Akhtar Azad

Akhtar Azad

@akhtar-azad

Akhtar Azad shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Akhtar Azad's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

19

Likes

9

Shayari
Audios
  • Ghazal
अब हुस्न-ओ-इश्क़ के भी क़िस्से बदल गए हैं
मंज़िल थी एक लेकिन रस्ते बदल गए हैं

किस पर यक़ीन कीजे ये दौर मतलबी है
लगता है ख़ून के भी रिश्ते बदल गए हैं

आँखें बता रही हैं ज़ाहिर है हाल दिल का
वो बेवफ़ा नहीं थे कितने बदल गए हैं

हम जानते हैं फिर भी पहचानना है मुश्किल
कुछ दोस्तों के इतने चेहरे बदल गए हैं

उन को पता था शायद इक दिन लगेगी ठोकर
अच्छा है वक़्त से वो पहले बदल गए हैं

जब से मिली है दौलत आदाब भूल बैठे
अब बात-चीत के भी लहजे बदल गए हैं

है वक़्त का तक़ाज़ा चुप-चाप घर में रहिए
चाहत वफ़ा मोहब्बत जज़्बे बदल गए हैं

मासूमियत कहीं पर गुम हो गई है 'अख़्तर'
लगता है शहर जा कर बच्चे बदल गए हैं
Read Full
Akhtar Azad
कोई चौदहवीं-रात का चाँद बन कर तुम्हारे तसव्वुर में आया तो होगा
किसी से तो की होगी तुम ने मोहब्बत किसी को गले से लगाया तो होगा

लबों से मोहब्बत का जादू जगा के भरी बज़्म में सब से नज़रें बचा के
निगाहों के रस्ते से दिल में समा के किसी ने तुम्हें भी चुराया तो होगा

तुम्हारे ख़यालों की अँगनाइयों में मिरी याद के फूल महके तो होंगे
कभी अपनी आँखों के काजल से तुम ने मिरा नाम लिख कर मिटाया तो होगा

कभी आइने से निगाहें मिला कर जो ली होगी भरपूर अंगड़ाई तू ने
तो घबरा के ख़ुद तेरी अंगड़ाइयों ने तिरे हुस्न को गुदगुदाया तो होगा

निगाहों में शम-ए-तमन्ना जला कर तकी होंगी तुम ने भी राहें किसी की
किसी ने तो वा'दा किया होगा तुम से किसी ने तो तुम को रुलाया तो होगा

जुदा हो गया होगा जब कोई तुम से दिया होगा जब तुम को धोका किसी ने
हमारी वफ़ा याद आई तो होगी हमें अपने नज़दीक पाया तो होगा
Read Full
Akhtar Azad
चलने का हुनर कब आता है जब तक कोई ठोकर खाओ नहीं
हालात बदलते रहते हैं हालात से तुम घबराओ नहीं

सपनों के रैन-बसेरे में सदियों से बड़ा सन्नाटा है
आँखों में नींद सुलगती है अब ख़्वाब कोई दिखलाओ नहीं

ये बाज़ी प्यार की बाज़ी है यहाँ सब कुछ दाँव पे लगता है
जीतो तो कभी इतराओ नहीं हारो तो कभी पछताओ नहीं

बोझल पलकें सूने रस्ते वीरान हवेली सन्नाटा
अब कोई नहीं आने वाला चौखट पे चराग़ जलाओ नहीं

ठोकर से कभी ख़ुद अपने ही तलवे ज़ख़्मी हो जाते हैं
पत्थर तो टूट भी सकते हैं शीशे से मगर टकराओ नहीं

ख़ुद अपनी तबाही पर हँसना हर शख़्स के बस की बात नहीं
दीवाना है जो हँस लेता है दीवाने को समझाओ नहीं

गागर के सागर में अक्सर डूबा है ग़ुरूर पहाड़ों का
तुम अपने दिल पर रहम करो पनघट पे अकेले जाओ नहीं

ये रिश्ते-नाते धर्म-कर्म पे पाप-पुण्य हम क्या जानें
हम ऐसी डगर के जोगी हैं लोगो हम को बहकाओ नहीं

हमदर्दी कौन जताएगा दुनिया को तो हँसना आता है
इस टूटे हुए दिल का क़िस्सा दुनिया वालों को सुनाओ नहीं
Read Full
Akhtar Azad
हाल-ए-दिल सुनाने में उम्र बीत जाती है
दिल में घर बनाने में उम्र बीत जाती है

यूँ तो रोज़ कहते हैं उन को भूल जाएँगे
हाँ मगर भुलाने में उम्र बीत जाती है

यूँ तो मुस्कुराने को रोज़ मुस्कुराते हैं
खुल के मुस्कुराने में उम्र बीत जाती है

ज़िंदगी हमेशा जब तीरगी की ज़द में हो
शम्अ' इक जलाने में उम्र बीत जाती है

शौक़-ए-जुस्तुजू में हम ला-मकाँ से गुज़रे हैं
ख़ुद को आज़माने में उम्र बीत जाती है

इस लिए नहीं करते उन से कोई वा'दा हम
वा'दे के निभाने में उम्र बीत जाती है

मौत ज़िंदगी में कुछ फ़ासला नहीं लेकिन
फिर भी आने जाने में उम्र बीत जाती है

तिनका तिनका जोड़ा है हम ने रात-दिन 'अख़्तर'
आशियाँ सजाने में उम्र बीत जाती है
Read Full
Akhtar Azad
तारों की उतरती है डोली और चाँदनी दुल्हन होती है
जिस रात में दो दिल मिलते हैं वो रात सुहागन होती है

जब दिल से दिल मिल जाते हैं तो क्या क्या गुल खिल जाते हैं
कुछ ग़ैर गले लग जाते हैं कुछ अपनों से अन-बन होती है

जलते हैं जहाँ वाले लो जलें हम राह-ए-वफ़ा में साथ चलें
दुनिया को छोड़ो दुनिया तो दिल वालों की दुश्मन होती है

सूरत मिरी आँखों में देखो क्या देख रहे हो आईना
जिस आँख में कोई बस जाए वो आँख भी दर्पन होती है

बस उन के लिए ही रात और दिन दिल मेरा धड़कता है लेकिन
जब सामने वो आ जाते हैं तेज़ और भी धड़कन होती है

तुम बिन ये बहारों का मौसम लगता है मुझे पतझड़ की तरह
तुम साथ रहो तो हर इक रुत मेरे लिए सावन होती है

तस्वीर हो तेरी जब दिल में ग़म दिल के क़रीब आए कैसे
मैं याद तुझे कर लेता हूँ जब कोई भी उलझन हुई है

निखरे तो बने इक ताज-महल फैले तो ख़ुश्बू और ग़ज़ल
लेकिन जो सिमटती है चाहत महबूब का दामन होती है
Read Full
Akhtar Azad
दुनिया तुझे चाहे कुछ भी कहे हम जान-ए-तमन्ना कहते हैं
हम तेरी नज़र में ग़ैर सही फिर भी तुझे अपना कहते हैं

फूलों में मिस्ल-ए-गुलाब है तू तारों में हसीं महताब है तू
तू सब से अच्छा लगता है तुझे सब से अच्छा कहते हैं

तू दिलबर है दिल-दार है तू तू जान-ओ-दिल से प्यारा है
फ़ितरत ने जिस को सँवारा है तुझे हुस्न सरापा कहते हैं

कोई इश्क़ की तुझ को जान कहे कोई दिल का तुझे अरमान कहे
दिल वालों की इस बस्ती में तुझे और भी क्या क्या कहते हैं

पल-भर के लिए आराम नहीं अब उस के सिवा कोई काम नहीं
तिरी सूरत देखा करते हैं तुझ को आईना कहते हैं

तू लाख छुपाए इश्क़ मगर चेहरे से अयाँ हो जाता है
कहने वाले तो दुनिया में मुझे आज भी तेरा कहते हैं
Read Full
Akhtar Azad