करते हैं फ़ातिहा भी दुरूद-ओ-सलाम भी
अफ़्ज़ल था मरने वालों तुम्हारा मक़ाम भी
ये ख़्वाब हैं कि सचमें रिˈऐलटि हैं मेरे दोस्त
वो मेरे सामने भी हैं और हम-कलाम भी
आक़ा से कहना दिल नहीं लगता गुलाम का
और पेश करना हाजियो मेरा सलाम भी
हम दूर हो के पास हैं और पास हो के दूर
जिस्मो से हम अलग भी हैं दिल से तवाम भी
अंधा हैं मेरे शहर का हाकिम भी दोस्तों
गूंगी हैं मेरे शहर की सारी अवाम भी
होठों पे खिलता जाए हैं पौधा गुलाब का
आँखों में खींचा आए हैं माह ए तमाम भी
मुद्दत से मैं सफर में हूँ और बे-क़याम हूँ
मिल जाए तेरी बाहों में अब तो क़याम भी
हम दोस्त बन गए हैं बिछड़ने के बाद में
हल्की सी रोशनी तो हैं ज़ुल्मत की शाम भी
Read Full