Raees Niyazi

Raees Niyazi

@raees-niyazi

Raees Niyazi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Raees Niyazi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
जब है मिटना ही तो अंदाज़ हकीमाना सही
ख़ल्वत-ए-ग़म के एवज़ गोशा-ए-मय-ख़ाना सही

रौनक-ए-बादा-कशी जुरअत-ए-रिंदाना सही
ख़ार होना है तो मय-ख़ाना-ब-मय-ख़ाना सही

इश्क़ इक क़तरे में दरिया को समो देता है
अक़्ल को दीवाना समझती है तो दीवाना सही

मेरे दिल में भी तजल्ली के ख़ज़ीने हैं निहाँ
माह-ओ-ख़ुरशीद में अक्स-ए-रुख़-ए-जानाना सही

फ़ुर्सत-ए-शौक़ ग़नीमत है उठा भी साग़र
ज़िंदगी एक छलकता हुआ पैमाना सही

क्या ख़बर थी कि मय-ए-नाब में इतना है सुरूर
अब जो पी ली है तो इक और भी पैमाना सही

मेरी वारफ़्ता-निगाही की भी कुछ क़ीमत है
बज़्म की बज़्म रुख़-ए-यार का परवाना सही

फिक्र-ओ-एहसास में पोशीदा हैं असरार-ए-हयात
बाल-ओ-पर क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ से बेगाना सही

यही क्या कम है कि बरबाद-ए-मोहब्बत है 'रईस'
तेरे अल्ताफ़-ओ-इनायात से बेगाना सही
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Raees Niyazi
हयात-ए-इश्क़ की ख़ुर्शीद-सामानी नहीं जाती
मिटा जाता है दिल ज़र्रों की ताबानी नहीं जाती

जो कल तक खेल समझे थे हमें बर्बाद कर देना
अब उन मग़रूर नज़रों की पशेमानी नहीं जाती

हमीं पर लुत्फ़ की बारिश है लेकिन वाए-नादानी
हमीं से वो निगाह-ए-लुत्फ़ पहचानी नहीं जाती

वतन क्या जुरअत-ए-अहल-ए-जुनूँ से हो गया ख़ाली
ख़िरद की क़ुव्वत-ए-तज्दीद-ए-वीरानी नहीं जाती

बहार आई खिले ग़ुंचे मगर ऐ नाज़िम-ए-गुलशन
हमारे आशियाँ की शो'ला-सामानी नहीं जाती

मिरी सहबा की अज़्मत सिर्फ़ अहल-ए-दिल समझते हैं
पिए जाता हूँ लेकिन पाक-दामानी नहीं जाती

ये किस काफ़िर-अदा का जल्वा-ए-मासूम देखा है
'रईस' अब तक मिरी नज़रों की हैरानी नहीं जाती
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Raees Niyazi
मिज़ाज-ए-नग़्मा-ओ-शे'र-ओ-शराब पैदा कर
हयात-ए-इश्क़ में कुछ आब-ओ-ताब पैदा कर

नज़र को ख़ीरगी-ए-शौक़ बे-पनाह मिले
हर एक ज़र्रे से वो आफ़्ताब पैदा कर

शिकस्त-ए-ख़्वाब के बा-वस्फ़ बंद हैं आँखें
फिर एक बार तमाशा-ए-ख़्वाब पैदा कर

ये बे-नियाज़ी-ए-तज़ईन-ए-आइना कब तक
कभी कभी तो ख़ुद अपना जवाब पैदा कर

हर एक ज़र्रा है मामूरा-ए-जमाल-ए-हबीब
दिल-ए-हज़ीं निगह-ए-कामयाब पैदा कर

दिल-ओ-निगाह को धोके भी रास आए हैं
वुफ़ूर-ए-तिश्ना-लबी में सराब पैदा कर

न कर शिकायत-ए-दौराँ न बन हरीफ़-ए-ज़माँ
मुसीबतों का कोई सद्द-ए-बाब पैदा कर

पहुँच बुलंद-ए-मक़ामात-ए-शे'र-ओ-नग़्मा तक
अदब में एक दिल-आवेज़ बाब पैदा कर

ग़रज़ तो ये है तिरा मरकज़-ए-निगाह रहूँ
सुकून-ए-दिल न सही इज़्तिराब पैदा कर

'रईस' तुझ को तो मरने की भी नहीं फ़ुर्सत
कहा था किस ने कि ऐसे अज़ाब पैदा कर
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Raees Niyazi
जान दे दी रहरव-ए-मंज़िल ने मंज़िल के क़रीब
हौसले तूफ़ाँ के निकले भी तो साहिल के क़रीब

वो नज़र बहकी हुई फिरती है क्यूँ दिल के क़रीब
उस की मंज़िल भी है शायद मेरी मंज़िल के क़रीब

अज़्म-ए-ग़र्क़ाबी है तो मिन्नत-कश-ए-तूफ़ाँ न बन
कश्तियाँ लाखों हुई हैं ग़र्क़ साहिल के क़रीब

रहरव-ए-मंज़िल ने बन कर मर्कज़-ए-यास-ओ-उमीद
मंज़िलें लाखों बना लीं अपनी मंज़िल के क़रीब

डूबने वाले को तिनके का सहारा चाहिए
मौज भी साहिल नज़र आती है साहिल के क़रीब

जान दे कर मुतमइन है रहरव-ए-हिम्मत-शिकन
दूरी-ए-मंज़िल ने पहुँचाया है मंज़िल के क़रीब

दीदनी है उस की हसरत उस का अरमाँ उस का शौक़
जिस की कश्ती डूब जाए आ के साहिल के क़रीब

डगमगा जाते हैं पा-ए-शौक़ अक्सर ऐ 'रईस'
मंज़िलें ऐसी भी आ जाती हैं मंज़िल के क़रीब
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Raees Niyazi
जो नूर देखता हूँ मैं जाम-ए-शराब में
वो आफ़्ताब में है न वो माहताब में

इस तरह अज़्म-ए-ज़ोहद है अहद-ए-शबाब में
चलने का जैसे क़स्द करे कोई ख़्वाब में

मेरी नज़र से छुप के रहें वो हिजाब में
मेरे नदीम क्या मह-ओ-अंजुम हैं ख़्वाब में

मुझ को सुनाए जाते हैं अफ़्साने ख़ुल्द के
डूबा हुआ हूँ मस्ती-ए-शे'र-ओ-शराब में

आख़िर तिलिस्म-ए-ग़ुन्चा-ओ-गुल टूट कर रहा
मेरी नज़र से छुप न सके वो हिजाब में

इंसान खा रहा है फ़रेब-ए-हयात क्यूँ
कश्ती कभी रवाँ भी हुई है सराब में

बेगाना-ए-नज़र थे हमीं इस का क्या इलाज
शामिल हैं रहमतें भी किसी के इ'ताब में

हर मंज़र-ए-जमील पे गो रुक गई नज़र
ठहरे मगर तुम्हीं निगह-ए-इंतिख़ाब में

मेरा हर इक नफ़स है पयाम-ए-रज़ा-ए-दोस्त
ज़ाहिद फँसा हुआ है अज़ाब-ओ-सवाब में

हर मंज़र-ए-जमील को ठुकरा के ऐ 'रईस'
ख़ुद सामने हों अपनी नज़र के जवाब में
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Raees Niyazi
ये भूल जा कि हैं तेरे भी ग़म-गुसार बहुत
बनाना काग़ज़ी फूलों के ख़ुश्क हार बहुत

जो चश्म-ए-यार है होश-ओ-ख़िरद शिकार बहुत
दिल-ओ-नज़र पे हमें भी है इख़्तियार बहुत

हम अपने वक़्त की तस्वीर-ए-मस्ख़-सूरत हैं
दिखाए हम को न आईना रोज़गार बहुत

ख़ुदा वो वक़्त न लाए कि आज़माइश हो
तअ'ल्लुक़ात तुम्हीं से हैं उस्तुवार बहुत

किसी भी शाख़ पे जब मेरा आशियाँ न मिला
चमन में आज फिरी बर्क़ बे-क़रार बहुत

दिल-ए-तबाह की नैरंगियों का हाल न पूछ
गहे क़रार बहुत गाह बे-क़रार बहुत

हयात नाज़िश-ए-कौनैन हो तो क्या ग़म है
वो चार दिन की सही उम्र-ए-मुस्तआ'र बहुत

हमें तो अपनी वफ़ाओं का मिल रहा है सिला
जफ़ा-ओ-जौर पे वो क्यूँ हैं शर्मसार बहुत

बहुत दिनों से अब अपनी तलाश में गुम हैं
'रईस' छान चुके ख़ाक-ए-कू-ए-यार बहुत
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Raees Niyazi
सब को वहशत है मिरी वहशत के सामाँ देख कर
चाक-दामाँ देख कर चाक-ए-गरेबाँ देख कर

बे-ख़बर काँटों से था अहल-ए-मोहब्बत का शुऊ'र
पाँव रखने थे ज़मीन-ए-कू-ए-जानाँ देख कर

अल्लाह अल्लाह जज़्बा-ए-उल्फ़त की मोजिज़-कारियाँ
वो परेशाँ हो गए मुझ को परेशाँ देख कर

याद आया फिर मुझे अफ़साना-ए-तूर-ओ-कलीम
इक तजल्ली सी तिरे आरिज़ पे रक़्साँ देख कर

चारागर अब मुझ से मेरी लज़्ज़त-ए-ईज़ा न पूछ
ख़ंदा-ज़न होते हैं ज़ख़्म-ए-दिल नमकदाँ देख कर

है मोहब्बत का अगर दोनों तरफ़ यकसाँ असर
वो परेशाँ क्यूँ नहीं मुझ को परेशाँ देख कर

इस में मुज़्मर हैं बहुत नग़्मे हयात-ए-इश्क़ के
छेड़ मिज़राब-ए-जुनूँ साज़-ए-रग-ए-जाँ देख कर

इस जुनूँ का चारागर अब और ही कुछ कर इलाज
और वहशत बढ़ चली है कुंज-ए-ज़िंदाँ देख कर

वा नहीं होता लब-ए-शिकवा सर-ए-महशर 'रईस'
अपने सर पर ख़ंजर-ए-क़ातिल का एहसाँ देख कर
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