Alok Mishra

Alok Mishra

@alok-mishra

Alok Mishra shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Alok Mishra's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

4

Content

30

Likes

20

Shayari
Audios
  • Ghazal
जाने किस बात से दुखा है बहुत
दिल कई रोज़ से ख़फ़ा है बहुत

सब सितारे दिलासा देते हैं
चाँद रातों को चीख़ता है बहुत

फिर वही रात मुझ में ठहरी है
फिर समाअत में शोर सा है बहुत

तुम ज़माने की बात करते हो
मेरा मुझ से भी फ़ासला है बहुत

उस की दुखती नसें न फट जाएँ
दिल मुसलसल ये सोचता है बहुत

वास्ता कुछ ज़रूर है तुम से
तुम को वो शख़्स पूछता है बहुत

तुम से बिछड़ा तो टूट जाएगा
उस की आँखों में हौसला है बहुत

चख के देखो इसे कभी तुम भी
इस उदासी में ज़ाइक़ा है बहुत

इन की साँसें गिनी-चुनी हैं बस
ख़ून लम्हों का बह गया है बहुत

दश्त को कर लिया था घर मैं ने
अब मुझे घर ये काटता है बहुत

इस से बाहर निकल न पाओगे
दश्त माज़ी का ये घना है बहुत

मेरा सुख दुख समझती हैं ग़ज़लें
ज़िंदगी को ये आसरा है बहुत
Read Full
Alok Mishra
इक अधूरी सी कहानी मैं सुनाता कैसे
याद आता भी नहीं ख़्वाब वो बिखरा कैसे

कितने सायों से भरी है ये हवेली दिल की
ऐसी भगदड़ में कोई शख़्स ठहरता कैसे

फूल ज़ख़्मों के यहाँ और भी चुन लूँ लेकिन
अपना दामन मैं करूँ और कुशादा कैसे

दुख के सैलाब में डूबा था वो ख़ुद ही इतना
मेरी आँखो तुम्हें देता वो दिलासा कैसे

काँच के ज़ार से बस देखता रहता था तुम्हें
बंद शीशों से मैं आवाज़ लगाता कैसे

इस का फन मैं ने बहुत देर तलक कुचला था
रह गया साँप तिरे दर्द का ज़िंदा कैसे

अब तो आँखों में सियाही सी भरी रहती है
ऐसे आलम में कोई ख़्वाब हो उजला कैसे

दाग़ ही दाग़ उभर आए मिरे चेहरे पर
रंग मेरा ऐ मुसव्विर हुआ भद्दा कैसे

ख़ुश्क मिट्टी में पड़ा था मिरे दिल का पौधा
इस की शाख़ों पे कोई फूल भी आता कैसे
Read Full
Alok Mishra
सवालों में ख़ुद भी है डूबी उदासी
कहीं ले न डूबे मुझे भी उदासी

शब-ओ-रोज़ चलती है पहलू से लग कर
गले पड़ गई एक ज़िद्दी उदासी

फ़ज़ाअों की रंगत निखरने लगी है
हुई शाम फिर दिल में लौटी उदासी

ज़रा चाँद क्या आया मेरी तरफ़ को
सितारों ने जल-भुन के ओढ़ी उदासी

शबिस्ताँ में ग़म की न शमएँ जलाओ
कहीं जाग जाए न सोई उदासी

ज़रा देर लोगों में खुल कर हँसी फिर
सर-ए-बज़्म आँखों से टपकी उदासी

उसे याद थी कल की तारीख़ शायद
सिसकती रही ले के हिचकी उदासी

जमी थी मिरे सर्द सीने में कब से
तपिश पा के अश्कों की पिघली उदासी

कतरती है दिल के शजर की ये ख़ुशियाँ
तिरी याद है या गिलहरी उदासी

कभी हम थे जिन की दुआओं में शामिल
उन्हीं तक न पहुँची हमारी उदासी

तिरी याद के अब निशाँ तक नहीं हम
मगर दिल में रहती है अब भी उदासी

निगाहों में हद्द-ए-नज़र तक है रक़्साँ
उदासी उदासी उदासी उदासी
Read Full
Alok Mishra
आँखों का पूरा शहर ही सैलाब कर गया
ये कौन मुझ में नज़्म की सूरत उतर गया

जंगल में तेरी याद के जुगनूँ चमक उठे
मैदाँ सियाह-शब का उजालों से भर गया

वर्ना सियाह रात में झुलसा हुआ था मैं
ये तो तुम्हारी धूप में कुछ कुछ निखर गया

झूमा थिरकते नाचते जोड़ों में कुछ घड़ी
दिल फिर न जाने कैसी उदासी से भर गया

दोनों अना में चूर थे अन-बन सी हो गई
रिश्ता नया नया सा था कुछ दिन में मर गया

पहले कुछ एक दिन तो कटी मुश्किलों में रात
फिर तेरा हिज्र मेरी रगों में उतर गया

हाथों से अपने ख़ुद ही नशेमन उजाड़ कर
देखो उदास हो के परिंदा किधर गया

इक चीख़ आसमान के दामन में सो गई
दिल की ज़मीं पे दर्द हर इक सू बिखर गया
Read Full
Alok Mishra

LOAD MORE