Pandit Vidya Rattan Asi

Pandit Vidya Rattan Asi

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Pandit Vidya Rattan Asi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Pandit Vidya Rattan Asi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
क्यों न हम आज हक़ीक़त ही बता दें अपनी
जिस्म अपना ही न इस जिस्म में साँसें अपनी

सच तो ये है कि कभी ख़ुद को तलाशा ही न था
और आई भी न थीं बरसों से यादें अपनी

बोझ इस दिल का किसी रोज़ तो हल्का होगा
खुल के बरसेंगी किसी रोज़ तो आँखें अपनी

अब ये आलम है हम इक दूजे को सुन लेते हैं
और ख़ामोश भी रखते हैं ज़बानें अपनी

जाने किस वक़्त हो अंदर के सफ़र का आग़ाज़
जाने कब ख़त्म हों बाहर की ये दौड़ें अपनी

मुझ को पहले ही से इरफ़ान का है नश्शा बहुत
मेरे आगे से हटा लो ये शराबें अपनी

अब तो हर सम्त नज़र आता है जल्वा अपना
अब तो जिस सम्त भी उठती हैं निगाहें अपनी

आइना आइना है आप को क्या देखेगा
देख सकती हैं कहाँ ख़ुद को निगाहें अपनी

रूह की प्यास है लफ़्ज़ों से कहाँ बुझती है
बंद कर दो ये सहीफ़े ये किताबें अपनी

एक तू ही तो समझ सकता है 'आसी' वर्ना
कौन समझेगा तिरे शहर में बातें अपनी
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Pandit Vidya Rattan Asi
फिर परेशाँ-हाल है क़ल्ब-ओ-जिगर क्या कीजिए
अब इलाज-ए-गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर क्या कीजिए

मेहरबाँ हो भी अगर अब चारागर क्या कीजिए
कर चुका है दर्द ही इस दिल में घर क्या कीजिए

देखिए कब मौत का झोंका बुझा डाले इसे
ज़िंदगी है इक चराग़-ए-रहगुज़र क्या कीजिए

हम से होता ही नहीं दर्द-ए-मोहब्बत का इलाज
अब यही करते हैं हम कुछ सोच कर क्या कीजिए

राहत-ओ-आराम का इस में नहीं कोई गुज़र
हो रही है ज़िंदगी फिर भी बसर क्या कीजिए

जब हमारे लब पे आती है कभी मतलब की बात
हँस दिया करते हैं वो मुँह फेर कर क्या कीजिए

सोचते हैं हाल-ए-दिल हो किस तरह उन से बयाँ
वो बिगड़ जाते हैं हर इक बात पर क्या कीजिए

हम ने जिन की चाह में बर्बाद कर दी ज़िंदगी
हम पे होती ही नहीं उन की नज़र क्या कीजिए

हम ने 'आसी' उन का हर इल्ज़ाम अपने सर लिया
अपने दुश्मन थे हमीं कुछ इस क़दर क्या कीजिए
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Pandit Vidya Rattan Asi
किसी के रंज-ओ-ग़म में जो बशर शामिल नहीं होता
वो दुनिया में कभी ताज़ीम के क़ाबिल नहीं होता

मरीज़-ए-इश्क़ से ऐ चारागर ये बे-रुख़ी कैसी
किसी बेबस का दिल रखना कोई मुश्किल नहीं होता

निहायत बे-मज़ा होती है वो रूदाद उल्फ़त की
तुम्हारा ज़िक्र जिस रूदाद में शामिल नहीं होता

कोई पूछे मिरे दिल से ज़रा महफ़िल की वीरानी
कभी महफ़िल में जब वो रौनक़-ए-महफ़िल नहीं होता

हक़ीक़त में उन्हीं को ज़िंदगानी रास आती है
वो जिन के वास्ते मरना कोई मुश्किल नहीं होता

सुलूक-ए-दहर का शिकवा कभी करते नहीं वर्ना
सुलूक-ए-दहर से ग़ाफ़िल हमारा दिल नहीं होता

मोहब्बत की कोई मंज़िल नहीं होती ज़माने में
ये वो दरिया है जिस का कोई भी साहिल नहीं होता

तिरी बातों पे ऐ नासेह यक़ीं हम किस तरह कर लें
ये वो बातें हैं जिन बातों से कुछ हासिल नहीं होता

फ़क़त साक़ी का दिल रखने को पी लेता हूँ ऐ 'आसी'
किसी सूरत में वर्ना शामिल-ए-महफ़िल नहीं होता
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Pandit Vidya Rattan Asi
मौजों से टकराए हैं हम तूफ़ानों से खेले हैं
इक जीने की ख़ातिर हम ने क्या क्या सदमे झेले हैं

क़ल्ब-ओ-नज़र के अफ़्साने ये रौनक़-ए-बज़्म-ए-ऐश-ओ-तरब
जीते जी की बातें हैं सब जीते जी के मेले हैं

उन के दम से रौनक़-ए-हस्ती उन के दम से ये दुनिया
ख़ाक-बसर हैं ज़ाहिर में जो लोग बड़े अलबेले हैं

ये अपनी हिम्मत थी हम हर मौज-ए-बला से पार हुए
खेल बहुत दिल-दोज़ थे वर्ना तक़दीर ने खेले हैं

सोचते हैं हम तिश्ना-लबों को किस ने आज नवाज़ा है
किस ने अपनी मस्त नज़र से रंगीं जाम उंडेले हैं

उन लोगों पर काश तरी कुछ चश्म-ए-इनायत हो जाती
जिन लोगों ने तेरी ख़ातिर बरसों सदमे झेले हैं

'आसी' ज़ीस्त की राहों में मिल जाए किसी का साथ मगर
ये तक़दीर की बातें हैं सब ये तक़दीर के मेले हैं
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न रुस्वा इस तरह करते बुला कर मुझ को महफ़िल में
अगर पास-ए-वफ़ा होता ज़रा भी आप के दिल में

न अब वो वलवले बाक़ी न अब वो हौसले दिल में
मिरा होना न होना एक है दुनिया की महफ़िल में

हवादिस से है निस्बत ख़ास ऐसे ज़िंदगानी को
है क़ाएम रब्त-ए-बाहम जिस तरह दरिया-ओ-साहिल में

बड़ी मुद्दत से ये आलम न जीता हूँ न मरता हूँ
बड़ी मुद्दत से मेरी ज़िंदगी है सख़्त मुश्किल में

अभी कोई बला टूटी अभी कोई सितम टूटा
रहा जब तक मैं ज़िंदा इक यही ख़दशा रहा दिल में

मिरी हस्ती की कश्ती का ठिकाना ही नहीं कोई
अभी आग़ोश-ए-तूफ़ाँ में अभी आग़ोश-ए-साहिल में

तुम्हीं सोचो मिरा जीना कोई जीने में जीना है
न कोई आरज़ू दिल में न कोई मुद्दआ' दिल में

सफ़ीना ज़िंदगी का नज़्र-ए-तूफ़ाँ कर दिया 'आसी'
तुझे आख़िर ये क्या सूझी ये क्या आई तिरे दिल में
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Pandit Vidya Rattan Asi
मुफ़लिसों पर जब कभी आया शबाब
घड़ लिए दुनिया ने क़िस्से बे-हिसाब

कौन जाने उन की क्या ता'बीर हो
हम ने आँखों में सजाए हैं जो ख़्वाब

लड़खड़ा जाएँ न क्यों हम बे-पिए
उन की आँखों से छलकती है शराब

हाए हम उस का मुक़द्दर क्या कहें
एक दिल है और ग़म हैं बे-हिसाब

लज़्ज़त-ए-शीरीनी-ए-हस्ती कहाँ
तल्ख़ियों में कट गया दौर-ए-शबाब

राहबर ने हर क़दम धोका दिया
मैं ये समझा मेरी क़िस्मत है ख़राब

दरहम-ओ-बरहम है नज़्म-ए-ज़िंदगी
ऐ ग़म-ए-दौराँ तिरा ख़ाना-ख़राब

होश कर ऐ शोख़ अब भी वक़्त है
तुझ को ले डूबेंगे ये जन्नत के ख़्वाब

हम से दुनिया ने छुपाए थे जो राज़
ख़ुद-ब-ख़ुद होने लगे वो बे-नक़ाब

ज़िंदगी भर हज़रत-ए-'आसी' रहे
रहगुज़ार-ए-शौक़ मैं ना-कामयाब
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Pandit Vidya Rattan Asi
नाख़ुदा की मुश्किलें आसान कर जाता हूँ मैं
अपनी कश्ती आप जब तूफ़ाँ से टकराता हूँ मैं

उन का हर इक क़ौल अक्सर बे-अमल पाता हूँ मैं
नासेहों की बात को ख़ातिर में कब लाता हूँ मैं

किस क़दर है ना-रसा मेरा मुक़द्दर देखिए
ऐन मंज़िल के क़रीब आ कर भटक जाता हूँ मैं

हर बला-ए- ना-गहाँ मेरा मुक़द्दर बन गई
हर बला से ख़ुद को अब महफ़ूज़-तर पाता हूँ मैं

जब मोहब्बत जान थी ईमान थी वो दिन गए
अब मोहब्बत के तसव्वुर से भी घबराता हूँ मैं

बे तिरे जो कुछ गुज़रती है मिरे दिल पर न पूछ
ज़िंदगी को मौत के नज़दीक-तर पाता हूँ मैं

मैं तिरी बातों में आ कर बे-सर-ओ-सामाँ हुआ
अब मगर ऐ दिल तिरी बातों में कब आता हूँ मैं

मुद्दतें गुज़रीं कि दिल ने की थी उन की आरज़ू
आज तक दश्त-ए-तलब में ठोकरें खाता हूँ मैं

ज़िंदगी में रंग-ओ-बू ने किस क़दर धोके दिए
इस पे भी आसी फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू खाता हूँ मैं
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तुम को चाहा तुम को पूजा
क्या ये मेरा पागल-पन था

पल में तोला पल में माशा
नादाँ ये दुनिया है दुनिया

तेरा हो कर जीना चाहा
मैं भी कितना दीवाना था

तेरा रुत्बा अर्श से ऊँचा
तुझ को मुझ से निस्बत ही क्या

मेरी तो हस्ती ही क्या थी
लेकिन तू ने किस को बख़्शा

तेरा हुस्न है आलम आलम
मेरा इश्क़ है तन्हा तन्हा

ओ मुँह फेर के जाने वाले
दुनिया क्या सोचेगी सोचा

क़तरे की औक़ात ही क्या है
क़तरा क़तरा दरिया दरिया

कौन उठा तेरी महफ़िल से
किस की उम्र का साग़र छलका

अपना अपना ज़ौक़-ए-नज़र है
किस का जल्वा कैसा पर्दा

तेरी इज़्ज़त महफ़िल महफ़िल
मैं शाइ'र आवारा रुस्वा

माना ख़ाक-बसर हूँ फिर भी
याद करोगे याद आऊँगा

ये जीना भी क्या जीना है
इस जीने से मरना अच्छा

दुनिया किस को रास आई है
किस को रास आएगी दुनिया

हम ने सुध-बुध खो दी 'आसी'
उस ने इस अंदाज़ से देखा
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Pandit Vidya Rattan Asi
ग़लत सब दलीलें ग़लत सब हवाले
अंधेरे अंधेरे उजाले उजाले

मिरे हाल पर फब्तियाँ कसने वाले
मबादा तुझे फूँक दें मेरे नाले

हमें जान-ओ-दिल से वो अपना बना ले
मगर हम कहाँ ऐसी तक़दीर वाले

मुझे वा'ज़ पर वा'ज़ फ़रमाने वाले
अगर कोई तेरी भी नींदें चुरा ले

हज़ारों थे दुनिया में इख़्लास वाले
मगर गर्दिश-ए-वक़्त ने पीस डाले

रहे ज़िंदगी में बजा सई-ए-पैहम
मुक़द्दर का लिक्खा मगर कौन टाले

मोहब्बत पे तेरा ये एहसान होगा
मोहब्बत में जी से गुज़र जाने वाले

इधर तो है महकी फ़ज़ा-ए-मोहब्बत
उधर ज़ेहन पर चंद यादों के जाले

हक़ीक़त हमेशा हक़ीक़त रहेगी
हक़ीक़त पे पर्दे कोई लाख डाले

मोहब्बत की नैरंगियाँ तौबा तौबा
कहीं रातें रौशन कहीं दिन भी काले

कोई दम के मेहमाँ हैं ऐ ज़िंदगी हम
जहाँ तक तुझे रास आना है आ ले

अगर मेरी हस्ती खटकती है तुझ को
तो ले डूब जाता हूँ ऐ नाख़ुदा ले

किसी जान-ए-जाँ की अमानत हैं 'आसी'
ये अश्कों के तूफ़ाँ ये आहें ये नाले
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