ग़मों के 'आदाब, निभ रहे हैं, मैं गिर रहा हूँ, सँभल रहा हूँ
यूँ ख़ुद को देता हूँ, मैं तसल्ली, बदल गया हूँ, बदल रहा हूँ
हज़ार शक़्लें बदलते रहते हैं, दोस्त! हालात ज़िन्दगी में
वही सुकूँ कह रहा है मुझको, मैं जिसकी ख़ातिर ख़लल रहा हूँ
कमाल है उसकी सोहबतों में, अजीब जादू है उसकी क़ुरबत
मैं उसकी रंगत में ढलके, लहजे से अपने बाहर निकल रहा हूँ
किसी के हिस्से में आ गया है, किसी के हिस्से का प्यार आख़िर
अगरचे मैं आज हूँ किसी का, मगर किसी का मैं कल रहा हूँ
ये हस्बे-उम्मीद तो नहीं पर, लिखे पे किसका है ज़ोर साहिब
मेरा मुक़द्दर, चिराग़ बनकर, मज़ारे-उल्फ़त पे जल रहा हूँ
मुझे तो, मरने के बाद भी कुछ, सुकून हासिल नहीं हुआ है
मैं बिस्तरे-ख़ाके-नम पे सोया हुआ भी, करवट बदल रहा हूँ
बड़ी ही ज़ालिम 'रिवायतें हैं, 'रक़ाबतों की 'मुहब्बतों में
वो 'ग़ैर बाहों में 'मुतमइन हैं, मैं 'दस्ते-हसरत मसल रहा हूँ
ज़रूर आसेब है कोई ये, बला है, आज़ार है मुहब्बत
मैं जानता हूँ कि आग है ये, मैं जिसकी ख़ातिर मचल रहा हूँ
मेरे तो बस में रहा नहीं कुछ, नहीं हैं आसार वापसी के
करन! ख़ुदा ही बचाये अब तो, मैं ऐसे रस्तों पे चल रहा हूँ
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