मिरी हँसी से मेरी बेबसी से क्या लेना
जो ग़ैर है उसे मेरी ख़ुशी से क्या लेना
न पढ़ सका तू कभी दर्द मेरी आँखों का
यहाँ मुझे तिरी फ़र्ज़ानगी से क्या लेना
तुम्हारी याद जो आने लगी,कहा दिल ने
रहो बदन में अकेले किसी से क्या लेना
न ढूंढ पाया उसे दिन के जब उजाले में
चराग़ मुझको तिरी रौशनी से क्या लेना
उदास हूँ तो मुझे फिर उदास रहने दो
उसे ही फ़िक्र नहीं फिर ख़ुशी से क्या लेना
मज़ाक बनता रहा महफ़िलों में अक्सर मैं
किसी को रूह की पाकीज़गी से क्या लेना
सँवार देता हूँ तस्वीर उसकी फुर्सत में
किसी ख़ुदा की मुझे बंदगी से क्या लेना
"तरब" यकीं नहीं है क्यूँ तुझे दिखावे पर
अब इस जहाँ को तिरी सादगी से क्या लेना
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