यूँ तुझे ढूँढ़ना हुआ मुश्किल
तेरी यादें ही बन गई हाइल
मेरे एहसास थे तवाज़ुन में
फिर हुआ वो हयात में दाख़िल
आख़िरी बार मिलना बाक़ी है
हिज्र मुझ पर हुआ नहीं नाज़िल
जब कि क्या क्या नहीं था दरिया में
फिर भी प्यासा ही रह गया साहिल
पहले हैरान था मगर फिर मैं
अपनी बर्बादी में हुआ शामिल
बाढ़ आते ही कर गया हिजरत
तू भी ऐनक के जैसे था वासिल
जिसको मिलती है वो बताता है
इस सड़क की नहीं कोई मंज़िल
इतनी मुश्किल न थी शहंशाही
कोई भूखा था कोई था बुज़दिल
एक काँधा ज़रूरी है सबको
चाहे मातम हो या कोई महफ़िल
मेरे क़ाबिल नहीं रही दुनिया
मुझको छोड़ा नहीं किसी क़ाबिल
मुझमें अफ़सोस बन के बैठी है
इक दुआ जो नहीं हुई कामिल
चोट खा कर जो हँस दिया था मैं
मारने वाला हो गया चोटिल
हाल ये है कि हाल को मेरे
कोस कर मर चुका है मुस्तक़बिल
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