जहाँ होगी मुझे रंजिश उसी का साथ दोगी तुम
छुड़ाकर हाथ हाथों से कहो फिर क्या कहोगी तुम
मुझे तो डर सा लगता है चले आएँगे बाराती
सजा मेहँदी हसीं हाथों में क्या दुल्हन बनोगी तुम
सुनो दुल्हन बनोगी तुम यक़ीं होता नहीं मुझको
अगर सच है यक़ीं मानो बहुत सुंदर लगोगी तुम
सभी मैं भूल जाऊँगा मिटा दूँगा ख़याल अपना
मगर मेहँदी लगा हाथों में क्या दुल्हन बनोगी तुम
सुनो मेहँदी लगे वो हाथ भी मैं छू न पाऊँगा
उन्हें मैं देख भर लूँगा मगर सुंदर लगोगी तुम
वहाँ होगी मोहब्बत भी ज़रूरत भी हिफ़ाज़त भी
यहाँ है बस ज़रूरत फिर ज़रूरत क्यों चुनोगी तुम
कभी यूँ ही अचानक काश अगर मैं याद आऊँ तो
मुझे ये जानना है याद करके क्या करोगी तुम
ये सब जो चाहता कहना कभी क्या कह भी पाऊँगा
अकेले बैठ कर सारी मेरी बातें सुनोगी तुम
कहा है क्या मेरी ख़ातिर कभी जो काश तुम पूछो
कहूँ तुमसे या पूछूँ मैं मेरी दुल्हन बनोगी तुम
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