फहीम'-ए-मुब्तला की
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Faheem Gorakhpuri
हाँ झूट है वो जान से तुम पर फ़िदा नहीं
सच कह रहे हो ग़ैर का ये हौसला नहीं

याद-ए-बुताँ नहीं कि ख़याल-ए-ख़ुदा नहीं
सब कुछ बशर के दिल में है ऐ शैख़ क्या नहीं

वाक़िफ़ नहीं हो तुम अभी हाल-ए-रक़ीब से
मैं ने बुरा कहा जो उसे क्या बुरा नहीं

ठहरे रहो कि बात ही होगी तमाम रात
डरते हो क्यों कुछ और मिरा मुद्दआ' नहीं

भूली बहिश्त में भी न अंगूर की मुझे
जब पी मय-ए-तहूर कहा वो मज़ा नहीं

पूरी न कर जो वस्ल की ख़्वाहिश तो क़त्ल कर
क्या तेरी तरह तेग़ भी हाजत-रवा नहीं

इक मैं हूँ अपने दिल में तुझे देखता हूँ रोज़
इक तू है मुड़ के मेरी तरफ़ देखता नहीं

पहले तो उस ने वस्ल का इक़रार कर लिया
फिर थोड़ी देर सोच के कहने लगा नहीं

ओ सोने वाले सोने न देगी तुझे कभी
ये मेरी आह-ए-गर्म है बाद-ए-सबा नहीं

जाओ न मुद्दई की मुलाक़ात के लिए
तुम आओ या न आओ ये मतलब मिरा नहीं

ऐ दिल किधर है कूचा-ए-गेसू से दे सदा
ढूँढूँ कहाँ अँधेरे में कुछ सूझता नहीं

साए का भी पता नहीं वो आए इस तरह
सज्दे कहाँ करूँ कि कहीं नक़्श-ए-पा नहीं

साबित है जुर्म-ए-इश्क़ तो दावा-ए-इश्क़ से
हम किस तरह कहें कि हमारी ख़ता नहीं

बरसात में भी तुम कभी पीते नहीं 'फहीम'
ऐसा भी अब पसंद मुझे इत्तिक़ा नहीं
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Faheem Gorakhpuri
तुम को जो मुझ से शिकायत है कि शिकवा न करो
बंदा-पर्वर हमें हर रोज़ सताया न करो

मेहंदी मल कर तो न आने का बहाना न करो
आज है वस्ल की शब ख़ून-ए-तमन्ना न करो

तुम निकालो मिरे अरमाँ मिरा मतलब ये नहीं
मुझ को कहना तो ये है ग़ैर का कहना न करो

तौबा तौबा मय-ए-उल्फ़त को बताते हो हराम
बे-पिए शैख़ जी इस तरह से बहका न करो

मैं कहूँगा तुम्हें ज़ालिम जो सताओगे मुझे
तुम जो ये सुन नहीं सकते हो तो ऐसा न करो

हाँ मिरे हुस्न की तारीफ़ पे चिढ़ते हो अगर
आईना देख के फिर तुम मुझे देखा न करो

अपने आशिक़ से मुनासिब नहीं इस तरह हिजाब
आओ आँखों में मिरी शौक़ से पर्दा न करो

दे गए आलम-ए-रूया में ये तस्कीन मुझे
ज़ब्त उल्फ़त में है लाज़िम तुम्हें रोया न करो

क्या ग़लत है ये रक़ीबों से नहीं रब्त तुम्हें
ये बजा तुम ने कहा शिकवा-ए-बेजा न करो

मैं कोई ग़ैर की हसरत नहीं अरमान नहीं
अपनी महफ़िल से मुझे यार निकाला न करो

उन की पैमाँ-शिकनी उन को ये सिखलाती है
करके उश्शाक़ से वा'दा कभी ईफ़ा न करो

उन का ग़ुस्सा नहीं कुछ क़हर-ए-ख़ुदा हज़रत-ए-दिल
बुत बिगड़ते हैं तो हरगिज़ कोई पर्वा न करो

ग़ैर से क़त-ए-तअल्लुक़ में भलाई है ज़रूर
हाँ अगर कोई बुराई हो तो अच्छा न करो

ख़ाकसारी का सिखाता है तरीक़ा मुझे ज़ोफ़
कहता है बैठ के इस बज़्म से उठा न करो

जान से अपनी गुज़र जाओ मोहब्बत में 'फहीम'
नाम अगर चाहते हो हिम्मत-ए-मर्दाना करो
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Faheem Gorakhpuri
हर दम बताए जाते हैं हम बेवफ़ा नहीं
तुम को नहीं यक़ीन तो शक की दवा नहीं

वो कह रहे हैं नाज़ से हम बेवफ़ा नहीं
किस का है मुँह जो कह दे ये दावा बजा नहीं

ज़ुल्फ़-ए-रसा भी यार की इतनी रसा नहीं
तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ की कुछ इंतिहा नहीं

आने को है वो होश-रुबा हो के बे-नक़ाब
ऐ बे-ख़ुदी जभी तो पता होश का नहीं

ओ रश्क-ए-हूर क़त्ल न कर मुझ ग़रीब को
कूचा तिरा बहिश्त है कुछ कर्बला नहीं

बिजली से भी सिवा है चमक में निगाह-ए-शोख़
सच है वो तेग़ ही नहीं जिस पर जिला नहीं

कल ख़ुश थे वो जो पूछते थे मेरी आरज़ू
कैसी ये मुझ से चूक हुई कुछ कहा नहीं

शाकी हूँ अपने बख़्त का समझो तो बात भी
तुम क्यों बिगड़ रहे हो तुम्हारा गिला नहीं

रो कर अदू के सोग में अंधेर कर दिया
ऐ शोख़ आज आँख तिरी सुर्मा सा नहीं

दिल दे के मैं हुआ हदफ़-ए-नावक-ए-सितम
इस में मिरी ख़ता है तुम्हारी ख़ता नहीं

घबराओ मत जो माँगते हैं हम दुआ-ए-वस्ल
मक़्बूल हो कभी वो हमारी दुआ नहीं

परियों में ये अदा है न हूरों में ये बनाओ
ख़ुद हुस्न कह रहा है कि सानी तिरा नहीं

इंसाफ़ की जो बात है कहता हूँ ऐ 'फहीम'
शाइ'र नहीं जो मो'तक़िद एहसान का नहीं
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Faheem Gorakhpuri
ये सच है उन में ये बातें तो हाँ हैं
बड़े बद-ज़न निहायत बद-गुमाँ हैं

ग़लत है ये वो हम पर मेहरबाँ हैं
कहाँ अपनी समझ है हम कहाँ हैं

न ये पूछें न आए हिज्र में मौत
ख़ुदा भूला है बुत ना-मेहरबाँ हैं

नहीं उठते हैं आ कर ग़ैर हरगिज़
मोहब्बत में यही बार-ए-गराँ हैं

सुबूत-ए-इश्क़ है लब ख़ुश्क सर्द आह
छुपाएँ क्या कि ये सब तो अयाँ हैं

न पूछो बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ हम से
ख़बर भी कुछ नहीं है हम कहाँ हैं

वो कुछ समझें सुना दें हाल-ए-दिल तो
यही ना वो निहायत बद-गुमाँ हैं

जब आया नावक-ए-क़ातिल सू-ए-दिल
जिगर ही बोल उट्ठा हम यहाँ हैं

अभी उक्ता गए तुम हज़रत-ए-दिल
मोहब्बत में हज़ारों इम्तिहाँ हैं

हमें बहला के रहते हैं ग़म-ओ-रंज
यही फ़ुर्क़त में गोया मेहरबाँ हैं

न क्यों रश्क आए बख़्त-ए-मुद्दई पर
कि वो उस पर बहुत ही मेहरबाँ हैं

करें किस तरह चाहत उन की हम कम
अभी नाम-ए-ख़ुदा वो नौजवाँ हैं

कभी कर दी थी ज़ाहिर ख़्वाहिश-ए-वस्ल
जभी से तो बहुत वो बद-गुमाँ हैं

हसीनों में नहीं कोई बुराई
मगर इक ऐब ये है बद-ज़बाँ हैं

न क्यों लुत्फ़ आए अब उन के सितम में
सुना है वो शरीक-ए-आसमाँ हैं

कहे देते हैं अब दिल को सँभालो
कि हम आमादा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ हैं

समझते हैं हमें और ग़ैर को एक
हमारे आप अच्छे क़द्र-दाँ हैं

ज़रा ठहरो जो आए हो दम-ए-नज़अ
कि अब हम कोई दम के मेहमाँ हैं

'फहीम' इतना ही क्या कम है हमें फ़ख़्र
सुनो अहल-ए-ज़बाँ शीरीं-ज़बाँ हैं
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Faheem Gorakhpuri
तड़पें कब तक तिरी फ़ुर्क़त में मोहब्बत वाले
आ इधर भी कभी ओ नाज़-ओ-नज़ाकत वाले

शैख़-ओ-वाइज़ हों न किस तरह करामत वाले
हज़रत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ की हैं ये सोहबत वाले

कब तक ईज़ाएँ सहें तेरी मोहब्बत वाले
रहम कर रहम कर ओ ज़ुल्म की आदत वाले

शैख़ रिंदों को बुरा कह के गुनहगार न बन
अरे कम्बख़्त यही लोग हैं जन्नत वाले

देख जा आ के कि अब नज़्अ' की हालत है मिरी
इतनी तकलीफ़ कर ऐ मेरी नज़ाकत वाले

मुझ से आसी को जो महशर में मिला बाग़-ए-बहिश्त
रह गए देख के मुँह ज़ुहद-ओ-इबादत वाले

तेरी फ़ुर्क़त में तड़पता है मिरा दिल कैसा
देख आ कर कभी ओ सख़्त तबीअत वाले

झूम कर आने तो दे अब्र-ए-सियह ऐ साक़ी
अभी आ जाएँगे मयख़ाने की सोहबत वाले

दिल तो क्या जान फ़िदा कर दें तिरे क़दमों पर
आशिक़ों में तिरे ऐसे भी हैं हिम्मत वाले

चीख़ उठे आते ही मस्जिद में जनाब-ए-वाइज़
चौंक उठते हैं यूँ ही ख़्वाब से ग़फ़्लत वाले

कोई करता है मय-ए-इश्क़ को जाएज़ कोई मनअ'
देखें क्या हुक्म लगाते हैं शरीअ'त वाले

सोहबत-ए-मय में भी मिलता नहीं वाइ'ज़ को मज़ा
ऐसे देखे ही नहीं ख़ुश्क तबीअत वाले

रह गया चुप ही सवालों पे नकीरैन के मैं
सुन चुका था कि फ़रिश्ते हैं ये जन्नत वाले

कल से है वादा-ए-वस्ल आज न कह याद नहीं
इस क़दर भूल न ओ भूल की आदत वाले

क़ब्र से उठ के क़यामत में वहीं पहूँचेंगे
हौज़-ए-कौसर ही पे दम लेंगे तिरे मतवाले

मय्यत-ए-आशिक़-ए-शैदा है उठाना लाज़िम
इतना नाज़ुक न बन ओ मेरे नज़ाकत वाले

मुन्फ़इल हो के हुए पुर्सिश-ए-इस्याँ से बरी
सब से अच्छे रहे महशर में नदामत वाले

हम कहें क्या कि हमें कुछ नहीं आता है 'फहीम'
नाज़ करते हैं तबीअत पे तबीअत वाले
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Faheem Gorakhpuri
रहे हमारे लिए शग़्ल याँ कोई न कोई
दया करे हमें ग़म आसमाँ कोई न कोई

अब इस में हज़रत-ए-ज़ाहिद हों या बरहमन हो
बुतों की चूमता है आस्ताँ कोई न कोई

कभी उठाते हैं दिल पर कभी जिगर पर दाग़
खुला ही रखते हैं हम बोस्ताँ कोई न कोई

बुरा समझ मिरे आ'माल को न ऐ वाइज़
है इस मताअ' का भी क़द्र-दाँ कोई न कोई

जो डगमगाए लहद पर मिरी तो फ़रमाया
ज़रूर दफ़्न है बेताब याँ कोई न कोई

अब इस में हो दिल-ए-बेताब या हो दीदा-ए-तर
करेगा राज़-ए-मोहब्बत अयाँ कोई न कोई

कभी है टीस जिगर में कभी है दिल में दर्द
शब-ए-फ़िराक़ है आज़ार-ए-जाँ कोई न कोई

हमारी आता शरर-बार हो कि नाला-ए-गर
जलाएगा तुझे ओ आसमाँ कोई न कोई

वो ख़ुद ही आएँगे अब या मुझे बुलाएँगे
असर दिखाएगी आह-ओ-फ़ुग़ाँ कोई न कोई

'फहीम' वस्ल का अरमाँ हो या कि हिज्र का ग़म
हमारे दिल में रहा मेहमाँ कोई न कोई
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Faheem Gorakhpuri