Ajay Sahaab

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Ajay Sahaab shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ajay Sahaab's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
बिखरा हूँ जब मैं ख़ुद यहाँ कोई मुझे गिराए क्यूँ
पहले से राख राख हूँ फिर भी कोई बुझाए क्यूँ

ईसा न वो नबी कोई अदना सा आदमी कोई
फिर भी सलीब-ए-दर्द को सर पे कोई उठाएँ क्यूँ

सारे जो ग़म-गुसार थे कब के रक़ीब बन चुके
ऐसे में दोस्तों कोई अपना ये ग़म सुनाए क्यूँ

यकता वो ज़ात-ए-अकबरी दिल ये हक़ीरो असग़री
इतनी वसीअ' शय भला दिल में मिरे समाए क्यूँ

पलता हमारे ख़ूँ से है इश्क़ मगर अदू से है
अपना नहीं जो बेवफ़ा हम को यूँ आज़माए क्यूँ

सुब्ह का वक़्त आए तो ख़ुद ही बुझेगा ये चराग़
इस को सहर से पेशतर कोई मगर बुझाए क्यूँ

जिस पर गिरी है बर्क़ भी जिस पे हवा की है नज़र
शाख़ों में ऐसी ऐ 'सहाब' घर भी कोई बनाए क्यूँ
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Ajay Sahaab
शाम आई है लिए हाथ में यादों के चराग़
वो तिरे साथ गुज़ारे हुए लम्हों के चराग़

मेरे इस घर में अँधेरा कभी होता ही नहीं
हैं मिरे सीने में जलते हुए ज़ख़्मों के चराग़

लाख तूफ़ान हों कुटिया मिरी रौशन ही रही
एक बरसात से बुझने लगे महलों के चराग़

ज़िंदगी तल्ख़ हक़ीक़त की है अंधी सी गली
अपनी आँखों में जलाते रहो सपनों के चराग़

एक मुद्दत से धधकता रहा मेरा ये ज़ेहन
तब कहीं जा के फ़रोज़ाँ हुए लफ़्ज़ों के चराग़

ख़ुद का ही नूर किया करता है रौशन दिल को
रौशनी तुझ को भला कैसे दें ग़ैरों के चराग़

सारी दुनिया को ख़ुदा एक ही सूरज दे दे
काश बुझ जाएँ ज़माने से ये फ़िर्क़ों के चराग़

अब तो जम्हूर की ताक़त का ही सूरज है 'सहाब'
अब ज़माने में कहाँ जलते हैं शाहों के चराग़
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Ajay Sahaab
वही हैं क़त्ल-ओ-ग़ारत और वही कोहराम है साक़ी
तमद्दुन और मज़हब की ये ख़ूनी शाम है साक़ी

कमाल-ए-फ़न मिरा अब तक निहाँ है ऐसे दुनिया से
कि ज्यूँ अब्दुलहई में इक अलिफ़ गुमनाम है साक़ी

मेरी गंग-ओ-जमन तहज़ीब की दुख़्तर है ये उर्दू
इसे मुस्लिम बनाने की ये साज़िश आम है साक़ी

करेंगे अम्न की बातें दिलों में बुग़्ज़ रक्खेंगे
यही रस्म-ए-जहाँ और फ़ितरत-ए-अक़वाम है साक़ी

क़द-ए-शाइर के बदले देखिए मेयार शे'रों का
फ़क़त इतना मिरी ग़ज़लों का ये पैग़ाम है साक़ी

अरूज़-ओ-इल्म की ता'लीम मुझ को कब रही हासिल
मिरा उस्ताद तो बस ये ग़म-ए-अय्याम है साक़ी

वही ग़ालिब है अब तो जो ख़रीदे शोहरतें अपनी
रुबाई बेचने वाला उमर-'ख़य्याम' है साक़ी

ये ग़ज़लें ग़ैब से नाज़िल नहीं अश्कों का हासिल हैं
मिरा ये दर्द ही सब से बड़ा इल्हाम है साक़ी
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Ajay Sahaab
वो जो फूल थे तिरी याद के तह-ए-दस्त-ए-ख़ार चले गए
तिरे शहर में भी सुकून है तिरे बे-क़रार चले गए

न वो अश्क अब न वो आबले न वो चीख़ती हुई धड़कनें
मिरी ज़ात से तिरे दर्द के सभी इश्तिहार चले गए

न वो याद है न वो हिज्र है न निगाह-ए-नाज़ का ज़िक्र है
मिरे ज़ेहन से तिरी फ़िक्र के सभी रोज़गार चले गए

थे वो फ़ितरतन ही शहीद-ख़ू उन्हें क़ातिलों से भी प्यार था
कभी मक़्तलों में कटे थे वो कभी सू-ए-दार चले गए

न बदन बचा न लहू बचा न तो जिस्म का कोई मू बचा
कोई जा के कह दे ये दर्द से वो तिरे शिकार चले गए

यूँ अबस किसी को सदा न दो दिल-ए-ज़ार को ये बता भी दो
कभी अब न आएँगे लौट कर वो जो एक बार चले गए

उन्हें क्या ललक तिरे फ़ैज़ की उन्हें क्या तलब तिरे वस्ल की
जो मिज़ाज ले के फ़क़ीर का सर-ए-कू-ए-यार चले गए

है ये सच कि मौसम-ए-हिज्र में मिरा ख़ार ख़ार बदन हुआ
कभी याद तुझ को जो कर लिया तो बदन के ख़ार चले गए

न ख़ुशी में अब वो सुरूर है न तो दर्द में वो नशा रहा
लो 'सहाब' बादा-ए-इश्क़ के वो सभी ख़ुमार चले गए
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Ajay Sahaab
सहरा-ए-ला-हुदूद में तिश्ना-लबी की ख़ैर
माहौल-ए-अश्क-बार में लब की हँसी की ख़ैर

लफ़्फ़ाज़ सारे बन गए शाह-ए-सुख़न यहाँ
सादिक़ सुख़न-वरों की सुख़न-परवरी की ख़ैर

मशरिक़ में हिन्द-ओ-चीन के बाज़ार यूँ बढ़े
जाह-ओ-जलाल-ए-मग़रिब-ओ-बरतानवी की ख़ैर

है औरतों की धूम ज़मीं से फ़लक तलक
सइ-ए-बक़ा-ए-शौकत-ए-मर्दानगी की ख़ैर

अर्ज़ां है मुश्त-ए-ख़ाक से इंसान की हयात
तहज़ीब-ए-क़त्ल-ओ-ख़ून में अब ज़िंदगी की ख़ैर

हर सम्त क़त्ल-ए-आम है मज़हब के नाम पर
सारी अक़ीदतों की खुदा-परवरी की ख़ैर

जम्हूरियत की लाश पे ताक़त है ख़ंदा-ज़न
इस बरहना निज़ाम में हर आदमी की ख़ैर

सारा वतन समझ चुका दैर-ओ-हरम का सच
बद-कार रहबरान की बाज़ीगरी की ख़ैर

उर्दू ग़ज़ल के नाम पे चलते हैं चुटकुले
ग़ालिब के फ़ैज़ 'मीर' की उस साहिरी की ख़ैर

मग़रिब से आ गई यहाँ तहज़ीब-ए-बरहना
मशरिक़ तिरी रिवायती पाकीज़गी की ख़ैर

अंधे परख रहे यहाँ मेआ'र-ए-रौशनी
दीदावर-ए-हुनर तिरी दीदा-वरी की ख़ैर
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Ajay Sahaab
लगा के धड़कन में आग मेरी ब-रंग-ए-रक़्स-ए-शरर गया वो
मुझे बना के सुलगता सहरा मिरे जहाँ से गुज़र गया वो

यूँ नींद से क्यूँ मुझे जगा कर चराग़-ए-उम्मीद फिर जला कर
हुई सहर तो उसे बुझा कर हवा के जैसा गुज़र गया वो

वो रेत पर इक निशान जैसा था मोम के इक मकान जैसा
बड़ा सँभल कर छुआ था मैं ने प एक पल में बिखर गया वो

वो साथ मेरे था जैसे हर पल वो देखता था मुझे मुसलसल
ज़रा सा मौसम बदल गया तो चुरा के मुझ से नज़र गया वो

वो एक बिछड़े से मीत जैसा वो इक भुलाए से गीत जैसा
कोई पुरानी सी धुन जगा कर वजूद-ओ-दिल में उतर गया वो

वो दोस्त सारे थे चार पल के जो चल दिए हम-सफ़र बदल के
'सहाब'-ए-नादाँ वहीं खड़ा है उसी डगर पर ठहर गया वो
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Ajay Sahaab
तन्हाइयों में अश्क बहाने से क्या मिला
ख़ुद को दिया बना के जलाने से क्या मिला

मुझ से बिछड़ के रेत सा वो भी बिखर गया
उस जाने वाले शख़्स को जाने से क्या मिला

अब भी मिरे वजूद में हर साँस में वही
मैं सोचता हूँ उस को भुलाने से क्या मिला

तू क्या गया कि दिल मिरा ख़ामोश हो गया
इन धड़कनों के शोर मचाने से क्या मिला

अपने ही एक दर्द का चारा न कर सके
सारे जहाँ का दर्द उठाने से क्या मिला

जिस के लिए लिखा उसे वो तो न सुन सका
वो गीत महफ़िलों को सुनाने से क्या मिला

उन का हर एक हर्फ़ है दिल पर लिखा हुआ
उस दोस्त के ख़तों को जलाने से क्या मिला

सोचो ज़रा कि तुम ने ज़माने को क्या दिया
क्यूँ सोचते हो तुम को ज़माने से क्या मिला
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Ajay Sahaab
सब है फ़ानी यहाँ संसार में किस का क्या है
फ़िक्र फिर भी है तुझे अपना पराया क्या है

आप का पहला ही अंदाज़ बता देता है
आप को आप के वालिद ने सिखाया क्या है

ज़िंदगी ख़ुद पे तू इतना भी गुमाँ मत करना
चंद साँसों के सिवा तेरा असासा क्या है

फिर से इक और लड़ाई के बहाने के सिवा
तुम बता दो कि किसी जंग से मिलता क्या है

उम्र भर कुछ न किया जिस की तमन्ना के सिवा
उस ने पूछा भी नहीं मेरी तमन्ना क्या है

कुछ ग़रीबों की गली में भी दिए जल जाएँ
इस से बेहतर भी दिवाली का उजाला क्या है

कोई जज़्बा कोई एहसास न धड़कन है कोई
ये अगर दिल है मिरे दोस्त तो सहरा क्या है

दाम मन-माने उसे दे के ख़रीदा तू ने
देख तो ले तुझे बाज़ार ने बेचा क्या है

वही भूके वही आहें वही आँसू हैं 'सहाब'
शहर का नाम बदल जाने से बदला क्या है
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Ajay Sahaab

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