Sana Hashmi

Sana Hashmi

@sanahashmi1122

Sana Hashmi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Sana Hashmi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
वो नज़रों में फिर से समाने लगे हैं
जो हमसे ही नज़रें चुराने लगे हैं

दिये ज़ब्त के वो बुझाने लगे हैं
मेरा ज़र्फ़ वो आज़माने लगे हैं

जिसे हिज्र की आँधियों ने उजाड़ा
घरौंदा वही फिर बनाने लगे हैं

कभी वस्ल की आरज़ू थी सताती
कि मंज़र वही याद आने लगे हैं

रही ख़ूब वाक़िफ़ छलावों से जिनके
वही दिल में फिर क्यों समाने लगे हैं

भिगा ही दिया अश्क की बारिशों ने
मुहब्बत के फिर अब्र छाने लगे हैं

वही सर्द रातें ये बारिश की बूँदें
ये मौसम मुझे ही सताने लगे हैं

उमीद-ए-वफ़ा क्या करें हम किसी से
यही बात दिल को बताने लगे हैं

न छेड़ो मुहब्बत के किस्से को यारों
जिसे ख़ुद से अब हम दबाने लगे हैं

ग़मों को छुपाया जहाँ से 'सना' ने
सभी ज़ख़्म नज़रों में आने लगे हैं
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Sana Hashmi
मुसीबतों में मैं ख़ुद को ढारस बँधा रही थी तो तुम कहाँ थे
क़दम क़दम पर मुझे ये दुनिया सता रही थी तो तुम कहाँ थे

हथेलियों से हैं अश्क पोंछे हथेलियों से हैं मुँह छुपाए
सिसक सिसक कर मैं तन्हा आँसू बहा रही थी तो तुम कहाँ थे

मैं अपने पैरों पे जब खड़ी थी तो तुम मेरे साथ चल रहे थे
मुझे सफ़र में हर एक ठोकर गिरा रही थी तो तुम कहाँ थे

मैं गिर के उठना फिर उठ के चलना ख़ुद अपने दम पर हूँ सीख पाई
मुझे अक़ारिब की चालबाज़ी हरा रही थी तो तुम कहाँ थे

भर अब चुके हैं ये ज़ख़्म मेरे तो तुम मुदावा भी क्या करोगे
तमाम दिल के मैं ज़ख़्म तुमको दिखा रही थी तो तुम कहाँ थे

बदल चुकी हूँ मैं राह अपनी पलट के वापस न आ सकूँगी
तुम्हारी राहों से ख़ुद को पीछे हटा रही थी तो तुम कहाँ थे

अब आए हो जाँ निसार करने मुहब्बतों का हिसाब करने
मुहब्बतों से मैं जब तुम्हीं को बुला रही थी तो तुम कहाँ थे

हुई है लाहिक़ ये फ़िक्र कैसे तुम्हें मिरी अब समझ न आई
सना जो ख़्वारी से अपना दामन बचा रही थी तो तुम कहाँ थ
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Sana Hashmi
मुझ सा न मिल सका मुझे इस दो जहान में
दो तेग कैसे रहती भला इक मियान में

क्यों आज रेंगने पे वो मजबूर हो चला
कल तक जो उड़ रहा था खुले आसमान में

औक़ात ज़र्रा भर भी नहीं अस्ल में मगर
जाने ये लोग जीते हैं किस किस गुमान में

उकता के रह गई थी जो पलभर के साथ से
यादों के संग रहती है ख़ाली मकान में

ये जिस्म की थकान भी कोई थकान है
इंसान घुलता जा रहा ज़हनी थकान में

अंजाम उस कहानी का नाशाद ही रहा
किरदार मर गया मिरा जिस दास्तान में

सुनिए कभी भी रहता नहीं एक जैसा वक़्त
बाद-ए-सबा ये कह गई चुपके से कान में

नफ़रत का बीज दिल में सियासत ने बो दिया
रहना मुहाल हो गया हिन्दोस्तान में

लो आप हक़-बयानी से बेज़ार हो गए
काँटे लगे हुए हैं सना की ज़बान में
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Sana Hashmi
लहू से अपने ही ज़ख़्मों को धोना पड़ता है
ख़ुद अपने दर्द को दिल में समोना पड़ता है

हमें किसी न किसी का तो होना पड़ता है
बक़ा की जंग में हर शय को खोना पड़ता है

कभी ख़ुशी से कभी मस्लिहत की ख़ातिर भी
किसी के हाथ का बनना खिलौना पड़ता है

चटख रही है ये दीवार ज़ब्त की अब तो
दरार भरते हुए ख़ूब रोना पड़ता है

सियाही आँसुओं की छप न जाए आरिज़ पर
कई दफ़ा हमें चेहरा भिगोना पड़ता है

लिपटने लगती हैं जब यादें जिस्म से उसकी
तो तकिया भींच के बाहों में सोना पड़ता है

मज़ार बन चुका हो ख़्वाहिशों का जब ख़ुद में
हमें फिर ऐसे जनाज़ों को ढोना पड़ता है

मैं चाहती हूँ नई नस्ल दे दुआ मुझको
उन्हीं के वास्ते कुछ अच्छा बोना पड़ता है

सना ये शेर असरदार तब ही बनते हैं
हर एक हर्फ़ में जज़्बा पिरोना पड़ता है
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Sana Hashmi
बेसबब होने लगी जग में हँसाई मेरी
काम आई न मिरे हक़ में सफ़ाई मेरी

आशना हो के भी अनजान बने फिरते हैं
भूल जाते हैं सब इक पल में भलाई मेरी

मुझे मालूम है मैं ग़ैर ज़रुरी सी हूँ
रास आएगी यहाँ सबको जुदाई मेरी

ज़ह्र साबित हुआ वो मेरे लिए जाने क्यों
मैं समझती थी उसे वो है दवाई मेरी

अपने प्यारों को मैं कर सकती नहीं शर्मिंदा
इसलिए बच गई कटने से कलाई मेरी

ऐरों ग़ैरों ने तो अक्सर ही सराहा है मुझे
मेरे मोहसिन ही करें अब तो बुराई मेरी

धोखे देते हैं मुझे वो जो वफ़ा के बदले
ऐसे ही लोगों तलक होगी रसाई मेरी

ज़ख़्म सीने के उभर आऍं हैं रुख़ पर मेरे
उसने क्या सोच के तस्वीर बनाई मेरी

लगती है ज़ीस्त क़फ़स जैसी सना को हरदम
लाएगी अब तो नज़ा इससे रिहाई मेरी
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Sana Hashmi
रंज-ओ-ग़म से ही रही अपनी शनासाई भी
हौसलों की हुई है ख़त्म तवानाई भी

जिन वफ़ादारों ने धोखे ही फ़क़त खाए थे
उनको ही मिलती रही ज़िल्लत-ए-रुस्वाई भी

बेवफ़ाओं के ही दीवाने बनें हैं आशिक़
मिल गई ख़ाक में किरदार की ज़ेबाई भी

देखना बोलना लगता है फ़िज़ूल अब मुझको
छिन गई कुव्वत-ए-बीनाई भी गोयाई भी

झाँक कर देखती हूँ शोर में अपने अंदर
मैं तमन्नाई भी हूँ और तमाशाई भी

मकड़ी के जाल से कमज़ोर सहारे हैं सभी
इनके बस में कहाँ है करना मसीहाई भी

मैं तो अपनों से मज़म्मत भी नहीं कर पाई
और सितम करते रहे मुझपे ये हरजाई भी

ज़ख़्म इस दिल के मुहब्बत ही भरेगी लेकिन
हमसे होने की नहीं इसकी पज़ीराई भी

अपनी दिलजोई को अब कोई न आएगा सना
अच्छी अब लगने लगी है हमें तन्हाई भी
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Sana Hashmi
अब दिल ने खुल के जीने को इसरार है किया
ख़्वाहिश का अपनी मुझसे यूँ इज़हार है किया

पुर-एतिमाद हो के गुज़ारूँगी ज़िंदगी
हालाँकि ये भी अहद कई बार है किया

मुझको मुहब्बतों का सिला ख़ूब है मिला
हक़ पर मिरे रक़ीब को हक़दार है किया

वर्ना मिरी हयात बड़ी ख़ैरियत से थी
मुझको किसी के इश्क़ ने बीमार है किया

दीवानगी से कुछ भी न हासिल हमें हुआ
जीना भी हम ने ख़ुद का ही दुश्वार है किया

कितने नक़ाब पहने हुऐ लोग हैं यहाँ
मुझको फ़रेबियों ने समझदार है किया

दुनिया महाज़-ए-जंग की मानिंद अब लगे
हर जंग ख़ुद ही लड़ने को तैयार है किया

चाहत नहीं 'सना' को किसी से भी इश्क़ की
अब ख़ुद से मैंने ख़ुद को बहुत प्यार है किया
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