लब-ए-साग़र से सुन लो ज़ाहिदो तक़रीर-ए-मय-ख़ाना
शिकस्त-ए-तौबा ही है या नई ता'मीर-ए-मय-ख़ाना
अज़ल से उस पे रहमत है अबद तक उस पे रहमत हो
रक़म है ख़त्त-ए-जाम-ए-बादा में तक़दीर-ए-मय-ख़ाना
तो क्या ऐ ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क उस की अज़्मत जान सकता है
क़लम से मौज-ए-कौसर के खिची तस्वीर-ए-मय-ख़ाना
ये मय-सज्जादा रंगीं-कुन गरत पीर-ए-मुग़ाँ गोयद
कि दाना-ए-रमूज़-ए-दो-जहाँ है पीर-ए-मय-ख़ाना
मिला पाओगे इस का सिलसिला तसनीम-ओ-कौसर से
बहुत तूल-ओ-तवील ऐ शैख़ है ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना
बना है शीशा-ए-मय सर-ब-सर आईना-ए-महशर
बरी ज़ोहद-ओ-रिया से है जवान-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
तू सारी उम्र अब माथा रगड़ता रह कड़ा के कर
न टाले से टले ऐ शैख़ ये ता'ज़ीर-ए-मय-ख़ाना
दहाई साक़ी-ए-कौसर की ये हैं नफ़्स के बंदे
जो वस्ल-ए-हूर की ख़ातिर करें तहक़ीर-ए-मय-ख़ाना
हबाब-ए-ख़त-ए-जाम-ओ-क़ुलक़ुल-ए-मीना से साबित है
वो है तस्बीह-ए-मय-ख़ाना ये है तकबीर-ए-मय-ख़ाना
गिरा जो ख़िश्त-ए-ख़ुम पर सर लब-ए-कौसर ने चूमा है
कि है तक़्सीर-ए-मय-ख़ाना ही में तौक़ीर-ए-मय-ख़ाना
न क्यूँ हर क़तरा-ए-मय मेहर की आँखों का तारा हो
कि बर्क़-ए-तूर की है इक चमक तनवीर-ए-मयख़ाना
पड़ी है इक नज़र जिस पर वो बे-ख़ुद हो गया 'कैफ़ी'
निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी में है क्या तासीर-ए-मय-ख़ाना
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