Wafa Naqvi

Wafa Naqvi

@wafa-naqvi

Wafa Naqvi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Wafa Naqvi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

36

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
ज़िंदगी की था अलामत इक हुनर बे-जान सा
रह गया तस्वीर कोई देख कर हैरान सा

तेरी यादें दफ़्न कर देती हैं उस के ज़ोर को
रोज़ उठता तो है दिल में जा-ब-जा तूफ़ान सा

रौनक़-ए-शहर-ए-रिया ताख़ीर होनी थी हुई
रास्ते में पड़ गया था इक खंडर वीरान सा

आप आएँगे तो वहशत साथ ले कर आएँगे
रास्ता आता है मेरे घर पे इक सुनसान सा

पूछने आता नहीं कोई मिरे हालात अब
मैं वतन में हो गया हूँ अपने ही अंजान सा

जब सफ़र तय कर लिया तब इस का अंदाज़ा हुआ
देखने को रास्ता तो था बहुत आसान सा

कोई पूछे राहबर से रख़्त-ए-जाँ रख़्त-ए-सफ़र
क़ाफ़िला जाता कहाँ है बे-सर-ओ-सामान सा

काग़ज़ी फूलों पे तितली कोई आई नहीं
मेज़ पर रक्खा हुआ था यूँ तो इक गुल-दान सा
Read Full
Wafa Naqvi
कभी जो धूप हमारे मकाँ में आ जाए
तो साया-दार शजर भी अमाँ में आ जाए

मैं शाहज़ादा नहीं तो फ़क़ीर ही बेहतर
कहीं तो ज़िक्र मिरा दास्ताँ में आ जाए

मैं तेरा नाम सलीक़े से तो पुकारूँ मगर
ख़ुदा-न-ख़्वास्ता लुक्नत ज़बाँ में आ जाए

किसे डुबोना है और किस को पार करना है
शुऊ'र इतना तो आब-ए-रवाँ में आ जाए

मैं एक लम्हे को सदियों की ज़िंदगी समझूँ
मिरा यक़ीं जो हिसार-ए-गुमाँ में आ जाए

झुलस चुका है बहुत धूप में बदन मेरा
सो उस से कहता हूँ अब साएबाँ में आ जाए

मैं अपनी अक़्ल से कुछ और काम ले लूँगा
कभी ये दिल भी मिरा इम्तिहाँ में आ जाए

सफ़र की सारी अज़िय्यत पे ख़ाक उड़ती है
भटक के कोई अगर कारवाँ में आ जाए

मैं जिस को राज़ बताता हूँ अपनी ख़ल्वत के
अजब नहीं कि सफ़-ए-दुश्मनाँ में आ जाए
Read Full
Wafa Naqvi
सफ़र आसान है लेकिन उसे दुश्वार करते हैं
दर-ओ-दीवार घर के याद हम सौ बार करते हैं

इन्हीं तारीक रातों से निकल आएगा इक सूरज
अँधेरों के सफ़ीने पर शब-ए-ग़म पार करते हैं

समुंदर के किनारे पर ठहरते हैं घरौंदे कब
अजब कार-ए-जुनूँ है आप ये बे-कार करते हैं

बुला लेते हैं तारीकी वो अपने घर के आँगन में
उजाले क्यूँ मगर सारे पस-ए-दीवार करते हैं

छुपा रहता है दस्त-ए-आरज़ू ख़ुद्दार लोगों का
बड़ी मुश्किल से अपनी ज़ात का इज़हार करते हैं

हमें साकित नहीं रहना मुआफ़िक़ हैं हवाओं के
हमारी ख़ाक उड़ती है ये हम इक़रार करते हैं

थकन उठने नहीं देती किसी नाकाम हसरत की
सवेरे ख़्वाब ही तेरे मुझे बेदार करते हैं

ख़मोशी भी तो पैग़ाम-ए-तमन्ना-ए-दिल-ओ-जाँ है
ज़बाँ जिन की नहीं होती वही तकरार करते हैं

ज़माना तेरे हाथों पर करे बैअ'त ये मुमकिन है
यज़ीद-ए-वक़्त हम तेरा मगर इंकार करते हैं
Read Full
Wafa Naqvi
कहीं ये ख़्वाब मिरा ज़िंदगी न बन जाए
चराग़ बुझता हुआ रौशनी न बन जाए

मैं इस ख़याल से रोता नहीं हूँ सहरा में
कहीं ये दश्त किसी दिन नदी न बन जाए

इरादा कर तो रहे हो उसे चलाने का
मगर ये तीर तुम्हारा हँसी न बन जाए

अज़ाब-ए-वस्ल गवारा तो है हमें लेकिन
ये एक लम्हा रहे इक सदी न बन जाए

अजीब रंग हैं खींचे ही जा रहे हैं मुझे
जो मैं बनाता नहीं हूँ वही न बन जाए

समुंदरों में जिसे मैं ने बहते देखा है
मिरा नसीब वो तिश्ना-लबी न बन जाए

भटक रहा है बहुत रात-दिन कोई महताब
मकान उस का कहीं बे-घरी न बन जाए

तमाम-उम्र जो तन्हाई में रहा मेरी
वो अंजुमन में कहीं अजनबी न बन जाए

उसी ख़याल से तोड़े गए सभी कश्कोल
हमारे शहर में कोई सख़ी बन जाए
Read Full
Wafa Naqvi
वो दरिया है कोई सहरा नहीं है
मगर पुर-जोश भी लगता नहीं है

तुझे तेरा समुंदर हो मुबारक
हमारी प्यास से अच्छा नहीं है

वही बारिश का चर्चा कर रहे हैं
बदन जिन का कभी भीगा नहीं है

कभी देखा नहीं है हम ने वर्ना
ज़मीं की वुसअ'तों में क्या नहीं है

अभी से आ गई है रात मिलने
अभी तो चाँद भी निकला नहीं है

निगाहें तक रही हैं घोंसले की
परिंदा लौट कर आया नहीं है

मैं रुकने के लिए आया था घर में
किसी ने क्यूँ मुझे रोका नहीं है

कहाँ असरार अपने पा सकेगा
अभी ख़ुद में कोई भटका नहीं है

सभी किरदार अच्छे लग रहें हैं
कहानी में कोई सच्चा नहीं है

मह-ए-कनआँ' है अहद-ए-ना-रसाई
अभी बाज़ार तक पहुँचा नहीं है

ज़मीं पर ज़ोर है जादूगरों का
असा-ए-हज़रत-ए-मूसा नहीं है

समुंदर तो मथे जाती है दुनिया
कोई भी विश मगर पीता नहीं है
Read Full
Wafa Naqvi

LOAD MORE