Jagan Nath Azad

Jagan Nath Azad

@jagan-nath-azad

Jagan Nath Azad shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jagan Nath Azad's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
  • Nazm
जो दिल का राज़ बे-आह-ओ-फ़ुग़ाँ कहना ही पड़ता है
तो फिर अपने क़फ़स को आशियाँ कहना ही पड़ता है

तुझे ऐ ताइर-ए-शाख़-ए-नशेमन क्या ख़बर इस की
कभी सय्याद को भी बाग़बाँ कहना ही पड़ता है

ये दुनिया है यहाँ हर काम चलता है सलीक़े से
यहाँ पत्थर को भी ला'ल-ए-गिराँ कहना ही पड़ता है

ब-फ़ैज़-ए-मस्लहत ऐसा भी होता है ज़माने में
कि रहज़न को अमीर-ए-कारवाँ कहना ही पड़ता है

मुरव्वत की क़सम तेरी ख़ुशी के वास्ते अक्सर
सराब-ए-दश्त को आब-ए-रवाँ कहना ही पड़ता है

ज़बानों पर दिलों की बात जब हम ला नहीं सकते
जफ़ा को फिर वफ़ा की दास्ताँ कहना ही पड़ता है

न पूछो क्या गुज़रती है दिल-ए-ख़ुद्दार पर अक्सर
किसी बे-मेहर को जब मेहरबाँ कहना ही पड़ता है
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Jagan Nath Azad
तेरा ख़याल है दिल-ए-हैराँ लिए हुए
या ज़र्रा आफ़्ताब का सामाँ लिए हुए

देखा उन्हें जो दीदा-ए-हैराँ लिए हुए
दिल रह गया जराहत-ए-पिन्हाँ लिए हुए

मैं फिर हूँ इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ का मुंतज़िर
इक याद-ए-इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ लिए हुए

मैं छेड़ने लगा हूँ फिर अपनी नई ग़ज़ल
आ जाओ फिर तबस्सुम-ए-पिन्हाँ लिए हुए

क्या बेबसी है ये कि तिरे ग़म के साथ साथ
मैं अपने दिल में हूँ ग़म-ए-दौराँ लिए हुए

फ़ुर्क़त तिरी तो एक बहाना थी वर्ना दोस्त
दिल यूँ भी है मिरा ग़म-ए-पिन्हाँ लिए हुए

अब क़ल्ब-ए-मुज़्तरिब में नहीं ताब-ए-र्द-ए-हिज्र
अब आ भी जाओ दर्द का दरमाँ लिए हुए

सिर्फ़ एक शर्त-ए-दीदा-ए-बीना है ऐ कलीम
ज़र्रे भी हैं तजल्ली-ए-पिन्हाँ लिए हुए

मैं ने ग़ज़ल कही है जिगर की ज़मीन में
दिल है मिरा नदामत-ए-पिन्हाँ लिए हुए

आज़ाद ज़ौक़-ए-दीद न हो ख़ाम तो यहाँ
हर आईना है जल्वा-ए-जानाँ लिए हुए
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Jagan Nath Azad
ख़याल-ए-यार जब आता है बेताबाना आता है
कि जैसे शम्अ की जानिब कोई परवाना आता है

तसव्वुर इस तरह आता है तेरा महफ़िल-ए-दिल में
मिरे हाथों में जैसे ख़ुद ब-ख़ुद-पैमाना आता है

ख़िरद वालो ख़बर भी है कभी ऐसा भी होता है
जुनूँ की जुस्तुजू में आप ही वीराना आता है

कभी क़स्द-ए-हरम को जब क़दम अपना उठाता हूँ
मिरे हर इक क़दम पर इक नया बुत-ख़ाना आता है

दर-ए-जानाँ से आता हूँ तो लोग आपस में कहते हैं
फ़क़ीर आता है और बा-शौकत-ए-शाहाना आता है

दकन की हीर से 'आज़ाद' कोई जा के ये कह दे
कि राँझे के वतन से आज इक दीवाना आता है

वही ज़िक्र-ए-दकन है और वही फ़ुर्क़त की बातें हैं
तुझे 'आज़ाद' कोई और भी अफ़्साना आता है
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Jagan Nath Azad
अब मैं हूँ आप एक तमाशा बना हुआ
गुज़रा ये कौन मेरी तरफ़ देखता हुआ

कैफ़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ की लज़्ज़त जिसे मिली
हासिल उसे विसाल नहीं है तो क्या हुआ

ख़ाशाक-ए-ज़िंदगी तो मिला उस के साथ साथ
तेरा करम कि दर्द का शोला अता हुआ

दर तक तिरे ख़ुदी ने न आने दिया जिसे
आँखों से अश्क बन के वो सज्दा अदा हुआ

शीरीनी-ए-हयात की लज़्ज़त में है कमी
कुछ इस में ज़हर-ए-ग़म न अगर हो मिला हुआ

कुछ कम नहीं हों लज़्ज़त-ए-फ़ुर्क़त से फ़ैज़-याब
हासिल अगर विसाल नहीं है तो क्या हुआ

अब इस मक़ाम पर है मिरी ज़िंदगी कि है
हर दोस्त एक नासेह-ए-मुश्फ़िक़ बना हुआ

ये भी ज़रा ख़याल रहे आज़िम-ए-हरम
रस्ते में बुत-कदे का भी दर है खुला हुआ

वो क़द्द-ए-नाज़ और वो चेहरे का हुस्न ओ रंग
जैसे हो फूल शाख़ पे कोई खिला हुआ

पेश-ए-नज़र थी मंज़िल-ए-जानाँ की जुस्तुजू
और फिर रहा हूँ अपना पता ढूँडता हुआ

कह कर तमाम रात ग़ज़ल सुब्ह के क़रीब
'आज़ाद' मिस्ल-ए-शम-ए-सहर हूँ बुझा हुआ
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Jagan Nath Azad
फिर लौट कर गए न कभी दश्त-ओ-दर से हम
निकले बस एक बार कुछ इस तरह घर से हम

कुछ दूर तक चले ही गए बे-ख़बर से हम
ऐ बे-ख़ुदी-ए-शौक़ ये गुज़रे किधर से हम

आज़ाद बे-नियाज़ थे अपनी ख़बर से हम
पलटे कुछ इस तरह से दकन के सफ़र से हम

क़ल्ब-ओ-नज़र का दौर बस इतना ही याद है
वो इक क़दम उधर से बढ़े थे इधर से हम

ऐ काश ये सदा भी कभी कान में पड़े
उट्ठो कि लौट आए हैं अपने सफ़र से हम

दिल का चमन है कैफ़-ए-बहाराँ लिए हुए
गुज़रे थे एक बार तिरी रह-गुज़र से हम

आता है इक सितारा नज़र चाँद के क़रीब
जब देखते हैं ख़ुद को तुम्हारी नज़र से हम

इस से ज़्यादा दौर-ए-जुनूँ की ख़बर नहीं
कुछ बे-ख़बर से आप थे कुछ बे-ख़बर से हम

जितनी भी रह गई थी कमी दिल के दर्द में
उतना ही लुट गए हैं मताअ'-ए-नज़र से हम

रोज़-ए-अज़ल से अपनी जबीं में तड़प रही
वाबस्ता यूँ रहे हैं तिरे संग-ए-दर से हम
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Jagan Nath Azad
मैं दिल में उन की याद के तूफ़ाँ को पाल कर
लाया हूँ एक मौज-ए-तग़ज़्ज़ुल निकाल कर

पैमाना-ए-तरब में कहीं बाल आ गया
मैं गरचे पी रहा था बहुत ही सँभाल कर

महफ़िल जमी हुई है तिरी राह में कोई
ऐ गर्दिश-ए-ज़माना बस इतना ख़याल कर

आज़ाद जिंस-ए-दिल को फ़क़त इक नज़र पे बेच
सौदा गिराँ नहीं न बहुत क़ील-ओ-क़ाल कर

ख़त के जवाब में न लगा इतनी देर तू
मेरा अगर नहीं है तो अपना ख़याल कर

क्यूँ मैं ने दिल दिया है किसे मैं ने दिल दिया
ऐ अक़्ल आज मुझ से न इतने सवाल कर

ऐ दिल ये राह-ए-इश्क़ है राह-ए-ख़िरद नहीं
इस पर क़दम बढ़ा तू ज़रा देख भाल कर

फिर इश्क़ बज़्म-ए-हुस्न की जानिब रवाँ है आज
दीवानगी को अक़्ल के साँचे में ढाल कर

'आज़ाद' फिर दकन का समुंदर है और तू
ले जा दिल ओ नज़र का सफ़ीना सँभाल कर
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Jagan Nath Azad