Ghazal Collection

आरज़ू ये है मिरी जान की जाते जाते
इक महल हम भी तेरे नाम बनाते जाते

हम को तस्वीर बनानी नहीं आती वरना
उम्र भर हम तिरी तस्वीर बनाते जाते

किस लिए छोड़ गए तोड़ गए क्यूँ रिश्ता
जाते जाते हमें इतना तो बताते जाते

ज़िन्दगी भर के लिए छोड़ के जाना था अगर
कम से कम नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तो मिटाते जाते

ठोकरें खा के सॅंभलना तुम्हें कैसे आता
हम अगर राह के पत्थर को हटाते जाते

वो भी मुड़ मुड़ के कहाँ तक हमें देखे जाता
हम भी कब तक उसे आवाज़ लगाते जाते

उन से कहना कि बहुत याद किया है उन को
उन के दीवाने ने इस दहर से जाते जाते

मुफ़लिसी ले गई सुख चैन हमारा वरना
ज़िंदगी हम भी तेरे नाज़ उठाते जाते

वो चराग़ों का मुक़द्दर था कि जलते बुझते
आपका काम जलाना था जलाते जाते
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Saif Dehlvi
ये दिल फिर टूटता है इत्तिफ़ाक़न
मुझे तू फिर मिला है इत्तिफ़ाक़न

क़सम तेरी मैं पत्थर बन चुका हूॅं
ये ऑंसू गिर रहा है इत्तिफ़ाक़न

निगूँ रहता था जो पहलू में तेरे
वो सर अब कट चुका है इत्तिफ़ाक़न

जो आया बाद तेरे उसका चेहरा
तिरे चेहरे ही सा है इत्तिफ़ाक़न

तुझे मुझसे भी बदतर मिल गया है
ये मेरी बददुआ है इत्तिफ़ाक़न

मुझे हर जानलेवा हादसे में
तिरा चेहरा दिखा है इत्तिफ़ाक़न

बिल-आख़िर आज उस खाई किनारे
तिरा बेटा खड़ा है इत्तिफ़ाक़न

पुराना था हवा से गिर पड़ा था
नया पंखा लगा है इत्तिफ़ाक़न

इमरजेंसी के ख़ाने में अभी तक
तिरा नम्बर लिखा है इत्तिफ़ाक़न

था वादा तो न मुॅंह लगने का यूशा
अचानक लब हिला है इत्तिफ़ाक़न
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Yusha Abbas 'Amr'
रफ़्ता रफ़्ता उम्र मेरी ढल रही है
ज़िंदगी धीरे से मेरी फल रही है

आजकल तन्हा है रातें मेरी यारो
ये मगर दुनिया मुझे क्यों छल रही है

रोज़ काँटे जिस्म पर चुभते मगर क्यों
कामयाबी से ये दुनिया जल रही है

चाँद तारे सब सितारे पास है अब
इक मगर उसकी कमी बस खल रही है

मेरे ख़्वाबों की वो लड़की मानो जैसे
वो यहाँ हुस्न-ए-सहर हर पल रही है

दौर कोई था पुराना सो मगर अब
ज़िंदगी हर दिन यहाँ निश्छल रही है

पेट भर खाना मिले या घर नहीं पर
मुफ़्लिसी दारू के दो बोतल रही है

तल्ख़-गो आदत यहाँ पर आपकी अब
रूह को शायद वो कर बोझल रही है

उसकी शादी हो गई है ग़ैर से पर
आज भी दिल में बसी हर पल रही है

उस ख़ुदा ने है दिया सबको बराबर
हाथ दुनिया किसलिए फिर मल रही है
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Lalit Mohan Joshi

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