Pandit Jawahar Nath Saqi

Pandit Jawahar Nath Saqi

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Pandit Jawahar Nath Saqi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Pandit Jawahar Nath Saqi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
हमारा हुस्न-ए-तअल्लुक़ वफ़ा बने न बने
वो इश्वा-संज है फ़र्रूख़-लिक़ा बने न बने

चले हैं शौक़ में हम या-ख़ुदा बने न बने
वो क्या सुलूक करे दिल-रुबा बने न बने

किया तसव्वुर-ए-मक़्सूद ने हमें हैराँ
ये मुंतहा-ए-नज़र मुद्दआ' बने न बने

सफ़ीना बहर-ए-तअ'श्शुक़ में अब तो डाल चुका
जो आश्ना है मिरा ना-ख़ुदा बने न बने

फ़रेब-ए-जल्वा है नक़्श-ओ-निगार फ़ितरत में
जो महव-ए-दीद हो हैरत-अदा बने न बने

शहीद-ए-कैफ़-ए-तमन्ना है आशिक़-ए-बेताब
बहार-ए-हुस्न-ए-सफ़ा हम-नवा बने न बने

फ़ुसूँ ख़याल है तहरीक-ए-शौक़-ए-रानाई
वो मस्त-ए-नाज़ मिरा ख़ुद-नुमा बने न बने

बंधी है ख़ंदा-ए-ज़ेर-ए-लबी से कुछ उम्मीद
वो ज़ूद-रंज है ज़ूद-आश्ना बने न बने

वो जज़्ब-ए-क़ल्ब के नैरंग का हुआ क़ाइल
हमारा आइना हैरत-नुमा बने न बने

कभी तो जाम-ए-इनायत का हो ग़नी 'साक़ी'
ये बे-नियाज़ तिरा बे-नवा बने न बने
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Pandit Jawahar Nath Saqi
तअय्युन तसलसुल है नक़्श-ए-बदन का
उसी से तअ'ल्लुक़ है ये जान-आे-तन का

तसव्वुफ़ तबद्दुल है आदात-ए-बद का
तअर्रुफ़ नतीजा है ख़ुल्क़-ए-हसन का

वही गुल शजर है वही बोस्ताँ है
वही आप है बाग़बाँ इस चमन का

वो बे-कैफ़-ओ-कम है क़दीम-ओ-अज़ल से
उसी से है ये नक़्श-ए-दहर-ए-कुहन का

तवल्ला समझ हम-ज़बानी से बेहतर
तअश्शुक़ हुआ हम-दम-ओ-हम-सुख़न का

रम-ओ-शौक़ की भी अजाइब कशिश है
बुरा हाल है आशिक़-ए-ख़स्ता-तन का

जो सिर्र-ए-ख़फ़ी है वो ऐन-ए-जली है
खुला आज उक़्दा ये सिर्र-ए-दहन का

लताइफ़ में मुज़्मर है तस्वीर-ए-वहदत
ये ख़ल्वत में पैदा है लुत्फ़ अंजुमन का

नज़र बर-क़दम है तरीक़-ए-तसव्वुर
रम-ओ-शौक़ जादा है सिर्र-ओ-एलन का

निहाँ से अयाँ है अयाँ में निहाँ है
ये जादा मिला है सफ़र दर-वतन का

सुलूक-ए-तरीक़त है आफ़ाक़-ओ-अन्फ़ुस
कि जल्वा है तनज़ीह में सीम-तन का

वो बे-पर्दा भी पर्दा-पोश-ए-नज़र है
हिजाब आ गया है हमें हुस्न-ए-ज़न का

कभी शाद-ओ-ख़ंदाँ कभी ज़ार-ओ-नालाँ
तमाशा है 'साक़ी' के दीवाना-पन का
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Pandit Jawahar Nath Saqi
वही ज़िद उन को है वही है हट
उन की चाही नहीं है ये झंझट

पाँव की मेरे जो सुनी आहट
हुए दाख़िल मकान में झट-पट

शोख़ कितना किया है पीर-ए-मुग़ाँ
मुग़बचे हो गए बड़ मुँह-फट

कोई पहलू नज़र नहीं आता
देखिए बैठे ऊँट किस करवट

याद करते नहीं कभी वो हमें
नाम की उन के हाँ लगी है रट

ज़ेब-ए-महफ़िल है माह-रुख़ मेरा
हर तरफ़ है सितारों का झुरमुट

जल्वा-गह में अजब करिश्मा है
याद करते ही आ गए झट-पट

जल्वा-फ़रमा वो गुल है गुलशन में
हर रविश पर लगे हुए हैं ठट

इन को पर्दे में भी हिजाब रहा
है नुमायाँ नक़ाब में घुँघट

नाला-ए-दिल चराग़-ए-रौशन है
कोह-ए-आतिश-फ़शाँ की है ये लिपट

बादा-ए-नाब क़िस्मत-ए-अग़्यार
'साक़ी'-ए-ज़ार को मिले तलछट
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Pandit Jawahar Nath Saqi
मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा
मिलने लगा है शायद अब तुम से कोई ख़ीरा

आँखों ही में उड़ाया नक़द-ए-दिल-ओ-जिगर को
वो शोख़ दिल-रुबा है कैसा अठाई-गीरा

उल्फ़त का जुर्म बे-शक सरज़द हुआ है हम से
इस को सग़ीरा समझो चाहे इसे कबीरा

मैदान-ए-हश्र तेरा कूचा बना है क़ातिल
जाता है अब जो कोई आता है क़शअरीरा

गिरवीदा कर लिया है नैरंगी-ए-नज़र ने
कैसी हुई फ़ुसूँ-गर वो शोख़ चश्म-गीरा

उस शोख़ दिल-रुबा पर क्यूँकर न हों फ़िदा हम
सज-धज हुई निराली बाँधा जो उस ने चीरा

मिन्नत-पज़ीर उस के आख़िर को हो गए हम
जो मुद्दआ' था अपना उस ने किया पज़ीरा

शाग़िल जो हो गए हैं महमूद आक़िबत हैं
सुल्ताना शग़्ल-ए-शब है दिन का हुआ नसीरा

थे शेफ़्ता जो 'साक़ी' इक मस्त-ए-नोश लब के
मयख़ाने ही के अंदर अपना बना ख़तीरा
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Pandit Jawahar Nath Saqi
यही तमन्ना-ए-दिल है उन की जिधर को रुख़ हो उधर को चलिए
हुआ है गो इश्तियाक़ बेहद जमा के पा-ए-नज़र को चलिए

हुए हैं महरूम-ए-दीद-ए-बे-दिल किया तजाहुल का उस ने बिस्मिल
वो दिल-रुबा बन गया है क़ातिल कमर को कस के सफ़र को चलिए

ग़रज़ थी इज़हार-ए-मुद्दआ से सितम को किया हो गए जो शाकी
वो देखते ही बिगड़ न जाएँ बुलाने अब नामा-बर को चलिए

बना है दम-साज़ कौन उन का पता नहीं मुद्दतों से लगता
ये राज़ हो जाए आश्कारा कहीं से लेने ख़बर को चलिए

अगर है शौक़-ए-जमाल-ए-जानाँ नहीं है कुछ पास-ए-वज़्अ'-ए-मौज़ूँ
शिकोह-ए-तमकीं विदाअ' कीजे मनाने उस इश्वा-गर को चलिए

शहीद है 'साक़ी'-ए-दुआ-गो कशीदा क्यूँ इस क़दर हुए हो
कभी तो ऐ यार देखने को ज़रा क़तील-ए-नज़र को चलिए
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Pandit Jawahar Nath Saqi
तालिब-ए-इश्क़ है क्या सालिक-ए-उर्यां न हुआ
क़ुर्ब महजूर हुआ वासिल-ए-जानाँ न हुआ

हैं जुनूँ जोश वही जज़्ब का निस्याँ न हुआ
क़तरा दरिया जो हुआ आइना हैराँ न हुआ

क्या सिया-मस्त हुआ कैफ़ में रक़्साँ न हुआ
जाम-ए-सर-जोश से भी सालिक-ए-वज्दाँ न हुआ

वस्ल-ए-मौऊ'द से आशोब-ए-तमन्ना है अदम
बे-तमन्ना तिरा आशुफ़्ता-ए-हिज्राँ न हुआ

मैं जो मज्ज़ूब-ए-अज़ल था न गई मह्विय्यत
सुब्ह-ए-महशर से मिरा चाक गरेबाँ न हुआ

दीद-ए-बे-चून-ओ-चिगूँ सैर-ए-लताएफ़ में जो थी
महव-ए-आईना-ए-नैरंगी-ए-अल्वाँ न हुआ

वुसअ'त-ए-मशरब-ए-रिंदाँ है तिलिस्म-ए-हैरत
ये किसी तंग फ़ज़ा दिल का बयाबाँ न हुआ

सूरत-ए-हाल ने मशहूद किया कैफ़-ए-बतूँ
राज़-ए-सर-बस्ता मिरा गिर्या-ए-पिनहाँ न हुआ

जम्अ' क्यूँ फ़र्क़ हो नैरंग-ए-मज़ाहिर के सबब
तेरा मंज़ूर-ए-नज़र आँखों से पिन्हाँ न हुआ

आँख से आँख लड़ी चीन-ए-जबीं महव हुई
शौक़-ए-दीदार मिरा जल्वा-पशेमाँ न हुआ

जाम-ए-सरशार में कुछ कैफ़ न आया हम को
'साक़ी'-ए-मस्त जो सर-हल्क़ा-ए-मस्ताँ न हुआ
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Pandit Jawahar Nath Saqi

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