मेरे एहसास की ख़ुशबू से गर तू तर नहीं सकता
तो जानाँ छू के भी मुझको तू पागल कर नहीं सकता
तेरा लहजा बताता है तुझे कितनी मुहब्बत है
तू मुझको मार सकता है तू मुझपे मर नहीं सकता
कहीं पे बैठ के तन्हाइयों में ख़ूब रोता है
जो बेटा बाप के बोझे को हल्का कर नहीं सकता
ग़ज़ल कहता हूँ और बारूद पे सिगरेट पीता हूँ
अगर भूचाल भी आ जाए तो मैं डर नहीं सकता
हमेशा मौत का खटका कि उसपे ये सितम भी है
बिना उसकी इजाज़त के कोई भी मर नहीं सकता
बिताई उम्र है मैंने जी ऐसे बेवफ़ा के साथ
मैं जिसको मार नइँ सकता मैं जिसपे मर नहीं सकता
बड़े घर का नहीं मैं अपने घर का हूँ बड़ा बेटा
किसी की बेवफ़ाई पर तो हरगिज़ मर नहीं सकता
जिसे इक बार तकने से मैं तर जाता था ऐ राकेश
मुझे वो मिल भी जाएगा तो मैं अब तर नहीं सकता
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