Kaifi Chirayyakoti

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Kaifi Chirayyakoti shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Kaifi Chirayyakoti's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
ये धोका हो न हो उम्मीद ही मा'लूम होती है
कि मुझ को दूर से कुछ रौशनी मा'लूम होती है

ख़ुदा जाने किस अंदाज़-ए-नज़र से तुम ने देखा है
कि मुझ को ज़िंदगी अब ज़िंदगी मा'लूम होती है

इसी का नाम शायद ज़िंदगी ने यास रक्खा है
नफ़स की जो खटक है आख़िरी मा'लूम होती है

हुआ है हुस्न से कुछ और अक्स-ए-हुस्न-ए-ख़ुद-दारी
ख़मोशी उन के होंटों पर हँसी मा'लूम होती है

न आया हाथ मेरे बढ़ के जो दामन इनायत का
ये महरूमी तलब की कुछ कमी मा'लूम होती है

झुकाया आज दर पर ऐ ज़हे बख़्त-ए-सर-अफ़राज़ी
तिरी रहमत क़ुबूल-ए-बंदगी मा'लूम होती है

तुझे अपने लिए दस्त-ए-करम ये जानता हूँ मैं
कि तू है जिस क़दर दुनिया वही मा'लूम होती है

कहाँ हूँ किस तरफ़ हूँ मैं ख़बर इस की नहीं मुझ को
यही गुम-गश्तगी कुछ आगही मा'लूम होती है

सर-ए-मौज नफ़स कश्ती-ए-दिल को क्या कहूँ 'कैफ़ी'
उभरती है जहाँ तक डूबती मा'लूम होती है
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कहो दैर-ओ-हरम या नाम अपना आस्ताँ रख दो
सर-ए-तस्लीम ख़म है तुम जहाँ चाहो वहाँ रख दो

घटा कर क़ैद-ए-आज़ादी बढ़ा दो ग़म असीरी का
क़फ़स को आशियाँ में या क़फ़स में आशियाँ रख दो

तसल्ली देने वालो हम तही-दस्तान-ए-क़िस्मत हैं
सर-ए-दामन जो मुमकिन हो तो दिल की धज्जियाँ रख दो

ज़रूरत जान की दिल को मैं बे-परवा-ए-हस्ती हूँ
जहाँ दिल है वहीं अब मेरी जान-ए-ना-तवाँ रख दो

ख़ुदा कहलाओ या कुछ और सब कुछ मुझ को कहना है
इधर आओ मिरे मुँह में तुम्हीं अपनी ज़बाँ रख दो

वफ़ा का राज़ इस मजमे' में खोला जा नहीं सकता
सिवा महशर के कोई और रोज़-ए-इम्तिहाँ रख दो

मोहब्बत और तसल्ली उस पे होश-ए-ज़िंदगी 'कैफ़ी'
नहीं उठता अगर काँधे से ये बार-ए-गराँ रख दो
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तक़दीर-ए-शम्अ' जल्वा-ए-जानाना बन गया
शो'ला उठा जो उस से तो पर्दा न बन गया

जो हाल-ए-दिल था कैफ़ में तासीर-ए-दर्द था
वो कहते कहते शौक़ का अफ़्साना बन गया

जन्नत की आरज़ू से है जन्नत का कल वजूद
वीराना कह दिया जिसे वीराना बन गया

यक क़तरा दिल था मस्त का पैमाना-ए-नसीब
साक़ी ने की निगाह तो मय-ख़ाना बन गया

मौक़ा-शनास हुस्न-ए-मोहब्बत के बाब में
अपना था और हश्र में बेगाना बन गया

उस की तलब में जब न रहा उस का कुछ लिहाज़
अंदाज़-ए-बे-क़रार गदायाना बन गया

यूँ अपने दर से टाल दिया उस के नाज़ ने
अंदाज़-ए-लुत्फ़-ए-ख़ास करीमाना बन गया

'कैफ़ी' हरम के दर पे था जो कुछ वो फ़ैज़ था
हाँ बुत-कदे में सज्दा-ए-शुकराना बन गया
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हुस्न-ए-हिजाब-आश्ना जानिब-ए-बाम आ गया
बादा-ए-तह-नशीन-ए-जाम ता लब-ए-जाम आ गया

आप ने फेंक दी नक़ाब गर्मी-ए-इश्क़ देख कर
हश्र-नवाज़ हुस्न आज हश्र के काम आ गया

मिल्लत-ए-कुफ़्र-ओ-दीं की बहस गर्म थी ख़ानक़ाह में
इतने में कोई मय पिए दस्त-ब-जाम आ गया

शौक़ का ए'तिबार क्या यास ये इख़्तियार क्या
राह-ए-उम्मीद-ओ-बीम में दिल का मक़ाम आ गया

दिल मिरा देखता रहा और मेरी ज़बान पर
लज़्ज़त-ए-जान-ए-आरज़ू आप का नाम आ गया

दहर जवान हो गया खुल गया मय-कदे का दर
साक़ी-ए-मस्त मस्त-ए-नाज़ मस्त-ए-ख़िराम आ गया

जल्वा-ए-बे-हिजाब को ख़ूब समझ रहा हूँ मैं
महशर-ए-दीद मुंतज़िर मंज़र-ए-आम आ गया

'कैफ़ी'-ए-बे-क़रार सुन ये रग-ए-जाँ के साज़ से
है मिरी इल्तिजा क़ुबूल दिल का पयाम आ गया
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ज़बान-ए-शम्अ' खुलती है न कुछ परवाना कहता है
मगर सारा ज़माना बज़्म का अफ़्साना कहता है

ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ क़िस्मत मेरे साक़ी की इनायत है
कोई पैमाना कहता है कोई मय-ख़ाना कहता है

हिजाब-ए-लाला-ओ-गुल को मह-ओ-अंजुम के पर्दे को
वही कहता हूँ मैं जो जल्वा-ए-जानाना कहता है

शब ग़म में जो अपने दिल से कुछ कहने को कहता हूँ
तो जिस से बख़्त सो जाए वही अफ़्साना कहता है

ख़ुदा कहते हैं कह लेने दो तुम अर्बाब-ए-मिल्लत को
मोहब्बत तो यही कहती है जो दीवाना कहता है

यही ईमान-ए-मस्ती है यही है दीन मस्तों का
वही होता है जो कुछ साक़ी-ए-मय-ख़ाना कहता है

यही 'कैफ़ी' यही है बे-पिए साक़ी का मतवाला
क़दम मस्ताना रखता है सुख़न मस्ताना कहता है
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तारों वाली रात का आलम पीने और पिलाने से
साक़ी ने मय खींच के रख दी गोया दाने दाने से

तार-ए-गरेबाँ सीने वाले चाक-ब-दामन आए हैं
या'नी कुछ तक़दीर न सुलझी उलझी थी दीवाने से

रात नहीं ये ज़ीस्त का दिन है होश में आ बर्बाद न कर
शम्अ' फ़क़त मेहमान-ए-सहर है कौन कहे परवाने से

दैर-ओ-हरम से उठने वाले आए हैं मयख़ाने में
इस पे अगर तक़दीर उठा दे जाएँ कहाँ मयख़ाने से

जोश-ए-जुनूँ सा रहबर हो तो होश की मंज़िल दूर नहीं
दीवाने ने राह बना दी बस्ती तक वीराने से

साक़ी के अंदाज़ को देखो बे-ख़ुद पीने वालों में
मिलती है मय क़िस्मत से गो बटती है पैमाने से

ज़र्फ़ मिरी क़िस्मत का भरा है आप निगाह-ए-साक़ी ने
पैमाने को ख़ुम से मिली और ख़ुम को मिली पैमाने से

उम्र-ए-दो-रोज़ा 'कैफ़ी' की यूँ कट ही गई यूँ कटनी थी
काम रहा पैमाने से और साक़ी के मयख़ाने से
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