तू ने जो भी कहा करके दिखाता ग़म नहीं होता
मुझे तू याद करके ही भुलाता ग़म नहीं होता
गई गुज़री गुज़ारी रात तेरी आरज़ू लेकर
मुझे तू चंद लम्हे को बुलाता ग़म नहीं होता
मुझे ग़म तो नहीं अफ़सोस इतना यार होता है
मुझे तू सामने से गर गिराता ग़म नहीं होता
मिरे भेजे गुलाबों को सजाया रोज़ बिस्तर पे
उन्हें तू लाश पर मेरी जलाता ग़म नहीं होता
मुझे मेरी दिखावट की ख़ुशी दुख दे रही है अब
मुक़द्दर ही ख़ुदा मुझको रुलाता ग़म नहीं होता
मिरी हर इक परेशानी मुझे दिल से बुलाती है
मिरा तू साथ गर ऐसे निभाता ग़म नहीं होता
लिखे हैं ज़ख़्म क़िस्मत में मिरी बे-इंतिहा मालिक
ख़ुशी की भी लकीरों को बनाता ग़म नहीं होता
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