गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई
नज़र क्या कीमिया थी रंग चेहरों से उड़ा लाई
ख़ुदा के वास्ते सफ़्फ़ाकियाँ ये किस से सीखी हैं
नज़र से प्यार माँगा था वो इक ख़ंजर उठा लाई
न हसरत ही निकलती है न दिल को आग लगती है
मिरी हस्ती मिरे दामन में क्या काँटा लगा लाई
वो सब बदमस्तियाँ थीं ज़र की अब ज़र है न पीते हैं
हमारी मुफ़्लिसी ख़ुद राह पर हम को लगा लाई
मिटाने को हमारे ये ज़मीन-ओ-आसमाँ दोनों
हमेशा मिल के चलते हैं ब-ईं पस्ती-ओ-बालाई
जो कुछ देखा न देखा जो सुनी वो अन-सुनी 'शाइर'
न आए हम यहाँ ये ज़िंदगी मुफ़्त-ए-ख़ुदा लाई
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