Ghazal Collection

बरा-ए-ज़र मोहब्बत का तराना छोड़ देती हैं
हसीनाएँ हैं इश्क़-ए-सूफ़ियाना छोड़ देती हैं

बड़ी गुस्ताख़ होती हैं ये कम-सिन लड़कियाँ ऐ दोस्त
दिवाना कर दिवाने को दिवाना छोड़ देती हैं

हरारत है कि चारों मौसमों में कम नहीं होती
बहारें हैं कि हर मौसम सुहाना छोड़ देती हैं

बलाएँ हैं हिचकती हैं अजल तक साथ देने से
ये आधी-जान लेकर मेरा शाना छोड़ देती हैं

जब उसके नरख़रे से जन्म लेता है कोई आहंग
बहुत सी कोयलें नग़मात गाना छोड़ देती हैं

तुम्हारे बिन तुम्हारी यादों के बिन उँगलियाँ मेरी
फ़क़त दो-चार पन्नों पर फ़साना छोड़ देती हैं

समुंदर को सिखा कर इश्क़ करना ख़ुद-ग़रज़ नदियाँ
मुकम्मल वस्ल की साअत मुहाना छोड़ देती हैं

'मिलन' कुछ लड़कियों में शौक़िया होती है तर्रारी
नए आशिक़ के मिलते ही पुराना छोड़ देती हैं
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Milan Gautam
अगर वो नाज़-परवर अक़्ल से बच्ची नहीं होती
तो भी होती बहुत प्यारी मगर इतनी नहीं होती

सुधा की देवताई का न होता बोध चंदर को
फ़साने में वो इक क़िरदार अगर पम्मी नहीं होती

ख़ुदा का शुक्र है सखियाँ तुम्हें अच्छी मिलीं वर्ना
तुम्हें मुझ से मोहब्बत क्या पता होती नहीं होती

सुनो माँ-बाप भाई और बहन रिश्ते अहम हैं पर
हुकूमत की ग़ुलामों के बिना हस्ती नहीं होती

जहाँ-भर की हलावत की मैं लज़्ज़त लेके बैठा हूँ
कोई शय उसके होठों जैसी शीरीनी नहीं होती

मैं ऐसे दिल के दफ़्तर में मुसलसल काम करता हूँ
कि जिस में प्यार होता है कभी छुट्टी नहीं होती

अगर रिश्ता न होता ख़ुद-कुशी का इश्क़ वालों से
कहीं पंखे नहीं होते कहीं रस्सी नहीं होती

तुम्हारी ख़ुश-नसीबी है रक़ीक़-उल-क़ल्ब हो वर्ना
'मिलन' हर दिल के अंदर प्रेम की देवी नहीं होती
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Milan Gautam

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