Jahanzeb Sahir

Jahanzeb Sahir

@jahanzeb-sahir

Jahanzeb Sahir shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jahanzeb Sahir's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
लुटने वालों का मदद-गार नहीं है कोई
इस क़बीले का भी सरदार नहीं है कोई

मैं वो महरूम-ए-तमन्ना हूँ कि जिस की ख़ातिर
भरी बस्ती में अज़ादार नहीं है कोई

शाह-ज़ादी तिरी आँखों में ये दहशत कैसी
फूल हैं हाथ में तलवार नहीं है कोई

दिल किसी वक़्त किसी पर भी फ़िदा हो जाए
ये वो कश्ती है कि पतवार नहीं है कोई

आँख में अश्क नहीं हैं तो यही लगता है
इक सितारा भी नुमूदार नहीं है कोई

मुझ को इस बात से आता है बहुत ख़ौफ़ यहाँ
सब फ़रिश्ते हैं गुनहगार नहीं है कोई

देख ये ज़ख़्म तराशे हुए लगते हैं तुझे
तू समझता है मिरा यार नहीं है कोई

इक ख़ला और बहुत गहरा ख़ला है 'साहिर'
देख आया हूँ मैं उस पार नहीं है कोई
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Jahanzeb Sahir
यही नहीं है कि शानों से ख़ून बहता है
अभी तो अपनी मियानों से ख़ून बहता है

वो गाल सुर्ख़ हुए हों तो यूँ लगें जैसे
सफ़ेद रेशमी थानों से ख़ून बहता है

ये ख़ामुशी वो बला है कि चीख़ उट्ठे अगर
तो सुनने वालों के कानों से ख़ून बहता है

हमारे ख़्वाब पटकते हैं यूँ हमारे सर
तमाम रात सिरहानों से ख़ून बहता है

वो जंग जीत के ऊँटों का रुख़ बदलने लगे
अभी तो उन की मचानों से ख़ून बहता है

ये अपने दौर के सब से बड़े मुनाफ़िक़ हैं
इसी लिए तो ज़बानों से ख़ून बहता है

तमाम वक़्त गुज़रता है ज़ख़्म सहलाते
तरह तरह के बहानों से ख़ून बहता है

हमें तो इल्म सिखाया नहीं है थोंपा है
हमारे इल्मी ख़ज़ानों से ख़ून बहता है

न जाने कितने ज़माने गुज़र गए साहिर
न जाने कितने ज़मानों से ख़ून बहता है
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Jahanzeb Sahir
तू मेरे साथ हथेली उठा निकल आए
कोई दुआ न सही बद-दुआ' निकल आए

कभी-कभार उसे चूम लें तो मुमकिन है
हमारे मुँह से भी शुक्र-ए-ख़ुदा निकल आए

ख़बर की ताक में बैठे हुए तो चाहेंगे
किसी तरह से कोई वाक़िआ' निकल आए

यही तो दुख है क़बीला भी ख़ानदान था एक
मगर मिज़ाज ही अपने जुदा निकल आए

मरे हुओं की तलाशी में हो भी सकता है
किसी की जेब से उस का पता निकल आए

उठा रहा हूँ यही सोच कर ज़ियाँ पे ज़ियाँ
किसी की ख़ैर किसी का भला निकल आए

मुझे ख़बर है कि ये लोग लौट जाएँगे
अगर यहाँ से कोई रास्ता निकल आए

नया सफ़र हो मुबारक मगर करोगे क्या
वहाँ भी ऐसी ही आब-ओ-हवा निकल आए

निकल रहा हूँ मैं उस दिल से इस तरह 'साहिर'
कि जैसे काट के क़ैदी सज़ा निकल आए
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Jahanzeb Sahir
फ़क़ीर मौजी ख़राब हालों का क्या बनेगा
ये इश्क़ करती उदास नस्लों का क्या बनेगा

हमारे पुरखों ने हम से बेहतर गुज़ार ली है
मैं सोचता हूँ हमारे बच्चों का क्या बनेगा

हमारे जिस्मों का ख़ाक होना तो ठीक है पर
तुम्हारी आँखों तुम्हारे होंटों का क्या बनेगा

हमें तो रोने में कोई दिक़्क़त नहीं है लेकिन
वो पूछना था कि रोने वालों का क्या बनेगा

मज़ाक़ उड़ाते हैं लोग फ़र्ज़ी कहानियों का
कि सीधे-सादे से उन बुज़ुर्गों का क्या बनेगा

तलाश करती हैं इस बदन की बशारतों को
हक़ीर सोचों हरीस बाँहों का क्या बनेगा

वो हुस्न ऐसे ही ख़र्च होता रहा तो साहिर
हमारी नज़्मों हमारी ग़ज़लों का क्या बनेगा
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Jahanzeb Sahir
मैं तही-दस्त मोहब्बत में भला क्या देता
तेरे हिस्से से मगर तुझ को ज़ियादा देता

ज़िंदगी तू ने बड़ी देर लगा दी वर्ना
मैं तुझे मिलता तिरे गाल पे बोसा देता

बाज़ औक़ात अगर शे'र न होता मुझ से
उस की आँखों का इशारा मुझे मिस्रा देता

मैं ज़माने को बनाता तो ज़माने भर को
तेरी आँखें तिरा चेहरा तिरा लहजा देता

तू ठहरता तो कोई हल भी निकल सकता था
साथ चलता न तिरे मशवरा अच्छा देता

तुम को लालच थी ख़ज़ाने की सो नाकाम हुए
मुझ से कहते तो मैं उस ग़ार का नक़्शा देता

इतना ख़ुश था वो बिछड़ते हुए मुझ से वर्ना
पाँव पड़ता मैं उसे रोकता समझा देता

पीठ पीछे से अगर वार न करता 'साहिर'
अपने दुश्मन के जनाज़े को मैं कंधा देता
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