Kabir Ajmal

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@kabir-ajmal

Kabir Ajmal shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Kabir Ajmal's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
बुझती रगों में नूर बिखरता हुआ सा मैं
तूफ़ान-ए-नंग-ए-मौज गुज़रता हुआ सा मैं

हर शब उजालती हुई भीगी रुतों के ख़्वाब
और मिस्ल-ए-अक्स-ए-ख़्वाब बिखरता हुआ सा मैं

मौज-ए-तलब में तैर गया था बस एक नाम
फिर यूँ हुआ कि जी उठा मरता हुआ सा मैं

इक धुँद सी फ़लक से उतरती दिखाई दे
फिर उस में अक्स अक्स सँवरता हुआ सा मैं

दस्त-ए-दुआ उठा तो उठा उस के ही हुज़ूर
लेकिन ये क्या उसी से मुकरता हुआ सा मैं

अब के हवा चले तो बिखर जाऊँ दूर तक
लेकिन तिरी गली में ठहरता हुआ सा मैं

मैं बुझ गया तो कौन उजालेगा तेरा रूप
ज़िंदा हूँ इस ख़याल में मरता हुआ सा मैं

'अजमल' वो नीम-शब की दुआएँ कहाँ गईं
इक शोर-ए-आगही है बिखरता हुआ सा मैं
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Kabir Ajmal
शरार-ए-इश्क़ सदियों का सफ़र करता हुआ
बुझा मुझ में मुझी को बे-ख़बर करता हुआ

रुमूज़-ए-ख़ाक बाब-ए-मुश्तहर करता हुआ
यूँही आबाद सहरा-ए-हुनर करता हुआ

ज़मीन-ए-जुस्तुजू गर्द-ए-सफ़र करता हुआ
ये मुझ में कौन है मुझ से मफ़र करता हुआ

अभी तक लहलहाता है वो सब्ज़ा आँख में
वो मौज-ए-गुल को मेयार-ए-नज़र करता हुआ

हरीम-ए-शब में ख़ूँ रोता हुआ माह-ए-तमाम
निगार-ए-सुब्ह क़िस्सा मुख़्तसर करता हुआ

मिरी मिट्टी को ले पहुँचा दयार-ए-यार तक
ग़ुबार-ए-जाँ तवाफ़-ए-चश्म-ए-तर करता हुआ

तकब्बुर ले रहा है इम्तिहाँ फिर अज़्म का
सितारों को मिरे ज़ेर-ए-असर करता हुआ

फ़लक-बोसी की ख़्वाहिश ताइर-ए-वहशत को थी
उड़ा है अपनी मिट्टी दरगुज़र करता हुआ
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