इश्क़ में ऐसी पाएदारी है
तेरी लग़्ज़िश भी हम को प्यारी है
उस का मुँह मोड़ना क़यामत था
दिल तड़पता है ज़ख़्म कारी है
तेरा किरदार तो है मा'मूली
और दस्तार कितनी भारी है
आज दिन भर उदास उदास रहा
तुम ने कैसे नज़र उतारी है
ज़िंदगी खेल है ड्रामे का
हर खिलाड़ी पे ज़िम्मेदारी है
कोई अपना नहीं लगा मुझ को
आश्ना सब हैं सब से यारी है
सर-बुलंदी अता करेगी तुम्हें
ये जो फ़ितरत में इंकिसारी है
इस का जन्नत से वास्ता ही नहीं
हुस्न-ए-अख़्लाक़ से वो आरी है
खिड़कियाँ खोल दो ज़रा 'एजाज़'
उस ने शीशे पे चोंच मारी है
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