कभी उसने मुझसे मुहब्बत नहीं की
कभी उस से मैंने शिकायत नहीं की
वो मन मानी करती रही इस जहाँ में
अमा मेरी उसने इता'अत नहीं की
मुहब्बत मुझे जिससे थी मेरे यारों
कभी भी मेरी उसने इज़्ज़त नहीं की
तसव्वुर में उसको बुला लेते हैं अब
मगर भूल कर उसकी हसरत नहीं की
मुहब्बत के चक्कर में जब से पड़ा हूँ
मेरी उसने तब से ज़मानत नहीं की
बहुत याद आती है वो लड़की मुझको
मेरे ज़ेहन से उसने हिजरत नहीं की
मैं ही था जो पागल बना घूमता था
कभी मिलने की उसने उजलत नहीं की
मुहब्बत जिसे की ये दिल उसने तोड़ा
ये दिल फिर लगाऊँ मैं हिम्मत नहीं की
नज़र भर के उसने मुझे देखा 'हैदर'
मगर उसने 'हैदर' क़यामत नहीं की
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