नहीं आता यक़ीं मुझको किसी की भी मोहब्बत में
सभी अब मिल रहे हैं आज कल सबसे ज़रूरत में
मुझे वो आज भी कहना तिरा बस याद आता है
तुझे मैं माँगती हूँ आज भी अपनी इबादत में
किसी से अब नहीं शिकवा नहीं कोई गिला हमको
नहीं है अब हमारी दम किसी भी इक शिकायत में
तुम्हें किसने कहा की ज़िंदगी तो ख़ूबसूरत है
कभी होती नहीं है ज़िंदगी वैसी हक़ीक़त में
किसी को याद हम आख़िर भला क्यों उम्र भर रक्खें
कभी मिलने नहीं आया हमें कोई मुसीबत में
किसी भी हाल में लगती नहीं कोई दवा मुझको
नहीं कोई असर दिखता मुझे अपनी तबीअत में
तुम्हें मैं क्या भला कोई ख़ुशी लाकर कभी दूँगा
मिरी ख़ुद ज़िंदगी दिन रात है गुज़री अज़िय्यत में
ग़म-ए-दिल छोड़ कर कुछ इश्क़ पर अच्छा लिखो सागर
ख़ुदा को क्या दिखाओगे भला चेहरा क़यामत में
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