Akhilesh Tiwari

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@akhilesh-tiwari

Akhilesh Tiwari shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Akhilesh Tiwari's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
मुलाहिज़ा हो मिरी भी उड़ान पिंजरे में
अता हुए हैं मुझे दो-जहान पिंजरे में

है सैर-गाह भी और इस में आब-ओ-दाना भी
रखा गया है मिरा कितना ध्यान पिंजरे में

इस एक शर्त पर उस ने रिहा किया मुझ को
रखेगा रेहन वो मेरी उड़ान पिंजरे में

यहीं हलाक हुआ है परिंदा ख़्वाहिश का
तभी तो हैं ये लहू के निशान पिंजरे में

मुझे सताएगा तन्हाइयों का मौसम क्या
है मेरे साथ मिरा ख़ानदान पिंजरे में

फ़लक पे जब भी परिंदों की सफ़ नज़र आई
हुई हैं कितनी ही यादें जवान पिंजरे में

ख़याल आया हमें भी ख़ुदा की रहमत का
सुनाई जब भी पड़ी है अज़ान पिंजरे में

तरह तरह के सबक़ इस लिए रटाए गए
मैं भूल जाऊँ खुला आसमान पिंजरे में
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कहने को कमरे में सारे यकजा बैठे हैं
अपने अपने मोबाइल पर तन्हा बैठे हैं

अपने ही ख़्वाबों को करके पिंजरा बैठे हैं
करने क्या आए थे लेकिन कर क्या बैठे हैं

जाने किस के हाथ लगा चेहरा जो अपना था
बे-मतलब कब से ले कर आईना बैठे हैं

एक सबक़ रटते तो हैं पर याद नहीं होता
तिफ़्ल-ए-मकतब कब से खोले बस्ता बैठे हैं

फिर वीरान शजर पर वो ही रौनक़ लौटी है
फिर वो पंछी वापस डालों पर आ बैठे हैं

नाहक़ आप निकल आए दिल की पगडंडी पर
ख़ारों में अब अपना दामन उलझा बैठे हैं

तन्हाई वाहिद रस्ता था तुम तक आने का
दुनिया वाले इस पर भी दुनिया ला बैठे हैं

एक समुंदर भेद छुपाए जज़्ब करे सब को
आस लगाए कब से कितने दरिया बैठे हैं

रोज़ वही आहट वो ही सरगोशी भीतर से
अपने में हम अपने से ही उक्ता बैठे हैं

शाम से पहले लौट के घर आने की उजलत में
सीधा सा रस्ता रस्तों में उलझा बैठे हैं
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है तो पगडंडी नज़र में मो'तबर अल्फ़ाज़ की
ले के जाएगी कहाँ तक रहगुज़र अल्फ़ाज़ की

इस से आगे सिर्फ़ तो है और मआ'नी का तिलिस्म
अब कोई हिकमत न होगी कारगर अल्फ़ाज़ की

किस गली में छोड़ कर रुख़्सत हुई परछाइयाँ
मैं हूँ और बेबस सदाएँ दर-ब-दर अल्फ़ाज़ की

ख़ामुशी के इन हरे पेड़ों पे जाने क्या बनी
आरियाँ चलती सुनी हैं रात भर अल्फ़ाज़ की

और इक जज़्बे ने काग़ज़ पर अभी तोड़ा है दम
रह गईं सब कोशिशें फिर बे-असर अल्फ़ाज़ की

तुम ने जो पिछली रुतों में बो दिए थे हर्फ़ कुछ
फ़स्ल उग आई है देखो बा-समर अल्फ़ाज़ की

होश वालों ने उसे आख़िर मोहज़्ज़ब कर दिया
वो जो बे-ख़बरी थी लाती थी ख़बर अल्फ़ाज़ की

जिस्म से बाहर निकल आई नुमाइश के लिए
ख़ुद-नुमाई की हवस थी किस क़दर अल्फ़ाज़ की
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