Ahmad Javaid

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Ahmad Javaid shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahmad Javaid's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
कितने में बनती है मोहर ऐसी
ना-चीज़ अहमद-जावेद-'उवैसी'

मेरे सुख़न में है एक शय सी
आवाज़ इतनी ख़ामोशी ऐसी

कल आशिक़ों का आते ही मज़कूर
क्या क्या न बहके अल्लामा-क़ैसी

इस मंतिक़ी पर अपनी नज़र है
मिन-वज्ह ऐसी मिन-वज्ह वैसी

याँ का न होना भी वहम ही है
बुतलान किस का तहक़ीक़ कैसी

खुलती नहीं है मुझ पर ये दुनिया
दिल में नहीं सी आँखों में है सी

जितनी मसाफ़त सर कर चुका हूँ
लगती है वो भी ना-कर्दा तय सी

सूखा पड़ा है दरिया तो कब का
है मौज-ख़ेज़ी वैसी की वैसी

अब शहर सारा ग़र्क़ाब जानो
अश्कों में आई ये बूँद कैसी

साग़र मिला है साग़र सा मुझ को
उस में भरी है मय कोई मय सी

देता है तर्क-ए-दुनिया की दावत
'जावेद' की तो ऐसी-की-तैसी
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Ahmad Javaid
मौजूद हैं कितने ही तुझ से भी हसीं कर के
झुटला दिया आँखों को मैं दिल पे यक़ीं कर के

जिस चश्म से रिंदों में हू-हक़ है उसी ने तो
ज़ाहिद को भी रक्खा है मेहराब-नशीं कर के

क्या उस की लताफ़त का अहवाल बयाँ कीजिए
जो दिल पे हुआ ज़ाहिर आँखों को नहीं कर के

कुछ कम था बला-ए-जाँ पे चेहरा कि ऊपर से
आँखें भी बना लाए ग़ारत-गर-ए-दीं कर के

आईने के आगे से अब उठ भी चुको साहब
क्या कीजिएगा ख़ुद को इतना भी हसीं कर के

सौ दाग़ हैं सीने में वो दाग़-ए-जुदाई भी
देखो तो ज़रा होगा उन में ही कहीं कर के

इस दिल का तो नक़्शा ही दुनिया ने बदल डाला
कुछ याद है रहता था वो भी तो यहीं कर के

'जावेद' वहाँ तक तो मुश्किल है कोई पहुँचे
मँगवाइए क़ासिद भी जिब्रील-ए-अमीं कर के
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Ahmad Javaid
था जानिब-ए-दिल सुब्ह-दम वो ख़ुश-ख़िराम आया हुआ
आधा क़दम सू-ए-गुरेज़ और नीम-गाम आया हुआ

रक़्स और पा-कूबी करूँ लाज़िम है मजज़ूबी करूँ
देखो तो है मेरा सनम मेरा इमाम आया हुआ

दरिया-ए-दरवेशी के बीच तूफ़ान-ए-बे-ख़्वेशी के बीच
वो गौहर-ए-सैराब वो साहब-मक़ाम आया हुआ

ऐ दिल बता ऐ चश्म कह ये रू-ए-दिल-बर ही तो है
या माह-ए-चर्ख़-हफ़्त में बाला-ए-बाम आया हुआ

है ज़र्रा ज़र्रा पर सदा अहलव-व-सहलन मर्हबा
क्या सर-ज़मीन-ए-दिल पे है वो आज शाम आया हुआ

तुझ पर पड़ी ये की छूट ऐ चश्म-ए-हैराँ कुछ तो फूट
क्या हद्द-ए-बीनाई में है वो ग़ैब-ए-फ़ाम आया हुआ

लर्ज़ां है दिल में राज़ सा शो'ला क़दीम-आवाम सा
या लाला-ए-ख़ामोश पर रंग-ए-दवाम आया हुआ

है मौसम-ए-दीवानगी फिर चाक ईजाद मिरी
लौटा रहे हैं पहले का ख़य्यात काम आया हुआ

मेरी तरफ़ से ऐ अज़ीज़ दिल में न रखना कोई चीज़
फिरते भी देखा है कहीं साहब ग़ुलाम आया हुआ

ख़ुर्शीद-सामानी तिरी और ज़र्रा-दामानी मिरी
है अजूबा देखने हर ख़ास-ओ-आम आया हुआ

इक गिरदाड़ी सहरा समेत इक मौज उठी दरिया समेत
दुनिया-ए-ख़ाक-ओ-आब में था कोई शाम आया हुआ

यक उम्र-रफ़्तारी के साथ यक माह-सय्यारी के साथ
यक चर्ख़-ए-दवारि के साथ गर्दिश में जाम आया हुआ

सद-चश्म बेदारी के साथ सद-सीना सरशारी के साथ
सौ सौ तरह शहबाज़ दिल है ज़ेर-ए-दाम आया हुआ
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Ahmad Javaid
किया है दिल ने बेगाना जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही से
हमें जागीर-ए-आज़ादी मिली दरबार-ए-शाही से

खिला है ग़ुंचा-ए-हैरत हवा-ए-गाह-गाही से
हुए मज्ज़ूब रफ़्ता रफ़्ता उस की कम-निगाही से

तिरी दुनिया में ऐ दिल हम भी इक गोशे में रहते हैं
हमें भी कुछ उम्मीदें हैं तिरी आलम-पनाही से

रेआया में शहंशाह-ए-जुनूँ की हम भी दाख़िल हैं
हमें भी कुछ न कुछ निस्बत तो है ज़िल्ल-ए-इलाही से

हुए हैं बस-कि बैअत उस नज़र के ख़ानवादे में
फ़क़ीरी से तअल्लुक़ है न मतलब बादशाही से

किया है उस नज़र ने सरफ़राज़ अहल-ए-मोहब्बत को
किसी को ताज-दारी से किसी को बे-कुलाही से

कहाँ वो ख़ानुमाँ-बर्बादी-ए-इश्क़ और कहाँ ये हम
फिरा करते हैं यूँही दर-ब-दर वाही तबाही से
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Ahmad Javaid
हरगिज़ न राह पाई फ़र्दा-ओ-दी ने दिल पर
रहती है एक हालत बारह महीने दिल पर

सकते में हैं मह-ओ-मेहर दरिया पड़े हैं बे-बहर
है सख़्त ग़ैर-मौज़ूँ दुनिया ज़मीन-ए-दिल पर

शो'ला चराग़ में है सौदा दिमाग़ में है
साबित क़दम हूँ अब तक दीन-ए-मुबीं-ए-दिल पर

या-अय्योहल-मजाज़ीब है बस-कि ज़ेर-ए-तर्तीब
मजमूअतुल-फ़तावा क़ौल-ए-मतीन-ए-दिल पर

लिख लो ये मेरी राय क्या क्या सितम न ढाए
कल दिल ने आदमी पर आज आदमी ने दिल पर

ये रंज ना-कशीदा ये जेब ना-दरीदा
ऐ इश्क़ रहम हाँ रहम इन तारकीन-ए-दिल पर

मानो ये घर न छोड़ो दुनिया को देखते हो
जो कुछ गुज़र चुकी है इस ना-मकीन-ए-दिल पर

इक सर है ना-कशूदा इक क़ौल ना-शनूदा
इक नग़्मा ना-सरूदा तर्ज़-ए-नवीन-ए-दिल पर

पड़ता है जस्ता जस्ता मद्धम सा और शिकस्ता
इक माह-ए-नीलमीं का परतव नगीन-ए-दिल पर

सौ बार इधर से गुज़रा वो आतिशीं चमन सा
इक बर्ग-ए-गुल न रक्खा दस्त-ए-यमीन-ए-दिल पर

ख़ूँ-बस्ता चश्म-ए-हैराँ पैवस्ता ला'न-गर्दां
बे-दीद बल्कि बे-दर्द बल्कि कमीने दिल पर

तूफ़ान उठा रखा था आँखों ने वाह-वा का
उस की नज़र नहीं थी कल आफ़रीन-ए-दिल पर

रंगीन तो बहुत है दुनिया मगर महाशय
धब्बे से पड़ गए हैं कुछ आस्तीन-ए-दिल पर

वो माह-ए-नाज़नीं है या सर्व-आतिशीं है
या फ़ित्ना-ए-क़यामत बरपा ज़मीन-ए-दिल पर

सब ना-मलामतों को सब बे-करामतों को
सब सर-सलामतों को लाना है दीन-ए-दिल पर

'जावेद' को दिखा कर कहता है सब से दिलबर
ऊधम मचा रखा था इन भाई-जी ने दिल पर

फ़ारूक़ी और अहमद-मुश्ताक़ को तहय्यत
शाख़-ए-ग़मगीन-ए-दिल पर हिस्न-ए-हसीन-ए-दिल पर
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Ahmad Javaid
आमादा रक्खें चश्म-ओ-दिल सामान-ए-हैरानी करें
क्या जानिए किस वक़्त वो नज़ारा फ़रमानी करें

बहर-ए-बला है मौज पर क़हर-ए-क़ज़ा है औज पर
हैं काह-ए-सामाँ मुस्तइद ता ना-गुरेज़ानी करें

आई है रात ऐसी दनी है हर चराग़ अफ़्सुर्दनी
ऐ दिल बया ऐ दिल बया कुछ शो'ला-सामानी करें

हाँ हाँ दिखाएँगे ज़रूर हम वहशत-ए-दिल का वफ़ूर
पहले ये शहर-ए-दश्त-ओ-दर तकमील-ए-वीरानी करें

ऐ आशिक़ाँ ऐ आशिक़ाँ आया है अमर-ए-ना-गहाँ
जो लोग हैं नज़ारा जू वो मश्क़-ए-हैरानी करें

वो शम्अ' है दर-ए-ताक़-ए-दिल रौशन हैं सब आफ़ाक़-ए-दिल
उफ़्तादगान-ए-ख़ाक उठो अफ़्लाक गर्दानी करें

है बस-कि तेग़ उस की रवाँ कमयाब हैं ना-कुश्तगाँ
सब सरफ़रोशों से कहो चंदे फ़रावानी करें

इक नासिहाना अर्ज़ है दरियाओं पर ये फ़र्ज़ है
दिल की तरह हर लहर में तज्दीद-ए-तुग़्यानी करें

ऐसे घरों में अहल-ए-दिल रहते नहीं हैं मुस्तक़िल
तब्दील ये दीवार-ओ-दर उस्लूब-ए-वीरानी करें
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Ahmad Javaid
अच्छी गुज़र रही है दिल-ए-ख़ुद-कफ़ील से
लंगर से रोटी लेते हैं पानी सबील से

दुनिया का कोई दाग़ मिरे दिल को क्या लगे
माँगा न इक दिरम भी कभी इस बख़ील से

क्या बोरिया-नशीं को हवस ताज ओ तख़्त की
क्या ख़ाक-आश्ना को ग़रज़ अस्प ओ फ़ील से

दिल की तरफ़ से हम कभी ग़ाफ़िल नहीं रहे
करते हैं पासबानी-ए-शहर उस फ़सील से

गहवारा-ए-सफ़र में खुली है हमारी आँख
ता'मीर अपने घर की हुई संग-ए-मील से

इक शख़्स बादशाह तो इक शख़्स है वज़ीर
गोया नहीं हैं दोनों हमारी क़बील से

दुनिया मिरे पड़ोस में आबाद है मगर
मेरी दुआ-सलाम नहीं उस ज़लील से

'जावेद' एक ग़म के सिवा दिल में है भी क्या
हम घर चला रहे हैं मता-ए-क़लील से
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Ahmad Javaid
आँसू की तरह दीदा-ए-पुर-आब में रहना
हर गाम मुझे ख़ाना-ए-सैलाब में रहना

वो अबरू-ए-ख़मदार नज़र आए तो समझे
आँखों की तरह साया-ए-मेहराब में रहना

ग़फ़लत ही में कटते हैं शब-ओ-रोज़ हमारे
हर आन किसी ध्यान किसी ख़्वाब में रहना

दिन भर किसी दीवार के साए में तग-ओ-ताज़
शब जुस्तुजू-ए-चादर-ए-महताब में रहना

वीराना-ए-दुनिया में गुज़रते हैं मिरे दिन
रातों को रवाक़-ए-दिल-ए-बेताब में रहना

मिट्टी तो हर इक हाल में मिट्टी ही रहेगी
क्या टाट में क्या क़ाक़ुम ओ संजाब में रहना

घर और बयाबाँ में कोई फ़र्क़ नहीं है
लाज़िम है मगर इश्क़ के आदाब में रहना

इक पल को भी आँखें न लगीं ख़ाना-ए-दिल में
हर लम्हा निगहबानी-ए-असबाब में रहना
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Ahmad Javaid
चाक करते हैं गरेबाँ इस फ़रावानी से हम
रोज़ ख़िलअत पाते हैं दरबार-ए-उर्यानी से हम

मुंतख़ब करते हैं मैदान-ए-शिकस्त अपने लिए
ख़ाक पर गिरते हैं लेकिन औज-ए-सुल्तानी से हम

हम ज़मीन-ए-क़त्ल-गह पर चलते हैं सीने के बल
जादा-ए-शमशीर सर करते हैं पेशानी से हम

हाँ मियाँ दुनिया की चम-ख़म ख़ूब है अपनी जगह
इक ज़रा घबरा गए हैं दिल की वीरानी से हम

ज़ोफ़ है हद से ज़ियादा लेकिन इस के बावजूद
ज़िंदगी से हाथ उठा सकते हैं आसानी से हम

दिल से बाहर आज तक हम ने क़दम रक्खा नहीं
देखने में ज़ाहिरा लगते हैं सैलानी से हम

दौलत-ए-दुनिया कहाँ रक्खें जगह भी हो कहीं
भर चुके हैं अपना घर बे-साज़-ओ-सामानी से हम

ज़र्रा ज़र्रा जगमगाती जल्वा-बारानी-ए-दोस्त
देखते हैं रौज़न-ए-दीवार हैरानी से हम

अक़्ल वालो ख़ैर जाने दो नहीं समझोगे तुम
जिस जगह पहुँचे हैं राह-ए-चाक-दामानी से हम

कारोबार-ए-ज़िंदगी से जी चुराते हैं सभी
जैसे दरवेशी से तुम मसलन जहाँबानी से हम
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Ahmad Javaid
कोई जल में ख़ुश है कोई जाल में
मस्त हैं सब अपने अपने हाल में

जादा-ए-शमशीर हो या फ़र्श-ए-गुल
फ़र्क़ कब आया हमारी चाल में

एक आँसू से कमी आ जाएगी
ग़ालिबन दरियाओं के इक़बाल में

शोला-ए-सद-रंग की सी कैफ़ियत
तुझ में है या तेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल में

एक लम्हा मेरा यार-ए-ग़ार है
इस मुसीबत-गाह-ए-माह-ओ-साल में

ये जो मेरे जी को चैन आता नहीं
हिन्द में ईरान में बंगाल में

रोज़ का रोना लगा है अपने साथ
हम ने आँखें बाँध लीं रुमाल में

दीदा ओ दिल ने किया है काम बंद
ठप है कारोबार इस हड़ताल में

इस निगाह-ए-नाज़ की एक एक बात
है हमारे पीर के अक़वाल में

दिल पे साया है किसी सुल्तान का
वर्ना क्या रक्खा है इस कंगाल में
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Ahmad Javaid
दिल-ए-बेताब के हमराह सफ़र में रहना
हम ने देखा ही नहीं चैन से घर में रहना

स्वाँग भरना कभी शाही कभी दरवेशी का
किसी सूरत से मुझे उस की नज़र में रहना

एक हालत पे बसर हो नहीं सकती मेरी
जामा-ए-ख़ाक कभी ख़िलअत-ए-ज़र में रहना

दिन में है फ़िक्र-ए-पस-अंदाज़ी-ए-सरमाया-ए-शब
रात भर काविश-ए-सामान-ए-सहर में रहना

दिल से भागे तो लिया दीदा-ए-तर ने गोया
आग से बच के निकलना तो भँवर में रहना

अहल-ए-दुनिया बहुत आराम से रहते हैं मगर
कब मयस्सर है तिरी राहगुज़र में रहना

वस्ल की रात गई हिज्र का दिन भी गुज़रा
मुझे वारफ़्तगी-ए-हाल-ए-दिगर में रहना

कर चुका है कोई अफ़्लाक ओ ज़मीं की तकमील
फिर भी हर आन मुझे अर्ज़-ए-हुनर में रहना
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