जला के दिल को रखा सुब्ह-ओ-शाम रोज़-ओ-शब
मिरा कमाल कमाल-ए-चराग़ है कि नहीं
रहा है मुश्त-ए-तुराब-ए-अज़ल मिरा मम्बा'
मिरी ये ख़ाक-ए-कमाल-ए-अयाग़ है कि नहीं
मुझे बनाया सरापा सवाल अब तो बता
मिरी तलाश कमाल-ए-सुराग़ है कि नहीं
ग़म-ए-वजूद का मातम करूँ तो कैसे जिऊँ
मगर ख़ुदा तिरे दामन पे दाग़ है कि नहीं
जो खो गया तिरा 'आहन' सराब-ए-ख़्वाहिश में
भटक न जाएँ कहीं बे-दिमाग़ है कि नहीं
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Akhlaq Ahmad Ahan
our suggestion based on Akhlaq Ahmad Ahan
As you were reading Miscellaneous Shayari