मैंने की जिससे मुहब्बत वो शख़्स था तू क्या
तो तुझ से इश्क़ में नफ़रत है दूजा पहलू क्या
ये बे-करार हो उठता है दिल पलक भर में
तो घोंप लूँ मैं कलेजे में अपने चाकू क्या
मैं जी रहा हूँ बिछड़ने के बाद भी उससे
मैं समझूँ इसको तो क्या समझूँ कोई जादू क्या
यूँ बैठे बैठे मुसलसल ख़्याल तेरा ही
आ जाती है मिरे अंदर को तेरी ख़ुश्बू क्या
ये क्या ग़ज़ल कभी नज़्में कभी, कभी नुसरत
उठा दिया हैं मिरे दिल ने ख़ुद से क़ाबू क्या
ख़मोश बैठा नहीं जाता बे-करारी में
तो पूरी दुनिया में करता फिरूँ मैं हा हू क्या
ज़मीर माने नहीं कोई ग़ैर को देखूँ
जो रोकती है मुझे वो है तेरी ख़ुश्बू क्या
विसाल-ए-ग़ैर जचा ख़ूब हार मोती का
हर एक हार का मोती था मेरा आँसू क्या
बनाने दूरी लगे हो किसी को जाने को
तो प्यार से वो भी तुम को कहेगा मोटू क्या
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