क़समें उसे दीं कितनी मगर वो रुकी नहीं
उसने कहा था रुकना मिरा अब सही नहीं
ख़्वाबों की लाशें जो है मिरे जिस्म में कहीं
वो मय्यतें अभी भी वहाँ से उठी नहीं
सिगरेट मैं पी रहा हूँ उसे याद करके ही
इक वो है संग-ए-दिल जो ज़रा सा दुखी नहीं
दिल का मिरे जो क़त्ल हुआ था यहीं कहीं
फिर उसके बाद मुझको मोहब्बत हुई नहीं
हर एक बात पर वो हँसा करती थी बहुत
मैंने भी उससे बात वो दिल की कही नहीं
मैंने उसे कहा था मुझे छोड़ना न तुम
उसने मेरी ये बात कभी भी सुनी नहीं
उसकी वो सारी यादें भुला दी हैं मैंने फिर
तस्वीर उसकी फ़ोन में भी फिर रखी नहीं
हम-शक्ल उसके जैसी अभी तक मिली नहीं
लगता है उसके जैसी ख़ुदा से बनी नहीं
कोई 'वसीम' तुझको कहीं मिल ही जाएगी
तू ये समझ वो तेरी सो क़िस्मत में थी नहीं
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