Osama Khalid

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@osama-khalid

Osama Khalid shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Osama Khalid's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
  • Nazm
बरहना-पा है भटकती रूहों को दूध देती है पालती है
फिर उन के जिस्मों पे क़हक़हे फेंकती है चेहरे उदासती है

दरून-ए-दिल ऐसा लग रहा है कोई बला है बड़ी बला है
जो साँस लेती है आह भरती है बात करने पे मारती है

अजीब मंतिक़ की पारसा है ये हिज्र की शब ये हिज्र की शब
लिपट के सोती है किस के पहलू से किस के पहलू में जागती है

मैं ख़्वाब को चीरने का ख़ंजर छुपा के बिस्तर पे लेटता हूँ
पता नहीं किस की मुख़बिरी पर ये रात जेबें खंगालती है

हमारे पाँव भी झड़ रहे हैं क़यामत-ए-क़ैद-ए-ज़िंदगी में
तुम्हारी आहों की शो'लगी भी हमारी ज़ंजीर काटती है

धड़ाम से गिर पड़ी थी मुझ पर अजीब हैअत की सिर कटी रूह
ये फ़ाहिशा अब न सो रही है न ऊँघती है न खाँसती है
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Osama Khalid
पाँव का ध्यान तो है राह का डर कोई नहीं
मुझ को लगता है मिरा ज़ाद-ए-सफ़र कोई नहीं

बाज़ औक़ात तो मैं ख़ुद पे बहुत चीख़ता हूँ
चीख़ता हूँ कि उधर जाओ जिधर कोई नहीं

सर पे दीवार का साया भी उदासी है मुझे
ज़ाहिरन ऐसी उदासी का असर कोई नहीं

आख़िरी बार मुझे खींच के सीने से लगा
और फिर देख मुझे मौत का डर कोई नहीं

ख़ुद-कुशी करते समय पूछता हूँ मेरा अज़ीज़
और आवाज़ सी आती है तो मिरा कोई नहीं

भरी दुनिया है सिसकने में झिजक होगी तुम्हें
ये मिरा दिल है इधर रो लो इधर कोई नहीं

एक दिन लोग मुझे तख़्त-नशीं देखेंगे
या ये देखेंगे मिरा जिस्म है सर कोई नहीं

उस की हिजरत बड़ा आ'साब-शिकन सानेहा थी
शहर तो शहर है जंगल में शजर कोई नहीं

सुब्ह से रात की मायूसी भगाने का सबब
कोई तो होता मिरे दोस्त मगर कोई नहीं

बे-ख़याली सी मुझे गोद में भर लेती है
दर पे दस्तक हो तो कह देता हूँ घर कोई नहीं
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Osama Khalid
कुंडी बजा के इस लिए भागा नहीं हूँ मैं
दिखता नहीं किसी को तो सोचा नहीं हूँ मैं

पिछले बरस की बात है कुछ लोग आए थे
दस्तक सुनी तो कमरे से चीख़ा नहीं हूँ मैं

जाने मैं किस का जिस्म हूँ और किस के पास हूँ
ढूँडा है ख़ुद को हर जगह मिलता नहीं हूँ मैं

ले जाओ मुझ को मुझ से मगर एक बात है
लम्बे सफ़र के वास्ते अच्छा नहीं हूँ मैं

साया हूँ और दिन ढले बुझ-वुझ गया हूँ क्या
देखा है आज आइना दिखता नहीं हूँ मैं

नाख़ुन चुभो के भाँप लो मुझ में मिरा वजूद
कितना हूँ अपने-आप में कितना नहीं हूँ मैं

मुमकिन है ये मलाल तुम्हें भी फ़रेब दे
जैसा मुझे बनाया था वैसा नहीं हूँ मैं

इक इक दुकाँ से पूछा कि मैं दस्तियाब हूँ
इंकार सुन के बुझ गया अच्छा नहीं हूँ मैं
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