Ghazal Collection

मेरे एहसास की ख़ुशबू से गर तू तर नहीं सकता
तो जानाँ छू के भी मुझको तू पागल कर नहीं सकता

तेरा लहजा बताता है तुझे कितनी मुहब्बत है
तू मुझको मार सकता है तू मुझपे मर नहीं सकता

कहीं पे बैठ के तन्हाइयों में ख़ूब रोता है
जो बेटा बाप के बोझे को हल्का कर नहीं सकता

ग़ज़ल कहता हूँ और बारूद पे सिगरेट पीता हूँ
अगर भूचाल भी आ जाए तो मैं डर नहीं सकता

हमेशा मौत का खटका कि उसपे ये सितम भी है
बिना उसकी इजाज़त के कोई भी मर नहीं सकता

बिताई उम्र है मैंने जी ऐसे बेवफ़ा के साथ
मैं जिसको मार नइँ सकता मैं जिसपे मर नहीं सकता

बड़े घर का नहीं मैं अपने घर का हूँ बड़ा बेटा
किसी की बेवफ़ाई पर तो हरगिज़ मर नहीं सकता

जिसे इक बार तकने से मैं तर जाता था ऐ राकेश
मुझे वो मिल भी जाएगा तो मैं अब तर नहीं सकता
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Rakesh Mahadiuree
सितारों से उलझता जा रहा हूँ
ख़यालों में भटकता जा रहा हूँ

तिरी आँखों का जादू बोलता है
मैं ख़ुद में ही सिमटता जा रहा हूँ

तअल्लुक़ का भरम टूटा है लेकिन
अभी तक सर पटकता जा रहा हूँ

गुज़रता वक़्त कुछ कहता नहीं है
मगर मैं सब समझता जा रहा हूँ

तिरी तंज़ीम में जलवा भी देखा
मगर फिर भी लुटाता जा रहा हूँ

तिरी हर बात में दुनिया नई थी
मैं हर लफ़्ज़ों को पढ़ता जा रहा हूँ

ग़म-ए-दुनिया से मैं वाक़िफ़ बहुत हूँ
मगर तुझ से उलझता जा रहा हूँ

तिरे पहलू में जन्नत भी नहीं थी
मगर फिर भी ठहरता जा रहा हूँ

मिरी बर्बादियों पर ख़ुश बहुत तू
मैं फिर भी मुस्कुराता जा रहा हूँ

तिरे लहजे में शोख़ी भी बहुत थी
मगर मैं दिल दुखाता जा रहा हूँ

मिरे अफ़्क़ार का मौसम है बदला
मैं बादल सा बरसता जा रहा हूँ

मुझे हर ज़ुल्म की आदत पड़ी है
तिरी दुनिया में रहता जा रहा हूँ

तआरुफ़ था कभी मैं भी बहारों
मगर बन ख़ाक उड़ता जा रहा हूँ

तिरी महफ़िल में बेगाना सा हूँ मैं
तिरे सज्दे से उठता जा रहा हूँ

मुझे हर मोड़ पर ठोकर मिली है
मगर मंज़िल भी पाता जा रहा हूँ

तिरी रहमत का ख़्वाबीदा था हरदम
मगर अब जागता सा जा रहा हूँ

तिरी ज़ुल्फ़ों में उलझे दिन गुज़ारे
मगर अब फिर सुलझता जा रहा हूँ

मैं वो बर्बादियों की दास्ताँ हूँ
जिसे हर वक़्त पढ़ता जा रहा हूँ

अजल के क़हक़हे गूँजे फ़ज़ा में
मैं आख़िर तक भी ज़िंदा जा रहा हूँ
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Safeer Ray

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